कोरोना से संक्रमित होने के बाद लोग ठीक तो हो जाते हैं, लेकिन कोरोना वायरस संक्रमित का पीछा नहीं छोड़ रहा है. अभी हाल ही में बच्चों पर भी एक स्टडी हुई है, जिसमें पता चला है कि कोरोना बच्चों को भी लॉन्ग कोविड सिंड्रोम का शिकार बना रहा है. हालांकि इस पर एक्सपर्ट्स का कहना है कि घबराने की जरूरत नहीं है. ऐसे में उन्होंने बच्चों का जल्दी इलाज कराने पर जोर दिया है.
साइंस जर्नल लैंसेट की स्टडी के मुताबिक, संक्रमण से ठीक होने के बाद भी 46 फीसदी बच्चों में लॉन्ग कोविड के लक्षण दिख रहे हैं. स्टडी में सामने आया है कि कोरोना संक्रमण से ठीक होने के बाद कम से कम दो महीनों तक लॉन्ग कोविड के लक्षण दिख रहे हैं. ये स्टडी डेनमार्क में 14 साल तक के बच्चों पर हुई है. इस स्टडी में 11 हजार से ज्यादा ऐसे बच्चों को शामिल किया था, जो कोरोना संक्रमित हो चुके थे. इनके अलावा 33 हजार से ज्यादा उन बच्चों को शामिल किया गया था, जिन्हें कभी कोरोना नहीं हुआ था. इस सर्वे में लॉन्ग कोविड के 23 लक्षणों को लेकर सवाल किया गया था.
इस स्टडी को लेकर इंडियन स्पाइनल इंजरी सेंटर के इंटरनल मेडिसिन के सीनियर कंसल्टेंट डॉ. कर्नल विजय दत्ता के मुताबिक, बच्चों में लंबे समय से चल रही कोविड की समस्या एक जाना-पहचाना इशू है. उन्होंने कहा कि वयस्कों के समान बच्चे भी लॉन्ग कोविड सिंड्रोम का सामना कर रहे हैं. उनमें व्यस्कों की तरह कई लक्षण दिखाई दे सकते हैं, जैसे कि बड़ों में सांस की बीमारी, रोगियों को बार-बार निमोनिया की शिकायत, इम्यूनिटी कम होना आदि. इसलिए वो जीआई संक्रमण का अनुभव कम कर रहे हैं, जैसे दस्त और वजन घटना. डॉ दत्ता ने बताया कि ये सभी लक्षण अब उन बच्चों में भी दिखाई दे रहे हैं, जो लॉन्ग कोविड से पीड़ित हैं. उन्होंने कहा कि लॉन्ग कोविड को दुनियाभर में एक समस्या मान लिया गया है.
बच्चों के लॉन्ग कोविड सिंड्रोम को लेकर फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट के बाल रोग विभाग के निदेशक डॉ. कृष्ण चुग ने भी कहा कि घबराने की जरूरत नहीं है. डॉ. चुग ने बताया कि स्टडी के मुताबिक, बच्चों के तीनों समूहों में, कम से कम एक लक्षण होने की संभावना अधिक थी. जैसे 0-3 साल के बच्चों में पेट में दर्द, चकत्ते की समस्या, 4-11 साल के बच्चों में ध्यान केंद्रित करने में परेशानी और चकत्ते, जी मिचलाना और 12-14 साल के बच्चों में थकान, जी खराब होना और याद रखने में परेशानी होती है.
डॉ. चुग ने कहा कि इसलिए हमें उन बच्चों को पहचानना है, जिन्हें लॉन्ग कोविड सिंड्रोम है और उनका इलाज करना है. बच्चों ने हर तरह से बड़ों की तुलना में कोविड से लड़ाई लड़ी है. बच्चों में लॉन्ग कोविड पर 23 जून को 'नेचर' में भी एक रिपोर्ट छपी थी, जिसमें लैंसेट स्टडी की तुलना में लॉन्ग कोविड की कम घटनाएं सामने आई.