आईसीआईसीआई बैंक की पूर्व CEO चंदा कोचर को बॉम्बे हाई कोर्ट से बड़ा झटका लगा है. कोर्ट ने उनके टर्मिनेशन को 'प्रथम दृष्टया' सही बताया है. न्यायमूर्ति आरआई छागला इस मामले की सुनवाई कर रहे थे. सुनवाई के दौरान उन्होंने कहा कि आईसीआईसीआई बैंक की पूर्व सीईओ कोचर 'बेदाग' कोर्ट के पास नहीं आई थीं, उन्होंने अज्ञानता का नाटक किया था.
इसके साथ ही कोर्ट ने बैंक के खिलाफ उनके मुकदमे से जुड़े अंतरिम आवेदन को भी खारिज कर दिया. न्यायमूर्ति आरआई छागला की एकल पीठ ने कोचर को यह निर्देश भी दिया कि वह 2018 में हासिल किए गए बैंक के 6.90 लाख शेयरों का सौदा न करें. अदालत ने कोचर को छह महीने के भीतर एक हलफनामा दायर करने के लिए कहा, जिसमें अगर शेयरों का कोई सौदा किया गया हो, तो उस बारे में बताना होगा.
दरअसल ICICI बैंक और चंदा कोचर का यह मामला थोड़ा पुराना है. ICICI बैंक ने मई 2018 में वीडियोकॉन समूह को 3,250 करोड़ रुपये के लोन देने में कोचर की कथित भूमिका के बारे में शिकायत मिलने के बाद उनके खिलाफ जांच शुरू की थी. आरोप लगा कि कर्ज देने से कोचर के पति दीपक कोचर को फायदा हुआ था. इसके बाद कोचर (Chanda Kochhar) छुट्टी पर चली गईं और समय से पहले उन्होंने रिटायरमेंट के लिए आवेदन किया, जिसे कि स्वीकार लिया गया. हालांकि बाद में बैंक ने फैसला किया कि कोचर के अक्टूबर 2018 में नौकरी छोड़ने को सामान्य इस्तीफी नहीं माना जाएगा. बल्कि 2019 में उन्हें बर्खास्त कर दिया गया.
बैंक ने अप्रैल 2009 से मार्च 2018 तक भुगतान किए गए सभी बोनस, स्टॉक विकल्पों को वापस लेने का फैसला किया, जो लगभग 7,41,36,777 रुपये था. कोचर ने हाई कोर्ट के सामने अपनी याचिका में कहा था कि बैंक अपनी संविदात्मक प्रतिबद्धताओं से मुकर गया और पहले से इस्तीफा दे चुके चुके व्यक्ति को बर्खास्त नहीं कर सकता. फिर कोचर ने अपने कर्मचारी स्टॉक विकल्प (ईएसओपी) को बहाल करने की मांग की थी, जिनकी कीमत कई करोड़ रुपये है.