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चंद्रयान-3 के साइंटिस्ट पी वीरामुथुवेल ने बयां किया अपना रोचक सफर
Manish Sahu
1 Sep 2023 5:04 PM GMT
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नई दिल्ली: चंद्रयान-3 की सफल लांचिंग के बाद इससे जुड़ी ढेरों कहानियां सामने आ रही हैं। ऐसी ही एक कहानी है इस मिशन के प्रोजेक्ट डायरेक्टर रहे पी वीरामुथुवेल की। वीरामुथुवेल इसरो से काफी पहले से जुड़े हुए हैं और एक युवा वैज्ञानिक के तौर उन्होंने उल्लेखनीय काम किया है। अपनी लीडरशिप क्वॉलिटी के चलते उन्हें यहां पहचान मिली थी और इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। चंद्रयान-3 की सफल लांचिंग से पहले उन्होंने तमिलनाडु के एक स्कूल में छात्रों को रिकॉर्डेड वीडियो के जरिए अपने जीवन की कुछ खास बातें बताई थीं। इसी दौरान वीरामुथुवेल ने कहा था कि अगर मैं ऐसा कर सकता हूं तो कोई भी कर सकता है।
दिलचस्प है कहानी
वीरामुथुवेल के इस सफर की कहानी भी बेहद दिलचस्प है। 15 फरवरी, 2017 को इसरो ने रिकॉर्ड 103 सैटेलाइट लांच की थी। इन्हें पीएसएलवी सी 37 रॉकेट के जरिए लांच किया गया था। इसकी सफल लांचिंग के बाद तत्कालीन इसरो चेयरमैन एएस किरण कुमार ने एक युवा वैज्ञानिक को मिशन के बारे में कुछ शब्द बोलने के लिए बुलाया। यह युवा वैज्ञानिक थे पी वीरामुथुवेल और उन्होंने अपने संक्षिप्त संबोधन कहाकि नैनोसैटेलाइट टीम की ओर से, मैं सभी उप निदेशकों, कार्यक्रम निदेशकों, एसआरसी सदस्यों और पीएसआर सदस्यों को धन्यवाद देता हूं जिन्होंने हमें इन दो उपग्रहों - पहले दो नैनो उपग्रहों को बनाने के लिए मार्गदर्शन किया। हमने इसे नौ महीने के समय में बनाया है। यही वह मौका था जब उन्हें पहचान मिली थी। वीरामुथुवेल ने 10-15 युवा वैज्ञानिकों के समूह के साथ पीएसएलवी सी 37 लॉन्च के लिए केवल नौ महीनों के भीतर दो भारतीय नैनो उपग्रहों को साकार करने में अहम भूमिका निभाई थी। यह चंद्रयान-3 मिशन के लिए प्रोजेक्ट डायरेक्टर के रूप में उनके उभरने की दिशा में एक अहम कदम था।
सरकारी स्कूल से पढ़ाई
तमिलनाडु के सरकारी स्कूल में पढ़े वीरामुथुवेल, एक रेलवे कर्मचारी के बेटे हैं। उनके ही शब्दों में कहें तो औसत से ऊपर उठने के लिए उन्होंने कड़े अनुशासन के साथ मेहनत की है। तमिलनाडु के स्कूल में दिखाए गए वीडियो में वह कहते हैं कि मैं बेहद साधारण इंसान हूं। अगर मैं पढ़ाई-लिखाई और कामकाज में इतनी ऊंचाई पर पहुंच सकता हूं तो कोई भी ऐसा कर सकता है। वह कहते हैं कि सभी को मौके मिलते हैं, डिपेंड यह करता है कि आप उस मौके को कैसे भुनाते हैं। वीरामुथुवेल ने कहा कि मैं विल्लुपुरम गांव में पैदा हुआ और वहीं के सरकारी स्कूल में पढ़ाई की। दसवीं तक मैं उसी स्कूल में पढ़ता रहा। उन्होंने आगे बताया कि स्कूली दिनों में मैं एक औसत छात्र था। स्कूल की पढ़ाई करने के बाद मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि आगे कहां और क्या पढूं? मेरे घर में किसी का भी पढ़ाई-लिखाई का बैकग्राउंड नहीं रहा था।
इंजीनियरिंग में यूं बढ़ा रुझान
वीरामुथुवेल की इंजीनियरिंग में रुचि तब बढ़ी जब उन्होंने मैकेनिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा कोर्स में दाखिला लिया। वीडियो में वह बताते हैं कि इस कोर्स के दौरान मुझे इंजीनियरिंग काफी पसंद आ गई। मैंने 90 फीसदी नंबर हासिल किए। इस सबका नतीजा यह हुआ कि मुझे बैचलर ऑफ इंजीनियरिंग कोर्स के लिए चेन्नई के श्री साईं राम इंजीनियरिंग कॉलेज में मेरिट के आधार पर इंजीनियरिंग सीट मिली। उन्होंने आगे बताया कि इंजीनियरिंग की पढ़ाई के दौरान हर सेमेस्टर में पहला या दूसरा स्थान प्राप्त करता था। वह कहते हैं कि ऐसा इसलिए नहीं हो रहा था मैं हर वक्त पढ़ता था। बल्कि, मुझे नंबर इसलिए मुझे मिल रहे थे क्योंकि जो कुछ भी मैं पढ़ता था उसे उसे समझने की कोशिश करता था। यही कारण है कि मैं अच्छे अंक हासिल करने में सफल रहा।
ऐसे पहुंचे इसरो
इंजीनियरिंग में ग्रेजुएशन लेवल पर अच्छे प्रदर्शन के चलते वीरामुथुवेल को पीजी में आरईसी त्रिची में एडमिशन मिला। यहां पर उन्होंने 9.17 सीजीपीए हासिल किया और कैंपस प्लेसमेंट में तमिलनाडु के लक्ष्मी मशीन वर्क्स में उनका चयन हो गया। वीरामुथुवेल बताते हैं कि काम करने के दौरान मेरी रुचि एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में बढ़ गई। फिर मुझे हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड, बेंगलुरु के हेलीकॉप्टर डिवीजन के रोटरी विंग रिसर्च एंड डेवलपमेंट डिवीजन में काम करने का अवसर मिला। यहां पर उन्हें एक डिजाइन इंजीनियर के रूप में काम करने का मौका मिला था। इसी दौरान बेंगलुरु स्थित इसरो सैटेलाइट सेंटर में प्रोजेक्ट इंजीनियर की वैकेंसी आई। वीरामुथुवेल ने बाद में कई रिमोट सेंसिंग और वैज्ञानिक उपग्रहों पर एक प्रोजेक्ट मैनेजर के रूप में काम किया। 2013 में वह मार्स ऑर्बिटर मिशन से जुड़े थे।
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