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नौसेना के लिए इलेक्ट्रिक प्रोपल्शन सिस्टम में मदद करेगा ब्रिटेन
jantaserishta.com
29 Nov 2024 10:03 AM GMT
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नई दिल्ली: भारत और इंग्लैंड के बीच एक महत्वपूर्ण सैन्य समझौता हुआ है। नौसेना के लिए इलेक्ट्रिक प्रोपल्शन सिस्टम के डिजाइन और विकास पर सहयोग के लिए दोनों देशों के रक्षा मंत्रालयों के बीच यह समझौता हुआ है। इसके लिए दोनों देशों ने एक आशय पत्र पर पोर्ट्समाउथ में हस्ताक्षर किए गए हैं। इससे भारतीय नौसेना को लाभ मिलेगा।
शुक्रवार को इस संबंध में जानकारी देते हुए रक्षा मंत्रालय ने बताया कि यह हस्ताक्षर इलेक्ट्रिक प्रोपल्शन क्षमता साझेदारी की तीसरी संयुक्त कार्य समूह बैठक का हिस्सा है। यह समझौता उन्नत प्रौद्योगिकियों के स्वदेशी विकास को बढ़ावा देने की प्रतिबद्धता का भी प्रतीक है।
रक्षा मंत्रालय के मुताबिक इस आशय-पत्र के माध्यम से भविष्य में नौसैनिक जहाजों के लिए इलेक्ट्रिक प्रोपल्शन क्षमता के सह-डिजाइन पर काम होगा। इसके अलावा सह-निर्माण और सह-उत्पादन में सहयोग के लिए भी एक व्यापक रूपरेखा के तौर पर कार्य किया जाएगा। यह निर्माण भारतीय शिपयार्ड में बनाने की योजना है। इसके अंतर्गत लैंडिंग प्लेटफ़ॉर्म डॉक्स में पूर्ण इलेक्ट्रिक प्रोपल्शन सिस्टम होने की अवधारणा की गई है।
भारतीय रक्षा मंत्रालय के संयुक्त सचिव (नौसेना प्रणाली) राजीव प्रकाश और ब्रिटिश रक्षा मंत्रालय के जहाज संचालन एवं क्षमता एकीकरण निदेशक रियर एडमिरल स्टीव मैकार्थी के बीच इस आशय पत्र पर हस्ताक्षर करने के साथ-साथ इसका आदान-प्रदान किया।
गौरतलब है कि सशस्त्र बलों और उद्योग जगत के बीच सहयोग को बढ़ावा देने के लिए नई दिल्ली में एक 'रक्षा भागीदारी दिवस' भी आयोजित किया जा रहा है। 28 व 29 नवंबर को यह कार्यक्रम सरकार और व्यावसायिक हितधारकों के बीच सेतु का काम कर रहा है। बिजनेस टू गवर्नमेंट और बिजनेस-टू-बिजनेस बैठकों की श्रृंखला के माध्यम से रणनीतिक जुड़ाव को सुविधाजनक बनाने के लिए यह आयोजन है। चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल अनिल चौहान, सचिव (रक्षा उत्पादन) संजीव कुमार के साथ मिलकर इस कार्यक्रम का उद्घाटन किया है।
इस कार्यक्रम में रक्षा मंत्रालय और सशस्त्र बलों की 200 से अधिक कंपनियां और 100 अधिकारी भाग ले रही हैं। ये कंपनियां प्रौद्योगिकी और खरीद से जुड़ी हैं। इसके अलावा 75 कंपनियों द्वारा एक प्रदर्शनी का आयोजन किया गया है। इसमें देश की रक्षा क्षमताओं के निर्माण में उद्योग जगत की भूमिका पर जोर दिया जा रहा है।
कार्यक्रम में प्रमुख ठेकेदार, ओईएम, उत्पादक, आपूर्तिकर्ता, सेवा प्रदाता, एमएसएमई, स्टार्टअप, उद्योग संघ और निवेशक, रक्षा मंत्रालय और सशस्त्र बलों के खरीद प्रक्रिया से जुड़े अधिकारियों के साथ बातचीत करने के लिए एकजुट हुए हैं। इनमें डीआरडीओ और तटरक्षक अधिकारी भी शामिल हैं।
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