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बिहार में छठ का पर्व पूरे धूमधाम से मनाया जाता है, ये पर्व चार दिनों तक चलता है
Chhath Puja 2021: बिहार में छठ का पर्व पूरे धूमधाम से मनाया जाता है, ये पर्व चार दिनों तक चलता है। छठ महापर्व को मुख्य रूप से बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में मनाया जाता है। इस त्योहार में 36 घंटे का निर्जला व्रत रखते हैं और छठी मइया और सूर्यदेव को अर्घ्य दिया जाता है। मान्यता है कि छठ पूजा करने से छठी मइया भक्तों की सभी मनोकामना पूरी करती है।
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छठ महापर्व के तीसरे दिन व्रतियों ने अस्ताचलगामी सूर्य को नमन कर पहला अर्घ्य दिया। बता दें, डूबते सूर्य को अर्घ्य देने का समय शाम में 4:30 से 5:26 बजे के बीच था। वहीं कल उदयगामी सूर्य को अर्घ्य देने का समय सुबह 6:34 बजे से है। जिसके साथ ही छठ महापर्व समाप्त हो जाएगा।
अर्घ्य देने के साथ भगवान से परिवार की सुख-समृद्धि की प्रार्थना की। गुरुवार को उदीयमान सूर्य को अर्घ्य के साथ छठ का व्रत संपन्न हो जाएगा। मंगलवार को खरना की रस्म पूरी करने के बाद महिलाओं का निर्जला व्रत शुरू हो गया था जिसके बाद बुधवार को तीसरे दिन छठ व्रतियों ने अस्ताचलगामी सूर्य को पहला अर्घ्य दिया। दोपहर से ही घाटों पर छठ व्रतियां और उनके परिवार के सदस्या घाटों का रुख करने लगे थे।
आपको बता दें, शाम में अर्घ्य गंगा जल से दिया जाता है। जबकि उदयगामी सूर्य को अर्घ्य कच्चे दूध से देना चाहिए। आचार्य राजनाथ झा के अनुसार, भारतीय सनातन धर्म में सूर्य उपासना का विशेष पर्व छठ है। ये पर्व पूर्णत: आस्था से जुड़ा है।
छठ घाट जाने के लिए व्रती महिलाए घर से निकली
लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा के लिए अपने-अपने घरों से व्रती महिलाएं छठ घाट के लिए निकल चुकी हैं। आस्था का महापर्व के दौरान अस्ताचलगामी सूर्य की अर्घ्य देकर महिलाएं सूर्य की उपासना करेंगी। इस अनुष्ठान को पूरा करने के लिए। महिलाएं तरह-तरह की मनोकामनाएं लेकर घाट तक पहुंच रही हैं।
Delhi: Devotees gather at Millennium Hanuman Park, Chirag Delhi to perform the rituals of #ChhathPuja2021 pic.twitter.com/6xqwD4mcqN
— ANI (@ANI) November 10, 2021
छठी मैया को ठेकुआ, मालपुआ, खीर-पूड़ी, खजूर, सूजी का हलवा, चावल का बना लड्डू, जिसे लडुआ भी कहते हैं आदि प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है। छठी मैया की कथा सुनते हैं । छठी तिथि को शाम को अर्घ्य के बाद रात को सूर्य देवता का ध्यान और छठी मैया के गीत गाए जाते हैं। इसके बाद सुबह सप्तमी के दिन सूर्योदय से पहले ब्रह्म मुहूर्त में सभी घाट पर पहंचते हैं। सप्तमी तिथि को सुबह सूर्योदय से पहले नदी के घाट पर पहुंचकर उगते सूर्य को अर्घ्य देते हैं। इसके बाद व्रत का पारण करते हुए व्रत खोला जाता है।
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