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BJP की तेज-तर्रार नेत्रियां नहीं पहुंच सकीं लोकसभा

Nilmani Pal
19 Jun 2024 6:20 AM GMT
BJP की तेज-तर्रार नेत्रियां नहीं पहुंच सकीं लोकसभा
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18 वीं लोकसभा में महिला सांसदों की संख्या घटी

इन नेत्रियों की हार के पीछे पुरुष नेताओं का वर्चस्व तो नहीं...

या फिर स्थानीय भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं की नाराजगी बड़ी वजह

नई दिल्ली/रायपुर New Delhi/Raipur । भारतीय जनता पार्टी BJP की कई फायर ब्रांड नेत्रियों को इस लोकसभा चुनाव Lok Sabha Elections में हार का सामना करना पड़ा है। उनकी हार को लेकर तरह-तरह की चर्चाएं हो रही हैं। स्मृति इरानी, नवनीत राणा, पंकजा मुंडे, साध्वी निरंजना, सरोज पांडेय, लाकेट चटर्जी, मेनका गांधी व माधवी लता, जैसी कई नेत्रियों को पराजय झेलनी पड़ी हैं। भाजपा से ही राज्यपाल रही तमिलनाडु से चुनाव लड़ रहीं प्रतिद्वंदी को भी हार मिली। वहीं एनडीए के ही एनसीपी की श्रीनेत्रा पवार भी पराजित हो गई। सबसे आश्चर्य लोगों को स्मृति ईरानी की हार पर हो रही है। अमेठी मेें पहला चुनाव हारने और फिर चुनाव जीतने के बाद लगातार दस सालों तक वहां की जनता से जीवंत संपर्क और विगत कई दशकों से जो कार्य नहीं हुए वह करने के बाद भी अमेठी की जनता ने उसे अपना समर्थन नहीं दिया और एक बार फिर वहां के लोगों ने गांधी परिवार के प्रति अपनी जुड़ाव पर मुहर लगा दी। भाजपा की इन तेजतर्रार नेत्रियों में से कई पिछली लोकसभा में भाजपा का प्रतिनिधित्व कर रही थीं इस सदन में इनकी आवाज सुनाई नहीं देगी। विपक्ष के हमलों से सरकार को डिफेंड करने में इनकी महती भूमिका रहती थी।

18th Lok Sabha 18वीं लोकसभा में होंगी 74 महिला सांसद : बमुश्किल 10 महीने पुरानी बात है, पिछले साल सितंबर का महीना था। नई संसद में विशेष सत्र बुलाया गया। कयास लगने लगे कि ये होगा, वो होगा, ये नहीं वो होगा। सत्र की शुरुआत से पहले केंद्रीय कैबिनेट की एक बैठक हुई। और फिर मीडिया में खबर आने लगी कि सरकार 27 साल से अटके पड़े महिला आरक्षण बिल को लागू करने की दिशा में बढ़ सकती है। 20 सितंबर 2023 को ये खबर हकीकत में तब्दील हो गई। विधेयक पारित करा लिया गया लेकिन असली पेंच उस दिन की शाम को और अगले दिन के अखबारों से मालूम हुआ।

लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण देने के नाम पर उस दिन महज बिल पारित हुआ था। उसे असल मायने में लागू होने के लिए 2029 तक के इंतजार का वादा था। सवाल है ऐसा क्यों? क्योंकि सरकार ने बताया कि पहले जनगणना, परिसीमन होगा, तब जाकर इस हवाले से कोई बात बनेगी। खैर, न होने से थोड़ा होना महिलाओं के लिए उपलब्थि से कम नहीं था। इस उपलब्धि को थोड़ी हिम्मत और मिलती अगर सालभर बाद कुछ राजनीतिक दलों ने इस दिशा में कोई पहलकदमी की होती। तब एक आवाज में महिलाओं के आरक्षण की वकालत करने वाले दल, तमाम हो-हल्ला और बड़ी-बड़ी बातों के बाद इस बार महिलाओं को टिकट देने में फिसड्डी नजर आए। बड़े राजनीतिक दलों के टिकट बंटवारे में आधी आबादी की केवल 15-20 फीसदी हिस्सेदारी को कहीं से भी उत्साहवर्धक नहीं कहा जा सकता। नतीजा ये है कि इस बार लोकसभा में कम महिला सांसद चुनकर आईं हैं।

आधे से अधिक महिला सांसद राजनीतिक परिवारों से : बात इतनी भर होती तो कोई बात न थी। जब ये समझने की कोशिश की गई कि जो महिला सांसद चुनी गईं, उनका नाता राजनीतिक परिवारों से है या फिर गैर-राजनीतिक पृष्ठभूमि से तो चौंकान्ने वाली जानकारी निकल कर सामने आई। भारतीय राजनीति के संदर्भ में यह एक अहम तथ्य है कि यहां सामान्य पृष्ठभूमि से आने वाले लोगों, खासकर महिलाओं को न के बराबर मौका मिलता है। राजनीतिक पार्टियां उन महिलाओं को ही टिकट देने में प्राथमिकता दिखाती हैं जिनके परिवार का कोई सदस्य राजनीति में हो, पति धनबल या बाहुबल की राजनीति में चैंपियन हो, वगैरा-वगैरा।

लोकसभा पहुंचने वाली 74 महिला सांसदों की सामाजिक-राजनीतिक पृष्ठभूमि का अध्ययन करने से मालूम हुआ कि इनमें से आधी से भी अधिक, ठीक-ठीक कहा जाए तो 41 का संबंध राजनीतिक परिवारों से है। जहां इन महिलाओं के भाई, पिता, पति से लेकर ससुर और दूसरे सगे-संबंधी मुख्य धारा की राजनीति में सक्रिय भूमिका में हैं। यहीं ये भी स्पष्ट हो जाए कि इन महिला सांसदों के बारे में ऐसा बिल्कुल भी नहीं कहा जा रहा कि उनमें राजनीतिक प्रतिभा या कौशल नहीं है बल्कि उनके जरिए यह समझने की कोशिश है कि जिनके परिवार का राजनीति से कोई वास्ता नहीं या यूं कहें कि जिनका कोई गॉडफादर नहीं, उनका प्रतिनिधित्त्व कितना है? तो जवाब है कि 29 महिला सांसद ऐसी हैं जिनकी पहचान गैर-राजनीतिक पृष्ठभूमि वाली है। इनमें डॉक्टर, एक्टर, समाजिक कार्यकर्ता से लेकर और दूसरे प्रोफेशनल्स शामिल हैं। वहीं, राज परिवार से आने वाली 4 महिला सांसद बनी हैं। ये चारों बीजेपी के टिकट पर लोकसभा पहुंची हैं। भारतीय जनता पार्टी ने 2009 में 45, 2014 में 38 और 2019 में 55 महिला उम्मीदवारों को चुनावी मैदान में उतारा था। इस बार भाजपा के महिला उम्मीदवारों की संख्या बढ़ी। पार्टी ने अपने 441 प्रत्याशियों में से 69 टिकट महिला उम्मीदवारों को दिया। इसमें 31 की जीत हुई है। इस तरह भारतीय जनता पार्टी के महिला उम्मीदवारों का स्ट्राइक रेट 44।92 फीसदी रहा है। बीजेपी की आधी महिला सांसद राजनीतिक परिवार से ताल्लुक रखती हैं।

बीजेपी की 31 में से करीब आधी महिला सांसद (15) का संबंध राजनीतिक परिवारों से है। 7 सांसदों के पति, 3 के पिता और 5 महिला सांसदों की मां, भाई या ससुर राजनीति के जाने-माने चेहरे हैं। मसलन, नई दिल्ली सीट से भाजपा के टिकट पर चुनाव जीत संसद पहुंचने वाली बांसुरी स्वराज दिवंगत राजनेता सुषमा स्वराज की बेटी हैं। तो आंध्र प्रदेश के राजमुंदरी सीट से चुनावी जीत हासिल करने वाली डी। पुरंदेश्वरी दिवंगत अभिनेता और राजनेता एन.टी. रामाराव की बेटी हैं। इसी तरह महाराष्ट्र के रावेर लोकसभा सीट से जीत की हैट्रिक लगाने वाली रक्षा खडसे, जो अब केंद्र में मंत्री भी बन गई हैं, महाराष्ट्र की राजनीति के कद्दावर नाम एकनाथ खडसे की बहू हैं। इसी तरह महाराष्ट्र के जलगांव से चुनाव जीतने वाली स्मिता वाघ के पति उदय वाघ बीजेपी में जिला अध्यक्ष हैं। झारखंड की कोडरमा सीट से सांसद अन्नपूर्वा देवी, जिन्हें केंद्रीय मंत्री भी बनाया गया है, आरजेडी नेता और पूर्व मंत्री रमेश यादव की पत्नी हैं। कितनों की बात की जाए, मध्य प्रदेश में भाजपा ने 6 महिलाओं को टिकट दिया था। सभी ने जीत दर्ज की। इनमें सावित्री ठाकुर (धार), संध्या राय (भिंड) के अलावा बाकी सभी-हिमाद्रि सिंह (शहडोल), लता वानखेड़े (सागर), अनीता चौहान (रतलाम), भारती पारधी (बालाघाट) के संबंधी राजनीति में हैं। अनीता नागर चौहान के पति नागर सिंह चौहान मध्य प्रदेश सरकार में वन मंत्री हैं और तीन बार विधायक रह चुके हैं। इसी तरह लता वानखेड़े के पति नंदकिशोर उर्फ गुड्डू वानखेड़े भी राजनीति में सक्रिय हैं।

गैर-राजनीतिक पृष्ठभूमि से आने वाली 12 महिलाएं बीजेपी की टिकट पर सांसद चुनी गई हैं। ये वो महिलाएं हैं जिन्होंने सामाजिक जीवन में कुछ अलग कर के अपना नाम बनाया और फिर राजनीति में दांव आजमाया। मिसाल के तौर पर, मध्य प्रदेश की धार सीट से सांसद चुनी गईं सावित्री ठाकुर, जो केन्द्र में मंत्री भी बन गई हैं, उनके पति एक साधारण किसान हैं, राजनीति में आने से पहले वह एक सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर जानी जाती थीं। इसी तरह मध्य प्रदेश की भिंड सीट से संध्या राय ने अपना राजनीतिक सफर बीजेपी में एक कार्यकर्ता के तौर पर शुरू किया था। उनके पति भी किसान हैं। इस तरह सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता से सांसद तक का सफर तय करे वाली सांसदों की संख्या 8 है। इन 8 के अलावा बीजेपी से चुनी गईं 2 महिलाओं का खुद का बिजनेस हैं। इनमें एक तो असम की गुवाहटी से चुनाव जीतने वाली बिजूली कलिता मेधी हैं और दूसरी गुजरात से सांसद चुनी गईं निमुबेन जयंतीभाई हैं। वहीं, सिनेमा जगत की दो हस्ती इस चुनाव के जरिये सदन पहुंची हैं। इनमें एक, मथुरा से सांसद हेमा मालिनी और दूसरी, हिमाचल प्रदेश की मंडी सीट से लोकसभा चुनाव जीतने वाली कंगना रनौत हैं। रनौत पहली बार सांसद बनी हैं जबकि हेमा मालिनी की यह तीसरी पारी है।

बीजेपी की 31 महिला सांसदों में से 4 महिलाओं का नाता राजशाही परिवारों से है। महिमा विश्वराज सिंह का संबंध मेवाड़ के पूर्व राजघराने से है। वहीं, ओडिशा के बोलांगीर की सांसद संगीता कुमार सिंह देव पूर्ववर्ती पटनागढ़ शाही परिवार से हैं। मालविका खेशारी देव कालाहंडी शाही परिवार की वंशज हैं। इनके पति अर्का खेशारी देव सांसद रह चुके हैं। इनके अलावा उत्तराखंड की माला राज्य लक्ष्मी जिन्हें टिहरी की रानी के नाम से भी जाना जाता है, वह भी एक राजशाही विरासत समेटे हुए हैं।

कांग्रेस के टिकट पर चुनी गईं महिला सांसदों की पृष्ठभूमि

कांग्रेस ने 2019 में 52 महिलाओं को चुनावी समर में उतारा था। इस बार पार्टी ने केवल 41 महिलाओं को टिकट दिया। हालांकि, इसकी एक वजह यह भी हो सकती है कि पार्टी अपने इतिहास के सबसे न्यूनतम सीटों पर इस बार चुनावी मैदान मे थी। खैर, कांग्रेस के 41 महिला कैंडिडेट्स में 13 की जीत हुई है। बीजेपी के महिला उम्मीदवारों के स्ट्राइक रेट (44।92 फीसदी) के मुकाबले कांग्रेस की महिला सांसदों की सफलता दर 34 फीसदी रहा।

राजनीतिक पृष्ठभूमि की महिलाओं पर दांव लगाने मेंकांग्रेस का भी हाल भारतीय जनता पार्टी ही की तरह है। कांग्रेस से सांसद चुनी गईं 13 महिलाओं में से 8 का संबंध राजनीतिक परिवारों से है। 4 के पति जबकि 4 के पिता राजनीति के जाने-माने नाम हैं। चाहे वो वर्षा गायकवाड़ हों जो वरिष्ठ कांग्रेसी नेता एकनाथ गायकवाड की बेटी हैं या फिर तेलंगाना के वारंगल लोकसभा सीट से जीतने वाली कादियाम काव्या , जो भारत राष्ट्र समिति के पूर्व नेता श्रीहरि की बेटी हैं। छत्तीसगढ़ की कोरबा सीट से जीतने वाली ज्योत्सना महंत चरणदास महंत की पत्नी है। चरण दास कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हैं और छत्तीसगढ़ विधानसभा के अध्यक्ष रह चुके हैं। इसी तरह कर्नाटक के देवेनगिरी से सांसद चुनी गईं प्रभा मल्लिकार्जुन के पति कर्नाटक सरकार में माइन्स और जियोलॉजी मंत्री हैं। वहीं कांग्रेस की 5 महिला सांसद गैर-राजनीतिक पृष्ठभूमि से आती हैं।इनमें 1 डॉक्टर, 1 वकील, 1 सोशल वर्कर तो 2 ने अपने बलबूते राजनीति में नाम बनाया है। सुधा आर पेशे से वकील हैं। बच्छाव शोभा दिनेश पेशे से डॉक्टर हैं। जोथिमनी सेन्निमलाई एक सोशल वर्कर हैं। उन्होंने भारतीय युवा कांग्रेस और तमिलनाडु युवा कांग्रेस के महासचिव और उपाध्यक्ष के रास्ते सांसद तक का सफर तय किया है। संजना जाटव कांग्रेस की सबसे कम उम्र की सांसद हैं जिनके पति पुलिस कांस्टेबल है। संजना जाटव ने महज 26 साल की उम्र में राजस्थान की भरतपुर सीट पर चुनाव जीता है। गुजरात की गेनीबेन ठाकोर, जिन्होंने बनासकांठा से चुनाव जीता है, वो भी अपने बलबूते यहां तक पहुंची हैं। ठाकोर ने दशको बाद गुजरात में कांग्रेस का खाता खोला है।

सबसे युवा चेहरा जो लोकसभा में दिखेंगे

प्रिया सरोज : उत्तर प्रदेश की मछलीशहर लोकसभा सीट से चुनाव जीतने वाली प्रिया सरोज उन चार उम्मीदवारों में शामिल हैं जिन्होंने सबसे कम उम्र में इस लोकसभा चुनाव में जीत हासिल की है। प्रिया सरोज की उम्र सिर्फ 25 वर्ष 7 महीने है। उन्होंने मौजूदा बीजेपी सांसद भोलानाथ को 35,850 वोटों के अंतर से हराया है। प्रिया सरोज के पिता तूफानी सरोज भी तीन बार सांसद रह चुके हैं। वाराणसी के पिंडरा तहसील के करखियांव गांव की रहने वाली प्रिया सरोज पिछले 7 वर्षों से समाजवादी पार्टी में सक्रिय कार्यकर्ता के रूप में अपनी भागीदारी निभाती रही हैं।

शांभवी चौधरी : पूर्व आईपीएस अधिकारी आचार्य किशोर कुणाल की पुत्रवधू शांभवी चौधरी ने इस बार चिराग पासवान की लोजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा और महज 25 साल की उम्र में जीत का परचम लहराया है। बिहार के समस्तीपुर लोकसभा सीट से जीत हासिल करने वाली शांभवी ने कांग्रेस के सनी हजारी को 187251 वोटों के अंतर से हराया। शांभवी चौधरी बिहार में नीतीश कुमार के कैबिनेट मंत्री अशोक चौधरी की बेटी हैं। अशोक चौधरी हाल ही में कांग्रेस से जेडीयू में शामिल हुए थे। शांभवी के दादा भी कांग्रेस में रह चुके हैं।

संजना जाटव : राजस्थान की भरतपुर लोकसभा सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लडऩे वाली संजना जाटव ने 25 वर्ष की उम्र में जीत हासिल करने में कामयाब रही हैं। उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के रामस्वरूप कोली को 51,983 वोटों के अंतर से मात दी है। पिछले साल हुए राजस्थान विधानसभा चुनाव में भी उन्होंने अपनी किस्मत आजमाई थी। हालांकि, उस दौरान उन्हें महज 409 वोटों के अंतर से हार का सामना करना पड़ा था। समूची गांव में यह दो मंजि़ला घर है हाल ही में भरतपुर सीट से निर्वाचित हुईं सांसद संजना जाटव का, जो सबसे कम उम्र की सांसद बनने के बाद से देशभर में चर्चाओं में बनी हुई हैं।

प्रियंका जारकीहोली : कांग्रेस उम्मीदवार और मंत्री सतीश जारकीहोली की बेटी प्रियंका जारकीहोली ने चिक्कोडी से मौजूदा सांसद और भाजपा नेता अन्नासाहेब जोले को हराया। चिक्कोडी से प्रियंका जारकीहोली आजादी के बाद से कर्नाटक में अनारक्षित सीट से संसद में प्रवेश करने वाली सबसे कम उम्र की आदिवासी महिला बन गई हैं। दरअसल, भाजपा ने चिक्कोडी को छोडक़र मुंबई कर्नाटक की सभी सीटें जीत ली हैं। प्रियंका जारकीहोली के नाम कुछ और भी पहली बार हैं। वह कर्नाटक में अनारक्षित सीट से जीतने वाली आदिवासी समुदाय की पहली महिला बनीं। वह सामान्य सीट से जीतने वाली आरक्षित समुदाय की दूसरी नेता भी बनीं, इससे पहले कोट्टुरु हरिहरप्पा रंगनाथ 1984-89 के दौरान चित्रदुर्ग से लोकसभा सदस्य थे।

इकरा हसन : कैराना लोकसभा की सत्ता पर आधी आबादी का का पूरा दखल रहा है। इस इस वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में इकरा हसन ने पांचवीं बार महिला सांसद बनी है। इससे पहले चार बार कैराना से महिला सांसद चुनी जा चुकी है। जिनमें से दो बार सांसद बनने का श्रेय इकरा हसन की मां तब्बसुम हसन के नाम है। अब तक सबसे बड़ी जीत का रिकार्ड भी महिला सांसद अनुराधा चौधरी के नाम है। इस बार इकरा हसन ने भाजपा के प्रदीप चौधरी का हराकर अपनी मां की हार का बदला देने के साथ ही पांचवीं महिला सांसद बनने का गौरव प्राप्त किया है।

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