x
फाइल फोटो
बड़ी खबर
पिछले दिनों काफी जोर शोर से ये बात उठी कि कोविड की तीसरी लहर आई तो बच्चों पर उसका कहर सबसे ज्यादा हो सकता है. इसके पीछे तथ्य ये दिया गया कि पहली लहर ने बुजुर्गों को अपना निशाना बनाया जबकि दूसरी लहर में युवा वर्ग निशाने पर रहा. इन दो लहरों में बच्चे अपेक्षाकृत महफूज रहे, लिहाजा ऐसा माना गया कि तीसरी लहर में शायद संक्रमण का शिकंजा मासूमों पर ना कस जाए.
इस चर्चा के बाद इंडियन एकेडमी ऑफ पेडियाट्रिक्स (IAP) ने सफाई देते हुए कहा कि बच्चों के मजबूत प्राकृतिक रोग प्रतिरोध क्षमता को देखते हुए ये आशंका निर्मूल साबित होगी. बच्चों को कुदरत ही ऐसी क्षमता देती है कि संक्रमण गंभीर नहीं होता, लेकिन उसकी उपेक्षा की जाए तो ये बढ़कर गंभीर हो सकता है.
सोमवार को एम्स के निदेशक डॉक्टर रणदीप गुलेरिया ने आजतक के प्रश्न पर साफ किया कि अब तक के अनुभव के आधार पर कहा जा सकता है कि दो लहरों की तरह ही तीसरी लहर में भी बच्चों पर कोई गंभीर संक्रमण का शिकार होने की आशंका कम ही है, लेकिन माता-पिता और अभिभावकों को चाहिए कि वो बच्चों पर सुरक्षा घेरा बनाए रखें. साफा सफाई के साथ ही कोविड प्रोटोकोल के तमाम एहतियातों का सख्ती से पालन करें.
इसी विषय पर स्वास्थ्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव लव अग्रवाल ने भी कहा कि तीसरी लहर को लेकर लोग आशंकाएं ना पालें. इस बाबत लगातार शोध और अनुसंधान किए जा रहे हैं. दुनिया के कई देशों के साथ डाटा और अनुभव साझा किए जा रहे हैं. लिहाजा सतर्क जरूर रहें, लेकिन चिंता ना पालें.
ब्लैक फंगस पर स्वास्थ्य मंत्रालय ने क्या कहा?
स्वास्थ्य मंत्रालय का कहना है कि ब्लैक फंगस संक्रामक बीमारी नहीं है. इम्यूनिटी की कमी ही ब्लैक फंगस का कारण है. ये साइनस, राइनो ऑर्बिटल और ब्रेन में असर करता है. ये छोटी आंत में भी देखा गया है. अलग-अलग रंगों से इसे पहचान देना गलत है.
नाक के अंदर दर्द-परेशानी, गले में दर्द, चेहरे पर संवेदना कम हो जाना, पेट में दर्द होना इसके लक्षण हैं. रंग के बजाय लक्षणों पर ध्यान दें. इलाज जल्दी हो तो फायदा और बचाव जल्दी व निश्चित होता है.
Next Story