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बिहार विधानसभा चुनाव: अंतिम चरण का मतदान आज...78 सीटों पर होगी वोटिंग...जानिए क्या है समीकरण?

Admin2
7 Nov 2020 12:51 AM GMT
बिहार विधानसभा चुनाव: अंतिम चरण का मतदान आज...78 सीटों पर होगी वोटिंग...जानिए क्या है समीकरण?
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ani 

15 जिलों की 78 सीटों पर आज बिहार की जनता अपने मत का प्रयोग करेगी

सात नवंबर की तारीख बिहार के लिए बेहद अहम होने वाली है, क्योंकि 15 जिलों की 78 सीटों पर आज बिहार की जनता अपने मत का प्रयोग करेगी. तीसरे चरण के इस रण के लिए पहले ही राजनीतिक दलों ने पूरी ताकत झोंक दी थी. आपको बताते हैं कि इन 78 सीटों का समीकरण क्या है.

कल की सुबह बिहार के भविष्य की बुनियाद रचने वाली सुबह होगी. आज बिहार के मतदाता लोकतंत्र के पर्व के अंतिम चरण में मतदान करेंगे, वो मतदान करेंगे बिहार के भविष्य को बेहतर बनाने के लिए... 7 नवंबर को अंतिम चरण का चुनाव है. 15 जिलों की 78 सीटों पर मतदान होंगे. इनमें 63 सामान्य सीट हैं जबकि 13 आरक्षित सीट हैं. तीसरे चरण में कुल 1204 उम्मीदवार मैदान में हैं.

वहीं इन 78 सीटों पर 2015 में जेडीयू ने 23 सीटों पर जीत दर्ज की थी. आरजेडी ने 78 में 20 सीटें जीती थीं. 78 सीटों में बीजेपी के खाते में 20 सीटें गईं थीं. वहीं कांग्रेस ने इन्हीं 78 सीटों में 11 पर जीत दर्ज की थी. मगर पेच ये है कि 2015 के चुनाव में जेडीयू आरजेडी और कांग्रेस ने मिलकर चुनाव लड़ा था, जबकि इस बार नीतीश के सामने आरजेडी और कांग्रेस के अलावा चिराग पासवान भी चुनौती बनकर सामने खड़े हैं, जाहिर सी बात है कि नीतीश के लिए ये चुनाव 2015 के मुकाबले ज्यादा मुश्किल होगा और उनके सामने अपनी सीटों को बचाने की कड़ी चुनौती होगी.

कितने वीआईपी?

बात अगर तीसरे चरण में वीआईपी चेहरों की हो तो ऐसे कई चेहरे हैं जिनकी किस्मत का फैसला इसी तीसरे चरण में होगा. सिमरी बख्तियारपुर सीट से वीआईपी पार्टी के मुखिया मुकेश सहनी मैदान में हैं, उनके सामने आरजेडी के यूसुफ सलाउद्दीन हैं. सुपौल सीट से जेडीयू के विजंद्र प्रसाद यादव हैं, उनके सामने कांग्रेस के मिनतुल्लाह रहमानी मैदान में हैं. मोतिहारी में बीजेपी के प्रमोद कुमार चुनावी मैदान में हैं, उनके सामने आरजेडी के ओम प्रकाश चौधरी हैं. मधेपुरा में आरजेडी के चंद्रशेखर मैदान में हैं और उनके सामने जन अधिकारी पार्टी के मुखिया पप्पू यादव हैं जबकि जेडीयू के निखिल मंडल यहां से चुनाव लड़ रहे हैं, यहां मुकाबला त्रिकोणीय है.

कितनों के खिलाफ आपराधिक मामले?

बात अगर आपराधिक पृष्ठभूमि वाले प्रत्याशियों की हो तो 371 प्रत्याशियों के खिलाफ आपराधिक केस हैं. 31 फीसदी प्रत्याशियों का आपराधिक इतिहास है तो प्रत्याशियों की जन्मकुंडली बिहार की जनता के पास है, उनके वादे और इरादों से भी बिहार की जनता वाकिफ है. अब इन 15 जिलों की जनता को तय करना है कि वो किसकी किस्मत का क्या फैसला करती है.

बिहार में चुनावी शोर तो थम गया, लेकिन सरगर्मी और बेचैनी बढ़ गई. किसका दांव चलेगा? कौन चारों खाने चित होगा? ये लाख टके का प्रश्न है. आखिरी चरण की 78 सीटों में से 24 सीट ऐसी हैं जहां मुसलमानों का वोट ये तय करता है कि कौन जीतेगा और कौन हारेगा. सीमांचल की चाबी मुस्लिमों के हाथ में है- किशनगंज, अररिया, कटिहार और पूर्णिया की 24 सीटें जिसकी झोली में गईं, समझिए उसका दावा पक्का. 24 सीटों में से 3 सीटें ऐसी भी हैं जहां 20% से कम मुस्लिम आबादी है, लेकिन असर पूरा है.

2015 विधानसभा चुनाव के नतीजों पर नजर डालें तो आज के महागठबंधन के पास 24 में से 12 सीटें हैं और एनडीए के खाते में भी 12 सीटें है लेकिन ये तब के नतीजे हैं जब आरजेडी-जेडीयू और कांग्रेस एक गठबंधन में थे और इस गठबंधन ने 24 में से 17 सीटों पर जीत दर्ज की थी. अब तो सारे समीकरण बदल गए. लिहाजा वोट गणित भी बदलना तय है. जेडीयू और बीजेपी एक गठबंधन में हैं- जबकि कांग्रेस-आरजेडी और लेफ्ट पार्टियां एक ही टीम में खेल रही हैं.

सीमांचल

सीमांचल में महागठबंधन की ओर से आरजेडी 11, कांग्रेस 11 और लेफ्ट- 2 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. वहीं, एनडीए की तरफ से बीजेपी 12, जेडीयू 11 और हम पार्टी एक सीट पर चुनावी रेस में है. तमाम चुनावों की तरह इस चुनाव में भी AIMIM वाले असदुद्दीन ओवैसी मौजूद हैं और उनकी पार्टी ने 14 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे हैं.

अब जरा सीमांचल के 4 जिलों पर ध्यान दीजिए. किशनगंज में करीब 70 फीसदी, अररिया में 42 फीसदी, कटिहार में 43 फीसदी और पूर्णिया में 38 फीसदी मुसलमान आबादी रहती है. आरजेडी और कांग्रेस को लगता है कि वो इस इलाके में बढ़त पा सकते हैं- इस सोच के पीछे मुख्य रूप से तीन बड़े कारण हैं. पहला ये कि मुस्लिम आबादी अपनी सुरक्षा और प्रतिनिधित्व को लेकर बीजेपी को अपने करीब नहीं पाती.

दूसरा ये कि नीतीश कुमार बीजेपी के साथी हैं और नीतीश को वोट देने का मतलब है बीजेपी को मजबूत करना और तीसरा ये कि RJD को लगता है कि नीतीश ने अपना पाला बदलकर इलाके के लोगों का विश्वास तोड़ा है. यही वजह है कि राहुल गांधी अपनी सियासी दूरबीन से जनता को दिखा रहे हैं कि नीतीश और बीजेपी अलग-अलग नहीं, बल्कि एक ही हैं.

आरजेडी को भरोसा है कि आखिरी चरण के चुनाव में उसका मुस्लिम-यादव फैक्टर काम करेगा. जिसने 1990 से 2005 के बीच 15 साल तक लालू को सत्ता में बने रहने में मदद की थी. सीमांचल के मुस्लिम वोटर और कोसी के तीन जिले मधेपुरा, सहरसा और सुपौल में यादव निर्णायक भूमिका में हैं. यहां कुल 13 विधानसभा सीटें हैं यानि अगर एमवाई फैक्टर चल गया तो 78 में से 37 सीटों पर इसका सीधा असर होगा.

इसके अलावा CAA-NRC कानून को लेकर गहरी नाराजगी तो पहले से थी. ऊपर से योगी आदित्यनाथ के घुसपौठियों वाले बयान ने आग में घी का काम किया. यही वजह है कि नीतीश कुमार डैमेज कंट्रोल करने उतरे हैं, यही नहीं सीएम ने जनता के मन की वोट मशीन में अपना इमोशनल कार्ड स्वाइप करने की कोशिश की. इन्हें खाते में जीत का क्रेडिट चाहिए. अगर मुस्लिम वोट बंटा तो किसी एक पार्टी की विजय मुश्किल है. फिलहाल सीमांचल के मुस्लिम वोटर की मुट्ठी बंद है. 10 तारीख को ये मुठ्ठी खुलेगी. तब तक इंतजार कीजिए

ओवैसी भी मैदान में

वहीं मुस्लिम राजनीति के चतुर खिलाड़ी असदुद्दीन ओवैसी का अपना खेल बने या ना बने लेकिन तमाम धुरंधरों का खेल बिगाड़ने के लिए वो भी बिहार के चुनावी महासमर में उतर चुके हैं. तीसरे चरण के वोट युद्ध में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM भी शामिल है और वो इस इलाके की मुस्लिम बहुल आबादी पर डोरे डाल रही है. वहीं महागठबंधन को सेंधमारी का डर सता रहा है. नतीजा ये है कि कांग्रेस ओवैसी को बीजेपी की बी-टीम बता रही है. सवाल उठता है कि क्या औवैसी महागठबंधन को नुकासन पहुंचा पाएंगे और वोटों का ध्रुवीकरण हुआ तो क्या बीजेपी यहां कुछ करिश्मा कर सकती है?

जिस सीमांचल की 24 सीटों पर महागठबंधन जीत की उम्मीद लगाए बैठा है वहां ओवैसी ने अपने उम्मीदवार उतारकर उनके खेल को बिगाड़ने की कोशिश की है. माना जा रहा है कि ओवैसी यहां जितने ज्यादा वोट हासिल करेंगे, उतना ही महागठबंधन को नुकसान होगा.

AIMIM ओवौसी की पार्टी किशनगंज में पिछले साल अक्टूबर में विधानसभा सीट के उपचुनाव में एक सीट जीती थी. इससे उत्साहित होकर ओवैसी ने इसबार सीमांचल की 24 में से 14 सीटों पर उम्मीदवार उतार दिए. दमखम दिखाने के लिए छह दलों के साथ मिलाकर डेमोक्रेटिक सेक्युलर फ्रंट भी बना लिया. ये गठबंधन सीमांचल की सभी 24 सीटों पर लड़ रहा है.

ओवैसी ने सोच-समझकर मुस्लिम, यादव और अनुसूचित जाति के उम्मीदवार उतारे हैं जो महागठबंधन के परपंरागत वोट बैंक में सीधे-सीधे सेंधमारी की कोशिश है. यही वजह है कि कांग्रेस और आरजेडी ने औवैसी को बीजेपी का बी टीम बताया है. ये लोग अब लोगों को समझा रहे हैं कि औवैसी को वोट दिए तो बीजेपी की ताकत बढ़ेगी.

अब सवाल उठता है कि क्या ओवैसी मुसलमानों को अपनी तरफ खींच पाएंगे? मुस्लिम युवाओं में ओवैसी को लेकर हलचल तो है लेकिन ये हलचल वोट में बदलेगी या नहीं इसपर दावे से कुछ नहीं कहा जा सकता. वो भी तब जब बिहार में अल्पसंख्यक वोट एंटी बीजेपी के तौर पर लामबंद होता रहा है और ये जीतने वाले के पक्ष में ही जाता रहा है.

लालू यादव मुसलमानों में सबसे लोकप्रिय

सबसे बड़ी बात ये है कि लालू यादव बिहार में आज भी मुसलमानों में सबसे लोकप्रिय नेता हैं और अगर मुस्लिम वोट आरजेडी के खाते में गया तो महागठबंधन की सरकार बनने में मदद होगी. मुस्लिम बहुल इलाकों में जहां महागठबंधन वोटों के जुगाड़ में है, वहां ओवैसी की पार्टी मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लगाने की तैयारी कर चुकी है. सीमांचल क्षेत्र की 14 सीटों पर AIMIM ने अपने प्रत्याशी उतारे हैं.

ओवैसी ने 11 मुस्लिम प्रत्याशियों को टिकट दिया है. जबकि आखिरी दौर में सीमांचल की 3 सीट पर ओवैसी ने दलित और ओबीसी उम्मीदवारों पर दांव लगाया है. सीमांचल क्षेत्र के चार जिलों में से किशनगंज में कांग्रेस की मजबूत स्थिति रही है, जबकि अररिया, पूर्णिया और कटिहार में आरजेडी जोर आजमाइश कर रही है. इन सभी जिलों में ओवैसी के ग्रैंड सेकुलर डेमोक्रेटिक फ्रंट ने महागठबंधन के प्रत्याशियों की नींद उड़ा रखी है.

इस गठबंधन में उपेंद्र कुशवाहा की RLSP, मायावती की बीएसपी, ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम, समाजवादी जनता दल डेमोक्रेटिक, सुहैलदेव भारतीय समाज पार्टी और जनवादी सोशलिस्ट पार्टी हैं. इस गठबंधन में दलित और मुस्लिम के साथ-साथ यादव जाति को साधने की कोशिश हुई है. गठबंधन ने अगर वोट काटे तो सीमांचल समेत पूरे बिहार में सारे सियासी समीकरण पलट सकते हैं.

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