एक्जिट पोलों से जनता से रिश्ता का अनुमान सच
रायपुर। घर को आग लगी घर के चिराग से इस कहावत को बिहार की जनता ने सच कर दिखाया। जनता से रिश्ता ने 21 अक्टूबर के अंक में साफ कर दिया था कि एनडीए और महागठबंधन में कड़े संघर्ष के आसार जताते हुए छोटे दलों द्वारा एनडीए का खेल बिगाडऩे का अनुमान लगाया था। तीसरे चरण के मतदान के बाद कल शाम आए तमाम एक्जिट पोल्स के अनुमानों से यह अनुमान अक्षरश: सच साबित होते दिख रहा है। एनडीए के लिए चिराग पासवान को कमतर आंकना भी भारी पड़ गया, इससे लगभग 38 से 40 सीट पर सीधे तौर पर नीतिश कुमार को नुकसान पहुंचते दिख रहा है। एनडीए का तुम मुझे वोट दो मैं तुम्हें फ्री वैक्सीन दूंगा के नारे को बिहार की जनता ने लभगभ नकार दिया है। बिहार की जनता इस जुमले को समझ चुकी थी जब वैक्सीन बनी ही नहीं तो फ्री कैसे मिलेगी। बिहार की जनता को वैक्सीन से ज्यादा नौकरी और सुशासन की दरकार थी सो उन्हानें एनडीए को पुरी तरह से नकार दिया है। ऐसा ओपेनियन पोल बता रहे हैं। तेजस्वी की सभाओं में जिस तरह की भीड़ उमड़ रही थी, वह बिहार में बदलाव के संदेश दे रहे थे। चिराग पासवान ने तो एनडीए को नुकसान पहुंचाया ही, बचा-खुचा कसर छोटे दलों ने पूरा कर दिखाया। चुनाव प्रचार में सभी पार्टियों ने पूरी ताकत झोंक दी लेकिन जनता के मन में कुछ और ही था। भले ही वे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और नीतिश बाबू की सुन रहे थे। लेकिन मुख्यमंत्री के रूप में तेजस्वी यादव को देखना पसंद कर रहे थे। जदयु-भाजपा, राजद-कांग्रेस के गठबध्ंान के अलावा अगर सबसे आक्रामक रूख लिए चुनाव मैदान में ग्रैंड डेमोक्रे टिक सेक्यूलर फ्रंट भी किसी से कम नहीं था। पार्टी भले ही चुनाव में एक सीट ना जीते लेकिन वह बड़े दलों का खेल तो बिगाड़ सकती थी और ऐसा ही हुआ। अक्सर देखा जाता है की इस प्रकार की छोटी पार्टियां अगर अलग-अलग चुनाव लड़े तो बड़ी पार्टी को कोई फर्क पड़ते दिखाई नहीं देता लेकिन जब ये एक हो जाए तो स्वभाविक है कि बड़ों का खेल बिगाड़ सकते हैं। ठीक उसी प्रकार जब कई भेडिय़े एक साथ हो तो वो शेर का भी छक्के छुड़ा सकते हैं। ऐसा ही बिहार में हुआ है यह भी देखा गया है कि जिस विधानसभा सीट में मुस्लिम और दलित वोटर्स ज्यादा है वहां पर ये जीत भी सकते हैं। पिछले चुनाव को देखा जाए तो करीब 20 फीसद वोट छोटे दलों को हासिल हुआ था।
चूंकि इस बार ये सभी छोटे दल एक थे बिखराव इनमें था नहीं ऐसी स्थिति में ये बड़े दलों का खाना खराब करके ही माने बिहार में इस गठबंधन का असर दिखा। रहा सहा कसर भाजपा के बड़े नेताओं ने भी पूरी कर दी वहां भी बाहरी लोगों को निकालने का मुद्दा उठा दिए जिससे जनता चिढ़ गई हलाकि बाद में नितिश कुमार सफाई देते रहे बिहार में काई बाहरी नहीं है। सब बिहारी हैं लकिन तीर कमार से निकल चुकी थी बिहार में इस बार अटैक काम नहीं आया लोग इसे ही राजनीतिक अटैक मान गए और राजनेता इसक अनुमान भी नहीं लगा पाए। तेजस्वी यादव शुरू से बिहार में नौकरी और सुशासन का वादा करते रहे यही बात बिहार की जनता के घर में दिल कर गई। तेजस्वी यादव के आक्रामक शैली एवं उनके स्वभाव में उमड़ती भीड़ से ही अंदाजा लगाया जा सकता था कि बिहार में बदलाव की हवा चल गई। प्रधानमंत्री मोदी और कई बड़े स्टार प्रचारक बिहार में लेकिन वे बिहार की जनता का मूड बदलने में नाकामयाब रहे। बहरहाल चुनाव परिणाम जो भी स्थति कल स्पष्ट हो जाएगी की ओपेनियन पोल में कितनी सच्चाई है।
सभी सर्वे में अनुमानित वोटरों की संख्या 60-63 हजार बताया गया है लेकिन किसी भी सर्वे में ये नहीं बताया गया कि 3 चरणों में कौन से चरणों में कितने लोगों को सर्वे में शामिल किया गया और अंतिम चरण का सर्वे है तो कितने लोग सर्वे में शामिल है यह भी एक सोचनीय विषय हो सकता है। अगर 6 बजे तक वोटिंग चली तो किसी भी पार्टी के नेता या किसी चैनल वाले ने ये गौर नहीं किया कि आखिरी चरण के कितने मतदाता दल सर्वे में शामिल थे। जनताा से रिश्ता ने भी पिछले अंक में राजद की सरकार का अनुमान जता चुका था। अब देखना है ऊंट किस करवट बैठता है।