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CM त्रिवेंद्र सिंह ने खटखटाया सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा, भ्रष्‍टाचार मामले में CBI जांच के हाईकोर्ट के आदेश को दी चुनौती

Deepa Sahu
28 Oct 2020 2:43 PM GMT
CM त्रिवेंद्र सिंह ने खटखटाया सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा, भ्रष्‍टाचार मामले में CBI जांच के हाईकोर्ट के आदेश को दी चुनौती
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भ्रष्टाचार के मामले में केस दर्ज कर सीबीआइ को जांच का आदेश

जनता से रिश्ता वेबडेस्क | नई दिल्ली, भ्रष्टाचार के मामले में केस दर्ज कर सीबीआइ को जांच का आदेश देने के उत्तराखंड हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। इसके अलावा उत्तराखंड सरकार ने भी विशेष अनुमति याचिका दाखिल कर हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। रावत ने हाईकोर्ट के आदेश का विरोध करते हुए याचिका में कहा है कि वह चुने हुए मुख्यमंत्री हैं और राजनैतिक लाभ लेने के लिए इस विवाद में बेवजह उनका नाम घसीटा गया है।

उत्तराखंड हाईकोर्ट ने गत 27 अक्टूबर को पत्रकार उमेश शर्मा की याचिका पर फैसला सुनाते हुए मुख्यमंत्री पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाने वाले सोशल मीडिया पर डाले गए वीडियो के संबंध में दर्ज मामला रद कर दिया था। सोशल मीडिया पर डाले गए वीडियो के संबंध में सेवानिवृत प्रोफेसर हरेंद्र सिंह रावत ने उमेश शर्मा के खिलाफ एफआइआर दर्ज कराई थी। हाईकोर्ट ने आदेश में उक्त एफआइआर को रद करने के साथ ही सीबीआइ को पत्रकार की याचिका में लगाए गए आरोपों पर मामला दर्ज कर जांच करने का आदेश दिया था।

मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत और प्रदेश सरकार ने हाईकोर्ट के इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने हाईकोर्ट के आदेश का विरोध करते हुए याचिका में यह भी कहा है कि उमेश शर्मा की हाईकोर्ट में दाखिल याचिका में उनके (त्रिवेन्द्र सिंह रावत) खिलाफ किसी भी तरह की जांच या सीबीआइ जांच की मांग नहीं की गई थी। याचिका में उमेश ने सिर्फ यह मांग की थी कि उसके खिलाफ देहरादून में दर्ज एफआइआर 0265-2020 रद की जाए। हाईकोर्ट ने अप्रत्याशित ढंग से उस याचिका पर फैसला सुनाया...

याचिका में दलील दी गई है कि हाईकोर्ट ने न केवल उमेश के खिलाफ दर्ज एफआइआर रद की बल्कि उनके (त्रिवेन्द्र सिंह रावत) के खिलाफ सीबीआइ को भ्रष्टाचार के आरोपों में एफआइआर दर्ज करके जांच करने का भी आदेश दिया जो कि बिल्कुल गलत और आधारहीन है क्योंकि जो आरोप लगाए गए हैं वे पहली निगाह में फर्जी और आधारहीन हैं। मुख्यमंत्री की याचिका मे कहा गया है कि उमेश शर्मा ने हाईकोर्ट में स्वीकार किया था कि उसने डॉ. हरेन्द्र सिंह रावत और सविता रावत के जरिये रिश्वत लेने के और उनके मुख्यमंत्री के रिश्तेदार होने के गलत आरोप लगाए थे।

याचिका में आगे कहा गया है कि इसके बावजूद हाईकोर्ट ने उनके खिलाफ सीबीआइ जांच के आदेश दिए। यहां तक कि हाईकोर्ट में उन्हें पक्षकार भी नहीं बनाया गया था। मुख्यमंत्री ने कहा है कि हाईकोर्ट ने उनके खिलाफ जांच का आदेश देने से पहले उनका पक्ष सुनना भी जरूरी नहीं समझा... ऐसे मे हाईकोर्ट का आदेश बना रहने लायक नहीं है। हाईकोर्ट का आदेश प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत के खिलाफ है।

याचिका में कहा गया है कि मुख्यमंत्री पर फर्जी दस्तावेजों के आधार पर व्‍हाट्स एप पर हुए कन्वरशेसन के आधार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए गए हैं। वहीं उत्तराखंड सरकार की याचिका में भी हाईकोर्ट के आदेश का विरोध करते हुए कहा गया है कि उमेश शर्मा के खिलाफ फर्जीवाड़ा आदि धाराओं में मुकदमा दर्ज था। उस पर गंभीर आरोप थे। हाईकोर्ट को एफआइआर रद करने की अपनी सन्निहित शक्ति का इस्तेमाल विरले मामलों में करना चाहिए। हाईकोर्ट का एफआइआर रद करने और सीबीआइ को अन्य मामला दर्ज कर जांच करने का आदेश देना ठीक नहीं है।

बता दें कि सेवानिवृत प्रोफेसर हरेन्द्र सिंह रावत ने देहरादून के राजपुर थाने में उमेश शर्मा के खिलाफ ब्लैकमेलिंग, दस्तावेजों की कूट रचना और गलत तरीके से बैंक खातों की जानकारी हासिल करने का आरोप लगाते हुए एफआइआर दर्ज कराई थी। आरोप लगाया गया था कि उमेश ने सोशल मीडिया पर वीडियो डाला था जिसमें प्रोफेसर रावत और उनकी पत्नी सविता रावत के खाते में नोटबंदी के दौरान झारखंड के अमृतेश चौहान ने 25 लाख रुपये की रकम जमा कराई थी। 25 लाख की यह रकम रावत को देने को कहा गया।

कथित वीडियो में सविता रावत को मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत की सगी बहन बताया गया था। प्रोफेसर रावत के अनुसार सभी तथ्य असत्य हैं और उमेश ने फर्जीवाड़ा करके उनके बैंक के कागजात बनवाए। बैंक खाते की सूचना भी गैरकानूनी तरीके से हासिल की। बता दें कि उमेश शर्मा ने उक्‍त एफआईआर रद कराने के लिए हाईकोर्ट में उक्त याचिका दाखिल की थी जिस पर नैनीताल उच्‍च न्‍यायालय ने फैसला दिया है। इसी फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में मुख्यमंत्री और राज्य सरकार दोनों पहुंची हैं।

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