भारत
केंद्र सरकार ने अलपन बंद्योपाध्याय को थमाया कारण बताओ नोटिस, ये है मामला
Deepa Sahu
31 May 2021 4:24 PM GMT
x
बंगाल के मुख्य सचिव अलपन बंद्योपाध्याय को सेवानिवृत्ति के ठीक पहले केंद्र के कार्मिक मंत्रालय ने कारण बताओ नोटिस भले ही थमा दिया हो
नई दिल्ली, बंगाल के मुख्य सचिव अलपन बंद्योपाध्याय को सेवानिवृत्ति के ठीक पहले केंद्र के कार्मिक मंत्रालय ने कारण बताओ नोटिस भले ही थमा दिया हो, लेकिन उनके खिलाफ कार्रवाई को किसी अंजाम तक पहुंचाना आसान नहीं होगा। इसके पहले सीबीआइ के तत्कालीन निदेशक आलोक वर्मा को फायर ब्रिगेड के महानिदेशक का पद नहीं संभालने के आरोप में कारण बताओ नोटिस के साथ चार्जशीट भी जारी की गई, लेकिन कार्मिक मंत्रालय उनके खिलाफ भी कार्रवाई में विफल रहा।
बंगाल के मुख्य सचिव को कार्मिक मंत्रालय ने थमाया नोटिस
कार्मिक मंत्रालय के उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार अलपन ने मुख्य सचिव के रूप में तीन माह सेवाविस्तार छोड़कर सेवानिवृत्त होने का फैसला केंद्र की कानूनी कार्रवाई से बचने के लिए ही किया। सेवाविस्तार की स्थिति में वे मुख्य सचिव के रूप में काम कर रहे होते तो उनके खिलाफ आदेश के अवमानना के आरोप में कार्रवाई हो सकती थी। उनकी पेंशन और ग्रेच्युटी तक रोकी जा सकती थी। लेकिन सेवानिवृत्ति के बाद उनके खिलाफ कार्रवाई का कार्मिक मंत्रालय का अधिकार सीमित हो जाता है।
सेवानिवृत्त होने के कारण कार्रवाई करने का दायरा हुआ सीमित
अलपन बंद्योपाध्याय के मामले से काफी हद तक मिलता जुलता मामला सीबीआइ के तत्कालीन निदेशक आलोक वर्मा का भी था। जनवरी 2019 में आलोक वर्मा को सीबीआइ निदेशक के पद से हटाकर फायर ब्रिगेड का महानिदेशक बनाया गया। लेकिन वर्मा ने यह कहते हुए फायर ब्रिगेड के महानिदेशक का पदभार संभालने से इन्कार कर दिया कि उनकी सेवानिवृत्ति का समय काफी पहले निकल चुका है। वे दो साल के तय कार्यकाल के कारण सीबीआइ निदेशक के पद पर थे। ऐसी स्थिति में वे नया कार्यभार नहीं संभाल सकते। कारण बताओ नोटिस और चार्जशीट के बावजूद वर्मा के खिलाफ कार्रवाई नहीं हो सकी।
कार्मिक मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि जिस तरह से आलोक वर्मा ने पहले सेवानिवृत्ति की उम्र पार जाने का हवाला देते हुए कार्मिक मंत्रालय के आदेश को मानने से इन्कार कर दिया था। उसी तरह अलपन भी कार्मिक मंत्रालय में रिपोर्ट नहीं कर पाने की सफाई दे सकते हैं। उनकी इस सफाई को नजरअंदाज भी नहीं किया जा सकता है।
आइएएस और आइपीएस के मामले में सामान्य रूप से केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के लिए राज्य सरकार और संबंधित अधिकारी की सहमति जरूरी होती है। लेकिन आइएएस कैडर रूल की धारा 6(1) में कार्मिक मंत्रालय को किसी भी अखिल भारतीय सेवा के अधिकारी को रिपोर्ट करने का आदेश देने का अधिकार है। अलपन के मामले में केंद्र ने इसी अधिकार का प्रयोग किया था। साथ ही राज्य सरकार की सहमति अनिवार्यता का भी प्रविधान है।
ऐसे में अलपन बंद्योपाध्याय पर आदेश की अवमानना का आरोप साबित करना मुश्किल होगा। हालांकि एक उदाहरण ऐसा भी है जब राज्य सरकार की सहमति के बगैर ही तमिलनाडु कैडर की आइपीएस अर्चना रामसुंदरम को सीबीआइ में प्रतिनियुक्ति पर दिल्ली बुला लिया गया था। लेकिन उस मामले में रामसुंदरम की सहमति थी। जबकि इस मामले में अलपन अनिच्छुक थे।
यही नहीं, अखिल भारतीय सेवा के अधिकारियों की पेंशन और ग्रेच्युटी के तय नियम हैं। केंद्र उसमें बहुत ज्यादा दखलअंदाजी नहीं कर सकता। जाहिर है कि अलपन की पेंशन व ग्रेच्युटी रोकने में कार्मिक मंत्रालय के हाथ बंधे होंगे। चूंकि अब तक रिटायरमेंट के बाद आइएएस अधिकारियों और जजों की किसी पद पर नियुक्ति का कोई प्रतिबंध नहीं है, इसलिए ममता सरकार ने दांव चलते हुए अलपन को अपना सलाहकार बना लिया है। इस मामले में उन्हें रोका नहीं जा सकता।
Next Story