भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) में कई महत्वपूर्ण बदलावों का प्रस्ताव किया गया है। फेक करेंसी सहित कुछ मामलों में व्यक्तियों की गिरफ्तारी के लिए हथकड़ी लगाने की अनुमति देने के लिए वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से परीक्षण तक बहुत सारे बदलाव देखने को मिल सकते हैं।
कम्युनिकेशन डिवाइस
विधेयक दस्तावेज़ प्रस्तुत करने के लिए सम्मन के प्रावधान में कम्युनिकेशन सहित इलेक्ट्रॉनिक संचार से जोड़ने की बात कही गई है। एफआईआर से लेकर केस डायरी और चार्जशीट सबकुछ डिजिटल होगा। सात साल से ज्यादा के सजा के केस में फॉरेंसिक टीम जरूरी तौर पर क्राइम स्पॉट पर जाएगी। 2027 तक देश के सभी अदालतों को कंप्यूटराइज्ड किया जाएगा।
हथकड़ी का प्रयोग
एक पुलिस अधिकारी को किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करते समय हथकड़ी का उपयोग करने की अनुमति दी जा सकती है। यदि वो आदतन अपराधी हो। इसके अलावा हिरासत से भागा हुआ या एक संगठित अपराध, आतंकवादी कार्य में शामिल, नशीली दवाओं से संबंधित अपराध, हथियारों का अवैध कब्ज़ा, हत्या, बलात्कार, एसिड हमला, जाली मुद्रा, मानव तस्करी, बच्चों के खिलाफ यौन अपराध में शामिल रहा हो।
विशिष्ट सुरक्षा उपाय
सेक्शन 41 A में किसी को अरेस्ट करने से पहले नोटिस दिए जाने का प्रावधान है। यानी बिना सूचना दिए किसी को गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है। इसमें सात साल से कम की सजा वाले मामले आते हैं। सीआरपीसी की धारा 41ए को एक नया नंबर धारा 35 मिलेगा। संज्ञेय मामलों में जानकारी प्राप्त करने पर जहां अपराध के लिए 3-7 साल की सजा होती है, पुलिस अधिकारी 14 दिनों के भीतर यह पता लगाने के लिए प्रारंभिक जांच करेगा कि क्या प्रथम दृष्टया कोई मामला है या नहीं।
दया याचिका
मृत्युदंड के मामलों में दया याचिका दायर करने की समय सीमा की प्रक्रियाओं का प्रावधान है। मौत की सजा पाए किसी दोषी की याचिका के निपटारे के बारे में जेल अधिकारियों द्वारा सूचित किए जाने के बाद, वह या उसका कानूनी उत्तराधिकारी या रिश्तेदार 30 दिनों के भीतर राज्यपाल को दया याचिका प्रस्तुत कर सकते हैं। खारिज होने पर व्यक्ति 60 दिनों के भीतर राष्ट्रपति के पास याचिका दायर कर सकता है। राष्ट्रपति के आदेश के विरुद्ध किसी भी न्यायालय में अपील नहीं की जा सकेगी।
इसे भी पढ़ें: CrPC में 533, IPC में 356 और Evidence ACT में 170 धाराएं, दंड संहिता अब न्याय संहिता, एविडेंस एक्ट हुआ साक्ष्य अधिनियम, गुलामी की कौन सी निशानी को मोदी सरकार ने मिटाया
मुकदमा चलाने की मंजूरी
किसी लोक सेवक पर मुकदमा चलाने की मंजूरी देने या अस्वीकार करने का निर्णय अनुरोध प्राप्त होने के 120 दिनों के भीतर सरकार द्वारा किया जाना चाहिए। यदि सरकार ऐसा करने में विफल रहती है, तो मंजूरी दे दी गई मानी जाएगी। यौन अपराध, तस्करी आदि मामलों में किसी मंजूरी की आवश्यकता नहीं है।
जुलूस में हथियार
सीआरपीसी की धारा 144ए जिला मजिस्ट्रेट को सार्वजनिक शांति बनाए रखने के लिए किसी भी जुलूस, सामूहिक ड्रिल या सामूहिक प्रशिक्षण में हथियार ले जाने पर रोक लगाने की शक्ति देती है। जबकि उपद्रव या आशंकित खतरे के तत्काल मामलों में आदेश पारित करने के लिए डीएम को अधिकार देने वाले प्रावधान सीआरपीसी की धारा 144 में यथावत हैं, हथियार ले जाने पर रोक लगाने के प्रावधान का उल्लेख नहीं है।
गिरफ्तारी के बिना नमूने
विधेयक में मजिस्ट्रेट के लिए प्रावधान है कि वह किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार किए बिना जांच के लिए अपने हस्ताक्षर, लिखावट, आवाज या उंगलियों के निशान के नमूने देने का आदेश दे सकता है।
पुलिस द्वारा हिरासत
निवारक कार्रवाई के तहत दिए गए निर्देशों का विरोध करने, इनकार करने या अनदेखी करने वाले किसी भी व्यक्ति को हिरासत में लेने के लिए पुलिस के लिए प्रावधान हैं।
चार्जशीट, फैसला
किसी भी मामले में 90 दिन के अंदर चार्जशीट फाइल करनी पड़ेगी। किसी मामले में बहस पूरी होने के बाद एक महीने के भीतर कोर्ट को फैसला सुनाना होगा। पुलिस अधिकारियों के खिलाफ ट्रायल चलाने का फैसला सरकार को 120 दिन में करना होगा।