ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान की शौर्यगाथा, खौफ खाता था पाकिस्तान
कइयों ने दी है कुर्बानी, धरती मां के वास्ते
मिटा दिया था जो भी आया इस देश के रास्ते
लद्दाख या सियाचिन की बर्फीली घाटियां हों या जैसलमेर की तपती रेत. समंदर की लहरें हों या आसमान से आते तूफान. जो हमारी हिफाजत करता है वो हर हिंदुस्तानी के दिल के करीब होता है. भारत मां के एक ऐसे ही वीर सिपाही थे ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान. जिनके त्याग, बलिदान और देशभक्ति को कभी भुला नहीं सकते. 'नौशेरा के इस शेर' ने महज 36 साल की उम्र में शौर्य और पराक्रम की जो गाथा लिखी, वो भारत के इतिहास में अजर-अमर है. ब्रिगेडियर उस्मान ने जब देश के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया तो उनके 36वें जन्मदिन पर सिर्फ 12 दिन बचे थे. उन्होंने इस छोटी सी उम्र में वो सब हासिल किया जो लोग कई जन्मों में भी हासिल नहीं कर पाते. उस्मान का जन्म 15 जुलाई 1912 को उत्तर प्रदेश के मऊ जिले के बीबीपुर गांव में हुआ था.
ब्रिगेडियर उस्मान 1948 की जंग में शहीद होने वाले सबसे बड़े भारतीय सैनिक अधिकारी थे. उनकी शहादत को 74 वर्ष पूरे हो गए हैं. भारत माता का यह सपूत 3 जुलाई 1948 को पाकिस्तानी सेना से लड़ते हुए शहीद हो गया था.
जानकारों का हमेशा से यह मानना रहा है कि ब्रिगेडियर उस्मान शहीद ना होते तो देश के पहले मुस्लिम थलसेना प्रमुख होते. ये कहानी केवल एक सैनिक की वीरता ही नहीं एक सैनिक के सिद्धांतों की कहानी है. एक सैनिक के ऐसे विश्वास की जो पाकिस्तान के तिकड़मी चेहरे पर हिंदुस्तान का पहला तामचा था. बहुत काबिल अफसर थे उस्मान. जब भारत और पाकिस्तान का बंटवारा हो रहा था. तो उनके सामने मोहम्मद अली जिन्ना की तरफ से पर्सनल ऑफर आया था कि वो पाकिस्तान आर्मी ज्वाइन करें.
वीरों में सबसे वीर थे उस्मान
मुसलमान होने की दुहाई देकर मोहम्मद उस्मान को पाकिस्तान चुनने का दबाव भी बनाया गया था. लेकिन उस्मान नहीं मानें वो बार- बार एक ही बात कहते रहे कि उनका मजहब जो भी हो पर उनका देश हिंदुस्तान है. तब जिन्ना ने ऐसा प्रस्ताव दिया जिसे ठुकरा पाना किसी के लिए भी मुश्किल नहीं होता. ऐसा दावा किया जाता है कि उस्मान को पाकिस्तान सेना का अध्यक्ष बनने का भी ऑफर दिया गया था. ये तो उस्मान थे कि उन्होंने इस ऑफर को भी ठुकरा दिया. वो अकेले ऐसे भारतीय सैनिक थे, जिनके सिर पर पाकिस्तान ने 50 हजार रुपये का इनाम रखा था, जो सन 1947 में बहुत बड़ी रकम होती थी.
आजादी के बाद से ही पाकिस्तान की धूर्त नजर कश्मीर को हड़पने की रही है. 1948 में देश की सरहद पर पाकिस्तान ने अघोषित लेकिन भीषण युद्ध छेड़ दिया. पाकिस्तान खास रणनीति के तहत आगे बढ़ रहा था. वो पुंछ तक कब्जा कर कश्मीर को भारत से काट देना चाहता था. इसी के तहत उसने झंगड़ पर कब्जा किया. झंगड़ पर कब्जा करने से पाकिस्तान को नौशेरा, राजौरी और पुंछ पर नियंत्रण करने में आसानी हो रही थी. युद्ध में भारत को अपनी पकड़ बनाने के लिए पाकिस्तान को यहां से पूरी तरह से बेदखल करना था. क्योंकि धीरे- धीरे पाकिस्तानी सेना नौशेरा को चारों तरफ से घेर रही थी. नौशेरा राजनयिक और सैन्य दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण था. इसके जरिए पाकिस्तानी सेना पूरे कश्मीर पर कब्जा कर सकती थी. ब्रिगेडियर उस्मान इस बात को अच्छी तरह से समझते थे. वहीं पाकिस्तान को भी मालूम था नौशेरा को फतह किए बिना आगे बढ़ना बेहद मुश्किल है.
10 मार्च, 1948 को मेजर जनरल कलवंत सिह ने झंगड़ रोड पर भजनोआ से पाकिस्तानी सेना को हटाना शुरू करें. ब्रिगेडियर उस्मान ने अपने सैनिकों का मनोबल बढ़ाते हुए कहा कि 'पूरी दुनिया की निगाहें आप के ऊपर हैं. हमारे देशवासियों की उम्मीदें और आशाएं हमारे प्रयासों पर लगी हुई हैं. हमें उन्हें निराश नहीं करना चाहिए. हम बिना डरे झंगड़ पर कब्जा करने के लिए आगे बढ़ेंगे. भारत आपसे अपना कर्तव्य पूरा करने की उम्मीद करता है.' इसे 'ऑपरेशन विजय' का नाम दिया गया था. 18 मार्च को झंगड़ भारतीय सेना के नियंत्रण में आ गया था.
दिसंबर, 1947 में भारतीय सेना के हाथ से झंगड़ निकल जाने के बाद 50 पैरा ब्रिगेड के कमांडर ब्रिगेडियर उस्मान ने राणा प्रताप की तरह प्रण किया था कि वो तब तक पलंग पर नहीं सोएंगे जब तक झंगड़ दोबारा भारतीय सेना के नियंत्रण में नहीं आ जाता. जब झंगड़ कब्जे में आया तो ब्रिगेडियर उस्मान के सोने के लिए पलंग मंगवाया गया. ब्रिगेड मुख्यालय पर पलंग नहीं था. तब पास के गांव से पलंग उधार लाया गया. 6 फरवरी 1948 को पाकिस्तान ने नौशेरा पर बहुत बड़ा हमला कर दिया. ब्रिगेडियर उस्मान का नेतृत्व ऐसा था उसी दिन जीत भारत ने हासिल कर ली. तभी उस्मान को नोशेरा का शेर कहा जाने लगा था. वो पूरे देश में मशहूर हो गए. ब्रिगेडियर उस्मान ने एक तो पाकिस्तान की पेशकश को ठुकराई थी. उस पर ऐसी बहादुरी दिखाई कि एक के बाद एक दुश्मन के जबड़े से अपने इलाके छीनकर वापस ले आए. पाकिस्तान इस हार का बदला लेना चाहता था. इसलिए उसने उस्मान का सिर कलम करने वाले को इनाम देने की घोषणा कर दी. नौशेरा पर हमले के दौरान उन्हें बताया गया कि कुछ पाकिस्तानी सेना के जवान एक धार्मिक इमारत के पीछे छिपे हैं. भारतीय सैनिक वहां पर फायरिंग करने से झिझक रहे थे. उस्मान ने कहा कि अगर धार्मिक इमारत का इस्तेमाल दुश्मन को शरण देने के लिए किया जाता है तो वो पवित्र नहीं है. उन्होंने उस इमारत को ध्वस्त करने के आदेश दिए.
तीन जुलाई 1948 को झंगड़ पर उसने पांचवां हमला किया शाम के लगभग 6 बज रहे थे. पाकिस्तान की तरफ से जबरदस्त गोलीबारी हो रही थी. ब्रिगेडियर उस्मान को उनके एक अफसर ने कहा कि दूसरे इलाके में चले जाएं क्योंकि यहां बहुत खतरा है. लेकिन उम्मान नहीं माने. बंकर में बैठकर आदेश देने के बजाए वो मोर्चे पर डटे रहे. इसी दौरान उस्मान के ठीक सामने 25 पाउंड का एक गोला आकर गिरा उनके पूरे शरीर पर छर्रे घुस गए. झंगड़ और सैनिक तो बच गए पर ब्रिगेडियर उम्मान देश की आन पर शहीद हो गए. जाते जाते उनके अंतिम शब्द थे 'हम तो जा रहे हैं, पर देश की जमीन के एक भी टुकड़े पर दुश्मन का कब्जा न होने पाए'.