साहित्य अकादेमी में डॉ. जगमोहन शर्मा की पुस्तकों का लोकार्पण
समारोह के शुरू में अपनी पुस्तकों से परिचय कराते हुए डॉ. जगमोहन शर्मा ने कहा कि भारतीय मेधा जटिलता को स्वीकार नहीं करती। यहां गूढ़ से गूढ़ बातों को सरल, संक्षिप्त भाषा में कहने और समझाने की परंपरा रही है। इसीलिए समाज में दोहों की इतनी व्यापक स्वीकृति है। संस्कृत के इन महाकाव्यों को जन-जन तक पहुंचाने के लिए इसके दोहांतरण की आवश्यकता और दोहा परंपरा पर उन्होंने कहा, "दोहा संतों की विधा है, कथनी करनी एक। शुद्ध हृदय मन आत्मा, दोहे लिखो अनेक।।"
कार्यक्रम की अध्यक्ष एवं हंसराज कॉलेज की प्रधानाचार्य प्रो. रमा ने कहा, "गीता सबके लिए संजीवनी है। इसमें जीवन प्रबंधन के सारे मंत्र हैं। आज हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं तो ऐसे में भारतीय ज्ञान परंपरा की सबसे अद्भुत कृति "श्रीमद्भगवद्गीता" का भी घर-घर पहुंचना जरूरी है।" उन्होंने कहा, "आजकल कविता का शिल्प बदल रहा है। गीता जैसे विशुद्ध ज्ञान के ग्रंथ जिसके एक-एक श्लोक पर पुस्तकें लिखी जा सकती हैं, उसका इतना सरल और स्पष्ट दोहांतरण कर डॉ. जगमोहन शर्मा ने गागर में सागर भरने का काम किया है। संस्कृत के इन महाकाव्यों के गूढ़ ज्ञान को दोहों के माध्यम से जन-जन तक पहुंचाने का यह अनुकरणीय कार्य वर्षों की साधना का परिणाम है। इन किताबों की विशिष्टता इसमें है कि दोहांतरण के दौरान भी इन कृतियों के मूल कथातत्त्व को उन्होंने अपने अनुवाद में अक्षुण्ण रखा है।"
विशिष्ट वक्ता और दोहों का आधुनिक कबीर कहे जाने नरेश शांडिल्य ने कहा, "यक्षप्रिया की पाती प्रेम और विरह का अद्भुत ग्रंथ है। यहां कवि की कल्पनाशीलता विलक्षण है। रामटेक से अलकापुरी तक की जो यात्रा है, वह एक करुण वृत्तांत है। प्रेम विरह के बिना पूर्ण हो ही नहीं सकता।" उन्होंने कहा, "हिंदी साहित्य के आलोचकों का एक धड़ा प्रेम को खारिज करता है। लेकिन प्रेम से बचा कैसे जा सकता है। 'मेघदूत' के प्रेम और विरह के छंदों के अनुवाद में दोहाकार की कलम खुल कर चली है। " उन्होंने कहा कि वे खुद भी 'श्रीमद्भगवद्गीता' दोहांतरण कर रहे हैं, ऐसे में यह पुस्तक उनके लिए प्रसाद है।
विशिष्ट वक्ता सोमदत्त शर्मा ने कहा, "श्रीमद्भगवद्गीता के विशुद्ध ज्ञान को दोहे में उतार देना असाधारण साहस का काम है। यक्ष प्रिया की पाती में दोहाकार ने पूरी मौलिकता और तन्मयता के साथ इसमें डूब कर लिखा है। इतनी स्पष्टता और लावण्य विरल है। किसी कृति की सफलता इसमें है कि वह पाठक को अपनी कल्पना शक्ति के उपयोग के लिए मजबूर करे और यक्ष प्रिया की पाती में कवि इसमें पूरी तरह सफल हुए हैं।" उन्होंने कहा, “यक्ष प्रिया की पाती” में दोहों की तेरह और ग्यारह मात्राओं का शब्दश: पालन करते हुए भी डॉ. जगमोहन शर्मा ने कविता का आनंद और सौंदर्य अक्षुण्ण रखा है। यह दोहे की विधा पर उनकी असाधारण पकड़ और उनके रचनात्मक सामर्थ्य को रेखांकित करता है।"