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मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को फिर लगेगा झटका?

jantaserishta.com
22 July 2022 6:32 AM GMT
मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को फिर लगेगा झटका?
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न्यूज़ क्रेडिट: हिंदुस्तान

नई दिल्ली: दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की सिंगापुर यात्रा को उपराज्यपाल ने खारिज कर दिया। इसके बाद सीएम ने विदेश मंत्रालय से मंजूरी मांगी है। इसे लेकर मंत्रालय ने गुरुवार को कहा कि सीएम की सिंगापुर यात्रा को लेकर मंत्रालय के ऑनलाइन पोर्टल पर एंट्री की गई थी। हालांकि, सरकारी सूत्रों ने कहा कि अनुरोध में 'सक्षम प्राधिकारी' से अनुमोदन की कमी थी जिसका मतलब है कि मंत्रालय दौरे को मंजूरी नहीं दे सकता।

सिंगापुर के उच्चायुक्त ने केजरीवाल को 31 जुलाई से 3 अगस्त तक होने वाले 'आठवें विश्व सिटी शिखर सम्मेलन और डब्ल्यूसीएस मेयर्स फोरम' के लिए आमंत्रित किया है। मुख्यमंत्री के एक अगस्त को शिखर सम्मेलन को संबोधित करने की संभावना है। मंजूरी मिलने में देरी से, उन्होंने बीते रविवार को प्रधानमंत्री मोदी को पत्र लिखकर कहा था कि एक मुख्यमंत्री को इस तरह के आयोजन में शामिल होने से रोकना 'राष्ट्र के हितों के खिलाफ' था।
प्रोटोकॉल के अनुसार, सभी मुख्यमंत्रियों, केंद्र सरकार और राज्य सरकार के मंत्रियों को किसी भी प्रस्तावित विदेश यात्रा, आधिकारिक या निजी के बारे में विदेश मंत्रालय और कैबिनेट सचिवालय को सूचित करना होगा। अधिकारियों के अनुसार, ऐसी यात्राओं के लिए विदेश मंत्रालय से पूर्व राजनीतिक मंजूरी और एफसीआरए की मंजूरी अनिवार्य है। चूंकी दिल्ली एक केंद्र शासित प्रदेश है, ऐसे में सभी फाइलें एलजी के जरिए विदेश मंत्रालय को भेजी जाती हैं।
केजरीवाल के प्रस्ताव को खारिज करते हुए, एलजी ने कहा कि सम्मेलन में जिन विषयों पर चर्चा की जाएगी, उनमें शहरी शासन के विभिन्न पहलू शामिल हैं, जिन्हें दिल्ली सरकार के अलावा एनडीएमसी, एमसीडी और डीडीए सहित विभिन्न नागरिक निकायों द्वारा नियंत्रित किया जाता है। एलजी ने अपने नोट में कहा, 'सम्मेलन से संबंधित मुद्दों पर जीएनसीटीडी का विशेष अधिकार नहीं है। मुख्यमंत्री के लिए इस तरह के सम्मेलन में भाग लेना उचित नहीं है।'
हालांकि, केजरीवाल ने तर्क दिया है कि यह सिर्फ मेयर सम्मेलन नहीं है, बल्कि इसमें दुनिया भर के शहर के नेता और नॉलेज विशेषज्ञ भी शामिल होंगे। सिंगापुर सरकार ने दिल्ली के मुख्यमंत्री को 'दिल्ली मॉडल' पेश करने के लिए आमंत्रित किया है। उन्होंने कहा कि यदि देश में प्रत्येक संवैधानिक प्राधिकरण की यात्रा का निर्णय इस आधार पर किया जाता है कि कौन से विषय उस प्राधिकरण के अधिकार क्षेत्र में आते हैं, तो इससे अजीब स्थिति और एक व्यावहारिक गतिरोध पैदा करेगा।

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