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गुजरात में बिलकिस बानो गैंगरेप मामले में बड़ी जानकारी सामने आई है. पीड़िता बिलकिस बानो ने दोषियों की रिहाई को चुनौती देने की तैयारी शुरू कर दी है. बिलकिस के वकील कानूनी ऑप्शन पर विचार कर रहे हैं. इस संबंध में बिलकिस की लीगल टीम ने गुजरात सरकार से दोषियों को माफी देने के आदेश और संबंधित दस्तावेज मांगे हैं.
जानकारी के मुताबिक, दोषियों की रिहाई के खिलाफ बिलकिस बानो कोर्ट जा सकती हैं और गुजरात सरकार के फैसले को चुनौती दे सकती हैं. दरअसल, गुजरात सरकार की तरफ से दोषियों को माफी दिए जाने के बाद बिलकिस और उनके परिवार ने नाराजगी जताई थी. उन्होंने कहा था कि 20 साल पुराना सदमा एक बार फिर कहर बनकर उन पर टूटा है. उन्होंने गुजरात सरकार से दोषियों की रिहाई के फैसले को वापस लेने की अपील की है.
बिलकिस का परिवार गुजरात सरकार के फैसले से नाखुश
बिलकिस के पति याकूब रसूल पटेल भी फैसले से नाखुश दिखे थे. उन्होंने कहा था कि हमने इस हादसे में अपना सब कुछ गंवा दिया था. अब इस फैसले के बाद उनका डर और बढ़ गया है. परिवार की सुरक्षा को खतरा है. इस बीच, गुजरात कांग्रेस के तीन विधायकों ने भी राष्ट्रपति को पत्र लिखकर राज्य सरकार के फैसले को निरस्त करने की मांग की है. कांग्रेस विधायक इमरान खेडावाला, ग्यासुद्दीन शेख़ और मुहम्मद पीरज़ादा ने ये पत्र लिखा है.
ये है मामला
गुजरात में 3 मार्च 2002 को दाहोद जिले के रंधिकपुर गांव में बिलकिस बानो के साथ गैंगरेप हुआ था और उसके परिवार के सात सदस्यों की हत्या कर दी गई थी. जब वारदात को अंजाम दिया गया था, तब बिलकिस बानो पांच महीने की गर्भवती थी. घटना में 11 लोगों के खिलाफ FIR दर्ज कराई गई. दो साल बाद 2004 में गिरफ्तारी हुई. अहमदाबाद में ट्रायल शुरू हुआ. हालांकि, बिलकिस बानो की अपील पर केस को सुप्रीम कोर्ट ने अगस्त 2004 में मुंबई ट्रांसफर कर दिया था.
मामले में 21 जनवरी, 2008 को मुंबई की एक विशेष सीबीआई अदालत ने 11 आरोपियों को दोषी पाया था और आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. बाद में बॉम्बे हाईकोर्ट ने उनकी सजा को बरकरार रखा. दोषियों ने 18 साल से ज्यादा सजा काट ली थी, जिसके बाद सजा माफी के लिए गुजरात हाईकोर्ट में अपील की गई. HC ने ये कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि माफी के बारे में फैसला करने वाली 'उपयुक्त सरकार' महाराष्ट्र है. न कि गुजरात. बाद में सुप्रीम कोर्ट मामला पहुंचा तो 13 मई को SC ने कहा कि चूंकि अपराध गुजरात में किया गया था, इसलिए गुजरात राज्य आवेदन की जांच करने के लिए उपयुक्त सरकार है.
सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार को 9 जुलाई 1992 की माफी नीति के अनुसार समय से पहले रिहाई के आवेदन पर विचार करने का निर्देश दिया] जिसके बाद सरकार ने एक कमेटी का गठन किया. कमेटी ने घटना के सभी 11 दोषियों को रिहा करने के पक्ष में सर्वसम्मति से फैसला लिया और राज्य सरकार को सिफारिश भेजी गई.
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