केंद्र सरकार का बड़ा आदेश: I&B मंत्रालय की निगरानी में आएंगे न्यूज़ पोर्टल समेत सभी ऑनलाइन प्लेटफॉर्म
केंद्र सरकार अब ऑनलाइन न्यूज़ पोर्टल और OTT प्लेटफॉर्म्स की भी मॉनिटरिंग करेगी। अधिसूचना जारी। आपको बता दे की जनता से रिश्ता लगातार इस मामले को उठा रहा है और इसके लिए नियम बनाने की अपील भी कर रहा है। मामले का संज्ञान अब केंद्र सरकार ने लिया है।
प्रदेश में न्यूज वेबपोर्टल और वेबसाइट का कारोबार अब धड़ल्ले से चल निकला है। कोई भी आदमी अब एक डोमिन रजिस्टर कर वेब-पोर्टल और वेबसाइट चला सकता है। छुटभैय्ये नेता, अवैध कारोबारियों, यहां तक बिल्डर और इंडस्ट्रलिस्ट के लिए भी यह धंधा फायदे का साबित हो रहा है। वेबपोर्टल शुरू कर पत्रकार का टैग लगाकर आसानी से अधिकारियों को धौंस दिखाकर सरकारी विज्ञापन हासिल करना, उगाही करना आसान हो गया है। बिना आरएनआई और बिना कंपनी एक्ट के तहत रजिस्ट्रेशन के इन वेबपोर्टलों को संबंधित विभाग द्वारा इम्पैनलिस्ट कर उन्हें सरकारी विज्ञापन उपलब्ध कराने से उनके हौसले बुलंद हैं। वेबपोर्टल और वेबसाइट के संचालकों-को अधिमान्यता देने के फैसले ने सोने पे सोहागा का काम किया है जिसके बाद इस कारोबार को शुरू करने की होड़ लग गई है। जिसे देखिए वही वेबसाइट शुरू कर रहा है। एक समय था जब अखबार के रजिस्ट्रेशन के लिए कोई अर्हता या मापदंड अनिवार्य नहीं होने से कोई भी साप्ताहिक-पाक्षिक व मासिक अखबार-पत्रिका का टाइटल लेकर सरकार के विभागीय कार्यालयों से विज्ञापन और अधिकारियों-ठेकेदारों से वसूली के लिए सक्रिय रहते थे। संबंधित विभाग में ऐसे लोगों की पूरे आफिस टाइम तक आमद बनी रहती थी। डीएवीपी की सख्ती के बाद कुछ समय पहले ऐसे धंधेबाजों की दुकानदारी बंद हो गई। अब ऐसा ही दृश्य वेबपोर्टल का धंधा शुरू होने के बाद दिखाई देने लगा है।
वेबपोर्टल के रूप में लोगों को कमाई का एक नया रास्ता मिल गया है। राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं और छुटभैय्ये नेताओं के लिए तो यह वरदान बन गया है। जिनके मंत्रियों के करीबियों से संबंध हैं वे उनके माध्यम से संबंधित विभाग तक आसानी से पहुंच बना लेते हैं और खुद को पत्रकार बताकर अपने वेबपोर्टल के लिए सरकारी विज्ञापन हासिल कर लेते हैं। अवैध धंधा करने वाले, भू-माफिया और अपराधिक गतिविधि में लगे लोग भी वेबपोर्टल को अपनी कमाई और काम बनाने के लिए माध्यम बना रहे हैं। यहां तक बिल्डर और उद्योग के मालिक भी न्यूज वेबसाइट के माध्यम से खुद को पत्रकार बताकर अपने काम बना रहे हैं। सट्टे-जुए और नशे का धंधा करने वाले लोगों ने भी अपना वेबपोर्टल बना लिया है और संबंधित विभाग से महीने का पचास हजार का विज्ञापन ले रहे हैं। ऐसे लोग खुद को वेबपोर्टल का संचालक बताकर अधिमान्यता के लिए भी दावा ठोंक रहे हैं इससे आम और सालों से विशुद्ध पत्रकारिता करने वाले ठगा सा महसूस कर रहे हैं।
सरकार की डायरेक्टोरेट आफ एडवरटीजमेंट एंड विजुअल पब्लिसिटी(डीएवीपी) एजेंसी ही सरकारी विज्ञापनों की व्यवस्था संभालती है। यही सरकारी रेट निर्धारण करती है। इसी कंपनी के जिम्मे न्यूज पोर्टल की लिस्टिंग व विज्ञापन रेट तय करना होगा। अखबार व टीवी चैनलों की तरह यही एजेंसी सभी सरकारी विभागों व मंत्रालयों के विज्ञापन वेबसाइट्स को भी प्रदान करेगी। इसकी भूमिका सभी सरकारी महकमे और मंत्रालयों के बीच नोडल एजेंसी की होगी। छत्तीसगढ़ में एक भी वेबपोर्टल आरएनआई में रजिस्टर्ड नहीं है और नहीं डीएवीपी से इनके विज्ञापन का दर निर्धारित किया गया है। ऐसे वेबपोर्टलों को राज्य के संबंधित विभाग ने इम्पैनलिस्ट किया है और उन्हें सरकारी विज्ञापन उपलब्ध कराया जा रहा है।
डीएवीपी की ओर से सभी लिस्टेड न्यूज पोर्टल पर हर माह आने वाले विजिटर की चेकिंग होगी। जिस वेबसाइट के हर माह जितने अधिक यूजर होंगे, उसी आधार पर उसे विज्ञापन मिलेंगे। यानी यूनिक यूजर डेटा के आधार पर ही अधिक से अधिक विज्ञापन का लाभ मिलेगा। लिहाजा जिस पोर्टल के ज्यादा यूजर होंगे, वह ज्यादा विज्ञापन पाकर मालामाल होगी। जिन न्यूज पोर्टल को इंडियन ब्राडकास्टिंग मिनिस्ट्री सूचीबद्द करेगी उसकी हर साल समीक्षा होगी। देखा जाएगा कि अब भी न्यूज पोर्टल पहले की तरह लोकप्रिय है या नहीं। हर साल के अप्रैल के पहले सप्ताह में यूनिक यूजर डेटा की सरकारी स्तर से समीक्षा होगी। इसके बाद हर साल नई सूची तैयार होगी। जिन पोर्टल पर यूजर की संख्या अच्छी-खासी बरकरार रहेगी वे सूची में बने रहेंगे बाकी बाहर कर दिए जाएंगे।