क्या अदालतों में हथियार लेकर जा सकते हैं, क्या होता है अदालतों का सुरक्षा प्रोटोकॉल
लखनऊ: लखनऊ की कोर्ट में मुख्तार के करीबी संजीव माहेश्वरी उर्फ जीवा की वकील की ड्रेस में घात लगाकर बैठे हमलावर ने हत्या कर दी. उसकी गोलियों से एक बच्ची भी मारी गई. कोर्ट रूम के सामने ही हमलावर ने दनादन 06 गोलियां दाग दीं.
करीब एक महीने पहले हमलावर वकील के लिबास में दिल्ली के साकेत कोर्ट पहुंचा. आरोपी महिला को 04 गोलियां मारकर उसकी हत्या कर दी. इसी तरह कड़कड़डूमा कोर्ट में दिनदहाडे़ गैंगवार हमला हो गया. ये देशभर की अदालतों में हो रहा है. अक्सर इस तरह की खबरें सुनाई पड़ती हैं. जानते हैं कि देशभर की अदालतों का सुरक्षा प्रोटोकॉल क्या है और इसकी सुरक्षा करना किसकी जिम्मेदारी है.
देश की तमाम अदालतों के लिए एक पुख्ता सुरक्षा प्रोटोकॉल ये है कि ये ऐसी जगह होनी चाहिए जो एकदम सुरक्षित हो, क्योंकि यहां लोग न्याय के लिए आते हैं. अपराधी अदालत में पुलिस के जरिए पेश किए जाते हैं तो कई बार वहां आकर समर्पण भी करते हैं. ये आपसी विरोधी भी वहां मुकदमा लड़ने आते हैं. तो कुल मिलाकर ये ऐसी ऐसी जगह है जो जजों से लेकर वहां आने वाले हर शख्स के लिए सुरक्षित होनी चाहिए.
अदालत का प्रोटोकॉल भी यही कहता है कि ये सुरक्षा की दृष्टि से सबसे सुरक्षित होनी ही चाहिए. यहां तक कि कोर्ट परिसर और कोर्ट रूम में पुलिस को भी हथियार लेकर आने की इजाजत नहीं होती लेकिन आमतौर पर ज्यादातर अदालत परिसरों में जांच की कोई व्यवस्था नहीं है. हालांकि केंद्रीय गृह मंत्रालय समय समय पर राज्यों को इसे लेकर दिशानिर्देश भेजता है.
– किसके तहत आती है अदालतों की सुरक्षा?
– चाहे वो सबआर्डिनेट कोर्ट हो या फिर जिला अदालत, हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट. इसकी सुरक्षा का जिम्मा राज्य का विषय है. लिहाजा ये अदालतें जहां हों वहां के राज्य प्रशासन और जिला प्रशासन पर उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने का जिम्मा होता है.
– अदालतों की सुरक्षा की समीक्षा कैसे होती है?
– हर अदालत का अपना एक प्रोटेक्शन रिव्यू ग्रुप होता है, जिसमें अदालत, पुलिस और जिला प्रशासन के लोग शामिल होते हैं. वह उनकी सुरक्षा की समय समय पर समीक्षा करता है और सुरक्षा पर ध्यान देता है.
क्या अदालत में कोई भी हथियार लेकर जा सकता है?
– नियम और अदालत का सुरक्षा प्रोटोकाल ये कहता है कि जज के सुरक्षा गार्डों या अदालत के अंदरुनी सुरक्षा गार्डों के अलावा इस परिसर में कोई हथियार नहीं रख सकता. पुलिस भी नहीं. लेकिन देशभर की अदालतों में इसका धड़ल्ले से उल्लंघन होता है. अदालत परिसरों में प्रवेश करने वालों की जांच का कोई तंत्र नहीं है,लिहाजा कोई भी किसी भी तरह वहां घुस सकता है.
– क्या रेलवे की तर्ज पर अदालतों के लिए प्रोटेक्शन फोर्स की जरूरत है?
– कुछ सालों पहले इसकी मांग की गई थी कि देशभर की अदालतों के लिए रेल प्रोटेक्शन फोर्स की तरह स्पेशल सुरक्षा यूनिट बनाई जाए, जिसमें राज्य द्वारा दिए गए पुलिस के जवान ही रखे जाएं लेकिन ये जजों के नियंत्रण में रहे लेकिन ये बात आई गई हो गई.
– दिल्ली के सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में तो सुरक्षा के खास इंतजाम रहते हैं, वो क्या हैं?
– दिल्ली के सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में सुरक्षा का इंतजाम देश की दूसरी अदालतों की तुलना में कहीं ज्यादा सुनियोजित है. इस सुरक्षा का पालन हर किसी को करना भी होता है. यहां तक कि जब सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में किसी मंत्री और आला अफसर को जाना होता है तो वह भी इस जांच से गुजरता है.
क्या हैं ये सुरक्षा का इंतजाम?
– दिल्ली के सुप्रीम कोर्ट में प्रवेश के मुख्य गेट पर हर किसी की जांच होती है और कोई भी शख्स हथियार लेकर नहीं जा सकता. बेशक पुलिस भी नहीं. हर वकील, स्टाफ और जज के लिए खास कार्ड जारी हुआ है, जो उसके पास होता है. अलबत्ता सुप्रीम कोर्ट के परिसर के अंदर 05 सशस्त्र सुरक्षा गार्ड जरूर मौजूद रहते हैं. चीफ जस्टिस की सुरक्षा उनके साथ रहती है लेकिन कोर्ट रूम के बाहर तक ही. ये सुरक्षा का पहला घेरा होता है. इसके बाद दूसरा सुरक्षा घेरा कोर्ट रूम में प्रवेश करने से पहले होता है, जहां हर किसी की जांच होती है.
– जिनका मुकदमा दिल्ली के सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट में चल रहा होता है, वो परिसर में कैसे दाखिल होता है?
– उसको कोर्ट के बाहर विंडो से अपना विजिटर पास बनवाना होता है, इसके बाद ही उसको अदालत परिसर में प्रवेश मिलता है लेकिन सुरक्षा का ये सिस्टम केवल दिल्ली में सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में है, वो भी वर्ष 2013 के बाद तब हुआ जबकि हाईकोर्ट परिसर में बम ब्लास्ट हुआ. देश की अन्य अदालतों में ऐसा कोई सुरक्षा सिस्टम नहीं है, जिसकी जरूरत अब महसूस की जाने लगी है.
– निचली अदालतों के जजों को क्या सुरक्षा कवर मिलता है?
– निचली अदालतों यानि जिला सत्र जजों को एक्स कैटेगरी की सुरक्षा मिलती है, जिसमें राज्य पुलिस के दो से चार सशस्त्र जवान होते हैं. उन्हें घरों पर भी दिन रात की सुरक्षा मिलती है. चीफ जूडिशियल मजिस्ट्रेट और जिला मुख्य जज को घर की सुरक्षा के लिए 05 जवान मिलते हैं तो साथ रहने के लिए 02.
सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के जजों को क्या सुरक्षा कवर मिलता है?
– भारत के चीफ जस्टिस को जेड या जेड प्लस सेक्युरिटी मिलती है. इसे उनके कार्यकाल में बरकरार रखा जाता है.हालांकि वो अपनी सुरक्षा की समीक्षा खुद करके इसे बढ़ा या घटा सकते हैं.
सुप्रीम कोर्ट के जजों को वाई सेक्युरिटी मिलती है हालांकि ये जेड प्लस तक बढ़ सकती है अगर जरूरी हो तो. उनके सरकारी आवास पर भी समुचित सुरक्षा होती है.
हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को वही सुरक्षा मिलती है जो मुख्यमंत्री को मिलती है. इसका स्तर वाई से जेड प्लस तक हो सकता है. ये स्थितियों पर निर्भर करता है. हाईकोर्ट के जजों को वही सुरक्षा मिलती है जो राज्य के कैबिनेट मिनिस्टर को दी जाती है. हाईकोर्ट के जज को 05 सुरक्षा गार्डों का एस्कॉर्ट मिलता है तो बंगले पर 04 से 06 जवान हमेशा रहते हैं.