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लोकसभा चुनाव में बीजेपी का खराब प्रदर्शन, जानिए किस विदेशी मीडिया हाउस ने क्या की टिप्पणी

jantaserishta.com
5 Jun 2024 9:16 AM GMT
लोकसभा चुनाव में बीजेपी का खराब प्रदर्शन, जानिए किस विदेशी मीडिया हाउस ने क्या की टिप्पणी
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Lok sabha election 2024: लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजे घोषित हो चुके हैं और सभी 543 सीटों के परिणाम सामने हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पार्टी भारतीय जनता पार्टी इस बार महज 240 सीटों पर ही सिमटकर रह गई और एनडीए गठबंधन ने अनुमान से उलट प्रदर्शन करते हुए महज 292 सीटों पर जीत दर्ज की. वहीं, कांग्रेस समेत विपक्षी पार्टियों के गठबंधन इंडिया गठबंधन ने बेहद शानदार प्रदर्शन करते हुए 234 सीटें अपने नाम की हैं. भाजपा और इंडिया ब्लॉक के प्रदर्शन की विदेशी अखबारों में भी खूब चर्चा है और कहा जा रहा है कि 'मोदी को हार की परछाई में लिपटी हुई जीत' मिली है.

विदेशी अखबारों में फैजाबाद की सीट का भी जोर-शोर से जिक्र है जहां अयोध्या में राम मंदिर बनवाने और उद्घाटन के बाद भी बीजेपी उम्मीदवार को समाजवादी पार्टी उम्मीदवार से हार का सामना करना पड़ा है. वहीं, पाकिस्तान का मीडिया मोदी को मिली कम सीटों की जमकर चर्चा कर रहा है और कह रहा है कि 'मोदी सरकार की नफरत की राजनीति को भारतीय जनता ने नकार दिया है.'
पाकिस्तान का जियो टीवी लोकसभा चुनावों पर लगातार रिपोर्टिंग कर रहा है. एक रिपोर्ट में कहा गया कि बीजेपी के 400 पार सीटें पाने के मंसूबे को जनता ने तार-तार कर दिया. रिपोर्ट में कहा गया, 'मोदी की नफरत की राजनीतिक को नकार दिया गया है, 400 पार का नारा हसरत भर बनकर रह गया और बीजेपी को अपने दम पर बहुमत भी नहीं मिला. सरकार चलाने के लिए अब बीजेपी को अपने सहयोगी दलों की बैसाखी के लिए मजबूर होना पड़ेगा. बाबरी मस्जिद की जगह राम मंदिर बनाने वाली बीजेपी ने अयोध्या में अपनी हार मान ली है.'
पाकिस्तानी न्यूज चैनल की एक रिपोर्ट में हैदराबाद से भाजपा प्रत्याशी माधवी लता के असदुद्दीन ओवैसी से हारने का भी प्रमुखता से जिक्र किया गया. रिपोर्ट में कहा गया, 'चुनाव अभियान के दौरान एक मस्जिद की तरफ इशारा कर तीर चलाने वाली बीजेपी उम्मीदवार माधवी लता हार गई है. इसे मुसलमानों पर निशाना साधने की तरह से देखा गया था.'
एक अन्य रिपोर्ट में पाकिस्तानी चैनल ने कहा कि 'भारतीयों ने अपने वोट से मोदी को सजा दी है'. रिपोर्ट में कहा गया, 'कांग्रेस ने बीजेपी को उसी के हथियार से करारी शिकस्त दे दी है. कांग्रेस ने इस बार बीजेपी के 400 पार का नारा वोटर्स के लिए खौफ की वजह बना दी. राहुल गांधी लोगों को यह यकीन दिलाने में कामयाब रहे कि अगर बीजेपी को 400 सीटें मिल गईं तो वो संविधान बदल देगी और आरक्षण खत्म कर देगी.'
पाकिस्तान के एक और अखबार 'द एक्सप्रेस ट्रिब्यून' ने अपनी एक रिपोर्ट में उस वक्त का जिक्र किया है जब नतीजे आने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाजपा कार्यालय में कार्यकर्ताओं को संबोधित किया. रिपोर्ट में लिखा गया, 'पार्टी के दिग्गज रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और गृह मंत्री अमित शाह के साथ, जब मोदी आखिरकार मंच पर आए तो उनका उदास होकर बोलना बहुत कुछ कह रहा था. ऐसा शायद ही होता है कि आपको विजेता का चेहरा मायूस दिखे.'
अखबार ने लिखा कि किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला है और अब जनता दल (जेडीयू) और तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) किंगमेकर की भूमिका में उभरे हैं. दोनों ही पार्टियां पहले कांग्रेस की सहयोगी थीं लेकिन इस चुनाव के दौरान इन्होंने बीजेपी से हाथ मिला लिया.
अखबार आगे लिखता है, 'विडंबना ये है कि बीजेपी उम्मीदवार अयोध्या से हार गया जो बताता है कि हिंदू कार्ड उस तरह से नहीं चला जैसी कि एनडीए ने सोचा था. महंगाई और बेरोजगारी ने चुनावों में अहम भूमिका निभाई. विश्लेषकों का कहना है कि वोटर्स ने सांप्रदायिक राजनीति को खारिज कर दिया है. अब जबकि बीजेपी को बहुमत नहीं मिला है, मोदी को सत्ता में आने के बाद समझौते करने पड़ सकते हैं जिनके वो आदी नहीं हैं.'
अयोध्या से इंडिया गठबंधन के सपा उम्मीदवार अवधेश प्रसाद ने भाजपा उम्मीदवार लल्लू सिंह को 56 हजार से अधिक वोटों से हराया है.
पाकिस्तान के प्रमुख अखबार डॉन के एक ऑपिनियन लेख में कहा गया है कि चुनाव ने मोदी को आईना दिखा दिया है. लेख में कहा गया, 'जिन लोगों को डर था कि मोदी को एक और प्रचंड बहुमत मिलने वाला है, उन्हें सुखद आश्चर्य हुआ है. भले ही मोदी का सत्ता से जाना अभी दूर है लेकिन कुछ हफ्ते पहले की तुलना में अब यह करीब दिख रहा है. एक दशक पहले प्रधानमंत्री बनने के बाद से मोदी के पश्चिमी समकक्ष उनका आदर-सत्कार करते रहे हैं. आने वाले समय में भी मोदी का आक्रामक आचरण और रवैया शायद नहीं बदलेगा. लेकिन चुनाव में उनकी कम सीटें दिल्ली में आरएसएस की पकड़ के अंत की शुरुआत हो सकती है.'
लेख में कहा गया कि अब से मोदी एक कमजोर नेता बन जाएंगे, अमित शाह का भी यह आखिरी पड़ाव ही है. भाजपा के नेतृत्व वाले गठबंधन के अगले पांच सालों तक शासन करने की उम्मीद है. लेकिन, मौजूदा रुझानों को देखते हुए, यह इससे आगे नहीं जा पाएगा.
चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने अपनी खबर को शीर्षक दिया है- 'मोदी ने गठबंधन को मामूली बहुमत मिलने के साथ जीत का दावा किया.'
अखबार ने अपनी रिपोर्ट में मोदी की 'कमजोर' सरकार की भविष्य की आर्थिक नीतियों पर फोकस रखा है. चीनी अखबार ने एक्सपर्ट्स के हवाले से लिखा है कि मोदी के तीसरे कार्यकाल में आर्थिक बदलाव एक मुश्किल काम रहने वाला है.
ग्लोबल टाइम्स ने लिखा, 'भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को सोशल मीडिया पर एक बयान जारी कर तीसरे कार्यकाल के लिए जीत का दावा किया है. चीनी विशेषज्ञों ने कहा कि हालांकि अब चीनी मैन्यूफैक्चरिंग इंडस्ट्री के साथ प्रतिस्पर्धा करने और भारत के कारोबारी माहौल को बेहतर बनाने की मोदी की महत्वाकांक्षा को पूरा करना मुश्किल होगा.'
विशेषज्ञों के हवाले से अखबार ने लिखा मोदी की भारतीय जनता पार्टी अपने गठबंधन के बावजूद प्रचंड बहुमत हासिल करने में विफल रही जिस कारण प्रधानमंत्री के लिए आर्थिक सुधार को आगे बढ़ाना कठिन होगा. लेकिन वो राष्ट्रवाद का कार्ड खेल सकते हैं जिससे चीन-भारत संबंधों में बहुत सुधार होने की संभावना नहीं है.
बांग्लादेश के अखबार 'द डेली स्टार' ने अपने एक विश्लेषणात्मक लेख को शीर्षक दिया है- एक जीत जो हार लग रही है.
लेख में कहा गया, 'इस साल एनडीए को जो नतीजे मिले हैं, उसके कई कारण हैं जैसे चुनाव प्रचार के दौरान लगातार ध्रुवीकरण पर जोर देना, अयोध्या में राम मंदिर उद्घाटन के बाद भी उसका फायदा न मिल पाना और इंडिया गठबंधन का उदय...इन सभी ने अपनी भूमिका निभाई. इससे यह भी पता चलता है कि हर भावनात्मक मुद्दा, चाहे वह कितना भी आकर्षक क्यों न हो, उसकी एक शेल्फ लाइफ होती है. और अगर आप सभी अहम मुद्दों को दबाकर बार-बार यही मुद्दे उछालेंगे तो वोटर्स का मन इनसे उचट जाएगा.'
लेख में कहा गया कि इंडिया ब्लॉक ने उत्तर प्रदेश, राजस्थान सहित कई हिंदी भाषी राज्यों में गहरी पैठ बनाई है. राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण हिंदी भाषी बेल्ट में लोकसभा की 225 सीटें हैं.
तुर्की के सरकारी ब्रॉडकास्टर टीआरटी वर्ल्ड ने लिखा है कि एक दशक में पहली बार हो रहा है कि मोदी की भारतीय जनता पार्टी खुद से बहुमत लाने में नाकामयाब रही है. इसका मतलब है कि पार्टी को सरकार बनाने के लिए अपने सहयोगी दलों पर निर्भर रहना होगा.
ब्रॉडकास्टर ने लिखा, 'कई सर्वे में यह कहा जा रहा है कि बेरोजगारी और महंगाई मतदाताओं के लिए मुख्य मुद्दे रहे. मोदी के विपक्षी नेताओं और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार समूहों ने कई बार भारत के लोकतंत्र और अल्पसंख्यक समूहों के अधिकारों पर चिंता जताई है. अमेरिका के थिंक टैंक फ्रीडम हाउस ने इसी साल कहा था कि बीजेपी ने अपने विपक्षी नेताओं को निशाना बनाने के लिए बड़े पैमाने पर सरकारी संस्थाओं का इस्तेमाल किया है.'
एक अन्य लेख में टीआरटी वर्ल्ड ने लिखा, 'भारत की राजनीति में जेडीयू के नीतीश कुमार और टीडीपी के चंद्रबाबू नायडू किंगमेकर बनकर सामने आए हैं. इसी बीच इंडिया ब्लॉक जिसने 232 सीटें जीती हैं, वो भी इन दोनों नेताओं से सक्रिय रूप से बात कर रहा है.'
543 सीटों वाले लोकसभा में बहुमत के लिए 272 सीटों की जरूरत होती है.
कतर के न्यूज नेटवर्क अलजजीरा ने लिखा कि चुनाव के नतीजों ने बीजेपी की रणनीति पर सवाल खड़े किए हैं. भारत में जैसे-जैसे चुनाव आगे बढ़े, भारत के करिश्माई और ध्रुवीकरण करने वाले प्रधानमंत्री मोदी ने बहुसंख्यक हिंदुओं के बीच भय पैदा करने की कोशिश की कि विपक्ष देश के संसाधनों को मुसलमानों को देने की साजिश कर रहा है.
अलजजीरा आगे लिखता है, 'वहीं, विपक्ष ने मोदी को उनकी सरकार के आर्थिक ट्रैक रिकॉर्ड पर घेरने की कोशिश की थी. देश दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था है, बावजूद इसके , मतदाताओं ने चुनाव से पहले सर्वे करने वालों को बताया कि उच्च मुद्रास्फीति और बेरोजगारी उनके लिए प्रमुख मुद्दे थे. भाजपा ने इस बार अबकी पार 400 का नारा दिया था.'
मोदी के जीवनी लेखक नीलांजन मुखोपाध्याय के हवाले से अलजजीरा ने लिखा, 'बीजेपी ने जो पिच तैयार की उसमें अति आत्मविश्वास था. ऐसे वक्त में जब लोग बढ़ती कीमतों, बेरोजगारी और आय असमानता से जूझ रहे थे, बीजेपी अति आत्मविश्वास में थी.'
राजनीतिक विश्लेषक और स्तंभकार असीम अली के हवाले से अलजजीरा ने लिखा, 'इसका नतीजा यह हुआ कि भाजपा नींद में चलकर आपदा की ओर बढ़ गई. आज, मोदी ने अपना चेहरा खो दिया है. वो हारे नहीं हैं लेकिन उनकी अजेय रहने की पहले वाली आभा भी अब नहीं रही.'
न्यूयॉर्क टाइम्स ने अपने लेख में एनडीए को बहुमत मिलने के राजनीतिक प्रभावों और चुनाव से मिली सीख पर बात की है. अखबार ने लिखा कि मोदी की बीजेपी पूर्ण बहुमत हासिल करने में नाकामयाब रही और उसे सरकार बनाने के लिए अपने सहयोगियों का सहारा लेना पड़ेगा.
वहीं, वॉशिंगटन पोस्ट ने मोदी की जीत के वैश्विक प्रभावों पर चर्चा की है. साथ ही कहा है कि मोदी को गठबंधन सरकार में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा.
ब्रिटेन के सरकारी ब्रॉडकास्टर ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन ने लिखा कि भले ही एनडीए को बहुमत मिल गया लेकिन बीजेपी अपने दम पर बहुमत हासिल करने में नाकामयाब रही जो कि राजनीति में बड़े उलटफेर को दिखाता है.
बीबीसी ने लिखा, 'मोदी का कार्यकाल कई विवादित फैसलों के लिए जाना जाता है जैसे 2016 में नोटबंदी और ध्रुवीकरण वाले फैसले. जैसे साल 2019 में कश्मीर के विशेष राज्य के दर्जा को समाप्त कर देना. लेकिन अब ऐसा पहली बार होगा कि मोदी को सत्ता में रहने के लिए अपने दो सहयोगियों जेडीयू और टीडीपी के साथ मिलकर काम करना होगा.'
ब्रिटेन की समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने अपनी एक रिपोर्ट को शीर्षक दिया, 'एक दशक तक हंसी का पात्र बने भारत के राहुल गांधी ने मोदी की रथयात्रा को धीमा कर दिया.'
रॉयटर्स ने लिखा, 'भारत के विपक्षी नेता राहुल गांधी, जिनका अक्सर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके समर्थकों द्वारा वंशवाद के लिए मजाक बनाया जाता था, ने मंगलवार को एक शानदार वापसी की, एक गठबंधन के केंद्र में उभरे जिसने सत्तारूढ़ पार्टी के गढ़ों में गहरी पैठ बनाई.'
भारत के प्रसिद्ध नेहरू-गांधी राजनीतिक परिवार से आने वाले राहुल गांधी ने मोदी की नफरत और भय की राजनीति के खिलाफ दो यात्राएं कीं जिससे उनकी कांग्रेस पार्टी को उत्साह मिला और उनकी छवि फिर से स्थापित हुई.
रॉयटर्स ने नई दिल्ली स्थित सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च के राजनीतिक विश्लेषक राहुल वर्मा के हवाले से लिखा, 'मुझे लगता है कि राहुल गांधी को न केवल लामबंदी, उनके मार्च के लिए, बल्कि भाजपा के खिलाफ कांग्रेस की वैचारिक पिच को लगातार स्पष्ट करने के लिए भी श्रेय मिलेगा. यह वक्त राहुल गांधी के उदय का है.'
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