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हम उनके योगदान को याद कर रहे हैं
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। लखनऊ: 'इस्लामिक सेंटर ऑफ इंडिया' में पुलवामा हलमे की दूसरी बरसी पर 'इंसानियत वेलफेयर सोसाइटी' के द्वारा रक्त दान कार्यक्रम का आयोजन किया गया।
धर्मगुरु मौलाना खालिद रशीद ने बताया, "सैनिक हमारी सरहदों की सुरक्षा कर अपने प्राण देते हैं। हम उनके योगदान को याद कर रहे हैं।"
लखनऊ: 'इस्लामिक सेंटर ऑफ इंडिया' में पुलवामा हलमे की दूसरी बरसी पर 'इंसानियत वेलफेयर सोसाइटी' के द्वारा रक्त दान कार्यक्रम का आयोजन किया गया।
— ANI_HindiNews (@AHindinews) February 14, 2021
धर्मगुरु मौलाना खालिद रशीद ने बताया, "सैनिक हमारी सरहदों की सुरक्षा कर अपने प्राण देते हैं। हम उनके योगदान को याद कर रहे हैं।" pic.twitter.com/YTkGhSbGjw
14 फरवरी 2019 को जम्मू से श्रीनगर की तरफ CRPF के जवानों का एक काफिला आ रहा था. इस काफिले में करीब 38 से 40 गाड़ियां शामिल थीं. जिसमें CRPF के करीब 2 हज़ार 500 जवान सवार थे. दोपहर करीब साढ़े तीन बजे पुलवामा के अवंतिपुरा इलाके के पास इस काफिले में शामिल एक बस हमले की चपेट में आ गई.
एक Suicide Bomber ने विस्फोटक से भरी एक कार से जवानों की एक बस में टक्कर मार दी थी. इसके साथ ही एक भयानक विस्फोट हुआ. और CRPF की बस के टुकड़े टुकड़े हो गए. जिस बस पर हमला हुआ, उसमें CRPF की अलग अलग बटालियन के जवान सवार थे.
बाद में जांच में ये भी पता चला कि हमले को अंजाम देने के लिए करीब 200 किलो विस्फोटक का इस्तेमाल किया गया था. ये धमाका इतना बड़ा था कि CRPF की बस का एक हिस्सा पास के एक गांव हजिबल में जाकर गिरा.
CRPF के सभी जवान छुट्टियों से वापस आ रहे थे. बर्फबारी की वजह से पिछले तीन-चार दिनों से रास्ता बंद था और रास्ता जिस दिल खोला गया हमला उसी दिन हुआ था. जवानों को Bullet Proof Vehicle और फिर उनके बीच साधारण बसों में लाया जा रहा था. आत्मघाती हमलावर ने उस बस को निशाना बनाया, जो Bullet Proof नहीं थी.
इस आत्मघाती हमलावर का नाम था आदिल अहमद डार आदिल जैश-ए- मोहम्मद का आतंकवादी था. आपमें से बहुत सारे लोगों को इस आतंकवादी का नाम भी शायद ही याद होगा. जैश-ए- मोहम्मद और उसके सरगना मसूद अज़हर का नाम भी आपने बार-बार सुना होगा. लेकिन क्या पुलवामा हमले में शहीद हुए CRPF के एक भी जवान का नाम आपको याद है?
ये जवान छुट्टियों से वापस आ रहे थे. उन छुट्टियों से जो इन्हें सिर्फ कुछ दिनों के लिए नसीब होती है. इन छुट्टियों में ये अपने परिवार की मदद करते हैं, घर की मरम्मत कराते हैं, बूढ़े माता पिता का इलाज कराते हैं, बच्चों का स्कूल में एडमिशन कराते हैं और ये सब करने के बाद जब तक इन्हें अपने लिए फुर्सत मिलती है. तब तक इनकी छुट्टियां खत्म हो चुकी होती हैं. लेकिन बिना किसी शिकायत ये जवान फिर अपना फर्ज़ निभाने चल पड़ते हैं.
और कई बार ये अपनी मंजिल तक पहुंचे उससे पहले ही आतंकवादियों के निशाने पर आ जाते हैं. अब आप सोचिए कि जब आपको अपनी छुट्टी बीच में छोड़कर दफ्तर जाना पड़ता है तो आपको कितना बुरा लगता है. दफ्तर में आपका दिन खराब बीते तो आप घर आकर अपना गुस्सा निकालने लगते हैं. अगले दिन आपका ऑफिस जाने का मन तक नहीं करता. लेकिन ये जवान ऐसा नहीं करते ये घर से निकलते हैं तो इसी मजबूत इरादे के साथ कि इन्हें कभी भी दुश्मन की गोली का सामना करना पड़ सकता है.
पुलवामा के शहीदों के साथ भी ठीक ऐसा ही हुआ था. पुलवामा को पूरे कश्मीर के सबसे संवेदनशील इलाकों में से एक माना जाता है. यहां कई आतंकवादी संगठन हमेशा सक्रिय रहते हैं और इनके निशाने पर भारत की सेना होती है.
पुलवामा में जिस जगह पर ये हमला हुआ था उसे आतंकवादियों ने बहुत ध्यान से चुना था उस दिन सड़क पर आम ट्रैफिक को रोका नहीं गया था ताकि आम लोगों को परेशानी ना हो और आतंकवादियों ने इसी का फायदा उठाया कर हमला कर दिया.
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