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छावला गैंगरेप केस, दिल्ली LG ने दी SC में समीक्षा याचिका दायर करने की मंजूरी
jantaserishta.com
21 Nov 2022 4:13 AM GMT
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न्यूज़ क्रेडिट: आजतक
नई दिल्ली: छावला गैंगरेप केस में दोषियों को बरी करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ रिव्यू पिटीशन दाखिल की जाएगी. दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने इसकी मंजूरी दे दी है. इतना ही नहीं वीके सक्सेना ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता को सरकार का पक्ष रखने के लिए नियुक्त किया. सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में छावला गैंगरेप के तीनों दोषियों को बरी कर दिया था. इन दोषियों को निचली अदालत और दिल्ली हाईकोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई थी.
फरवरी 2012 की बात है. छावला की रहने वाली 19 साल की युवती गुड़गांव से काम खत्म कर बस से घर वापस लौट रही थी. कुछ देर बाद वो बस से उतरी और अपने घर की तरफ पैदल जाने लगी. तभी पीछे एक लाल रंग की कार आती है और उसमें सवार तीन युवक जबरन पकड़कर कार में खींच लेते हैं और उसे अगवा कर ले जाते हैं. इसके बाद तीनों ने न सिर्फ लड़की के साथ रेप किया, बल्कि घंटों तक ज्यादती करते रहे. तीनों दरिंदों ने उस लड़की के जिस्म को नोंचने में कोई कसर नहीं छोड़ी. उसके जिस्म को कई जगह से दातों से काटा गया. उसके सिर पर घड़े से हमला किया. दरिंदे यही नहीं रुके, उन्होंने गाड़ी से लोहे का पाना और जैक निकालकर उसके सिर पर वार किया.
दरिंदों ने उसे जला कर बदशक्ल करने के लिए गाड़ी के साइलेंसर से दूसरे औजारों को गर्म कर उसके जिस्म को जगह-जगह दाग दिया. यहां तक कि उसके प्राइवेट पार्ट को भी जलाया गया. इसके बाद आरोपियों ने बीयर की बोतल फोड़ी और उससे लड़की के पूरी जिस्म को तब तक काटते रहे. युवती की मौत हो चुकी थी. इसके बाद उसके प्राइवेट पार्ट में भी टूटी बोतल घुसा दी थी. उन दरिदों ने लड़की की आंखें फोड़कर उनमें कार की बैटरी का तेजाब भर दिया था.
इस मामले में निचली अदालत ने तीन आरोपियों को दोषी ठहराते हुए फांसी की सजा सुनाई थी. हाईकोर्ट ने भी इसे बरकरार रखा था. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे बदलते हुए तीनों आरोपियों को बरी कर दिया.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि आरोपियों को अपनी बात कहने का पूरा मौका नहीं मिला. अदालत ने मामले में पुलिस की लापरवाही का जिक्र किया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बचाव पक्ष की दलील थी गवाहों ने भी आरोपियों की पहचान नहीं की. कुल 49 गवाहों में दस का क्रॉस एग्जामिनेशन नहीं कराया गया. आरोपियों की पहचान के लिए कोई परेड नहीं कराई गई. इतना ही नहीं सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि निचली अदालत ने भी प्रक्रिया का पालन नहीं किया. निचली अदालत अपने विवेक से भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 165 के तहत सच्चाई की तह तक पहुंचने के लिए आवश्यक कार्यवाही कर सकता था. ऐसा क्यों नहीं किया गया?
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