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बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा- प्रदूषण कम करने के लिए श्मशानों में अंत्येष्टि के आधुनिक तकनीकों पर करें गौर

Deepa Sahu
13 May 2021 12:16 PM GMT
बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा- प्रदूषण कम करने के लिए श्मशानों में अंत्येष्टि के आधुनिक तकनीकों पर करें गौर
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बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि कोविड-19 की मौजूदा स्थिति और मौतों की संख्या में वृद्धि को देखते हुए.

बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि कोविड-19 की मौजूदा स्थिति और मौतों की संख्या में वृद्धि को देखते हुए निकाय प्राधिकारियों को प्रदूषण कम करने के लिए श्मशानों में अंत्येष्टि की आधुनिक तकनीकों की संभावना तलाशनी चाहिए।

मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्त और न्यायमूर्ति जी एस कुलकर्णी की खंडपीठ पुणे निवासी विक्रांत लाटकर की जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की। इस याचिका में श्मशानों के पास के इलाकों में वायु प्रदूषण पर चिंता जताई गई थी।
लाटकर के अधिवक्ता असीम सरोदे ने बृहस्पतिवार को अदालत को बताया कि वर्तमान में पुणे में कुछ श्मशानों में प्रतिदिन 80 से अधिक शवों का दाह संस्कार किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि इससे आसपास के क्षेत्र में बहुत अधिक प्रदूषण होता है। याचिका में कहा गया है कि कई श्मशानों की चिमनी का निर्माण मानक डिजाइन के अनुसार नहीं किया गया है, जिसके कारण निकलने वाला धुआं ऊपर की ओर नहीं जाता है। पीठ ने पुणे नगर निगम की ओर से पेश अधिवक्ता अभिजीत कुलकर्णी को याचिका के जवाब में एक हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया।
पीठ ने कहा, 'श्मशानों में नियुक्ति स्टॉफ को प्रभावी ढंग से काम करना चाहिए, विशेष तौर पर अभी। वास्तव में, सभी निकाय प्राधिकारियों को इसके लिए अब आधुनिक तकनीकों पर गौर करना चाहिए कि प्रदूषण को कैसे नियंत्रित किया जा सकता है।' अदालत ने मामले की अगले सप्ताह सुनवाई तय की है।
बुधवार को 46 हजार नए केस मिले
बता दें, बुधवार को महाराष्ट्र ने कोविड-19 के 46,781 नए मामले सामने आए थे जिससे राज्य में संक्रमितों की कुल संख्या बढ़कर 52,26,710 हो गई, जबकि 816 और मरीजों की मौत होने से मृतक संख्या बढ़कर 78,007 हो गई।
मेडिकल स्टाफ के साथ मारपीट में कितनी प्राथमिकियां दर्ज हुईं?
हाईकोर्ट ने एक अन्य याचिका की सुनवाई करते हुए महाराष्ट्र सरकार को निर्देश दिया कि वह मरीजों के रिश्तेदारों द्वारा डॉक्टरों और अन्य मेडिकल स्टाफ की पिटाई के सिलसिले में अभी तक दर्ज की गई प्राथमिकियों की जानकारी उसे दे। मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति जी. एस. कुलकर्णी की पीठ डॉक्टर राजीव जोशी द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इसमें स्वास्थ्यकर्मियों के खिलाफ हिंसा के मामलों में कमी लाने के लिए न्यायिक हस्तक्षेप का अनुरोध किया गया था। जनहित याचिका के अनुसार, महाराष्ट्र में ऐसी हिंसक घटनाओं की संख्या सबसे ज्यादा है।
डॉक्टर जोशी ने अपनी याचिका में दावा किया कि ऐसी घटनाओं पर नियंत्रण के लिए महाराष्ट्र सरकार 2010 के अधिनियम सहित अन्य मौजूदा कानूनों/प्रावधानों को लागू करने में असफल रही है। पीठ ने बृहस्पतिवार को कहा कि वर्तमान स्थिति में जबकि मेडिकल स्टाफ चौबीस घंटे काम कर रहा है, सरकार को उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए। अदालत ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह इस संबंध में वह दूसरी पीठ द्वारा पहले दिए गए आदेश का पालन करे।


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