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बॉम्बे हाईकोर्ट का बड़ा फैसला- लवासा प्रोजेक्ट को लेकर शरद पवार पर लगे आरोपों में है सच्चाई

Rani Sahu
26 Feb 2022 3:18 PM GMT
बॉम्बे हाईकोर्ट का बड़ा फैसला- लवासा प्रोजेक्ट को लेकर शरद पवार पर लगे आरोपों में है सच्चाई
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महाराष्ट्र में लवासा टाउनशिप और हिल स्टेशन प्रोजेक्ट (Lavasa Project) को लेकर शरद पवार (Sharad Pawar) और उनके परिवार पर जो आरोप लगाए गए हैं

महाराष्ट्र में लवासा टाउनशिप और हिल स्टेशन प्रोजेक्ट (Lavasa Project) को लेकर शरद पवार (Sharad Pawar) और उनके परिवार पर जो आरोप लगाए गए हैं, उनमें तथ्य है. मुंबई उच्च न्यायालय (Bombay High Court) ने अपने फैसले में स्पष्ट कहा है. लेकिन साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि इसके खिलाफ याचिका काफी देर में दायर की गई, ऐसे में अब काफी वक्त निकल गया है. इसलिए यह प्रोजेक्ट अब गिराया नहीं जा सकता. शनिवार (26 फरवरी) को दिए गए अपने फैसले में बॉम्बे हाईकोर्ट ने यह स्वीकार किया कि पवार परिवार ने लवासा प्रोजेक्ट अपने पारिवारिक मिंत्र अजित गुलाबचंद को दिलाने के लिए नियमों का उल्लेंघन किया. इसके लिए शरद पवार और सुप्रिया सुले ने अपने प्रभाव का गलत इस्तेमाल किया और अजित पवार ने उस वक्त सिंचाई मंत्री होते हुए अपने अधिकार का इस्तेमाल ही नहीं किया. उन्होंने नियमों का उल्लंघन होने दिया. इस तरह से यह प्रोजेक्ट गलत तरीके से अजित गुलाबचंद को दिया गया.

बॉम्बे हाईकोर्ट में शरद पवार और उनके परिवार पर लवासा प्रोजेक्ट को लेकर गंभीर आरोप लगाते हुए याचिका दायर की गई थी. इसी याचिका पर सुनवाई खत्म कर कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया. कोर्ट ने कहा कि लवासा प्रोजेक्ट के लिए जो नियम-कानून में बदलाव किए गए, उसमें कोई गलती नहीं की गई. लेकिन कोर्ट ने यह जरूर कहा कि यह प्रोजेक्ट अजित गुलाबचंद को ही मिले, इसके लिए गलत हथकंडे अपनाए जाने के आरोपों में तथ्य है. कोर्ट ने कहा कि प्रोजेक्ट को पूरा हुए काफी वक्त हो गया है. इसके विरोध में याचिका भी काफी देर से दायर की गई. ऐसे में प्रोजेक्ट को अब गिराया नहीं जा सकता.
शरद पवार, अजित पवार, सुप्रिया सुले पर ये हैं आरोप
नासिक के एक वकील नाना साहेब जाधव ने लवासा प्रोजेक्ट के खिलाफ एक जनहित याचिका दायर की थी. इस याचिका में उन्होंने कहा था कि तमाम विरोधों और चुनौतियों को दरकिनार करते हुए शरद पवार और उनके परिवार ने मिलकर अपने करीबी उद्योगपति अजित गुलाबचंद को यह प्रोजेक्ट दिलवाया और प्रोजेक्ट को बचाने के लिए साल 2005 के कानून में फेरबदल करवाया. याचिका में यह भी आरोप लगाया गया कि प्रोजेक्ट के लिए पर्यावरण के नियमों की धज्जियां उड़ाई गईं और राज्य सरकार के अलग-अलग विभागों से गलत तरीके से परमिशन लेकर प्रोजेक्ट को पूरा किया गया. याचिकाकर्ता ने अपनी शिकायत में यह भी आरोप लगाया कि लवासा हिल स्टेशन के प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए किसानों से कौड़ियों के मोल जमीन खरीदी गई. यानी एक तरह से कब्जाई गई.
शरद पवार ने जवाब में यह दलील सामने रखी
शरद पवार और सुप्रिया सुले ने कोर्ट में अपने ऊपर लगे आरोपों का जवाब देते हुए कहा कि याचिकाकर्ता सिर्फ प्रसिद्धि पाने के लिए इस तरह के आरोप लगा रहे हैं. उनके आरोपों में कोई तथ्य नहीं है. पर्यटन को उद्योग का ही एक भाग समझा जाए, इस संकल्पना की शुरुआत लवासा के लिए नहीं की गई. इसके लिए नियम 90 के दशक से ही अस्तित्व में थे. उन्हीं नियमों का इस्तेमाल करते हुए प्रोजेक्ट के लिए परमिशन ली गई थी.
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