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सर्वे में बड़ा दावा: स्मोकिंग करने वाले लोगों में कोरोना संक्रमण का खतरा कम..O, B और AB ब्लडग्रुप वालों को वैज्ञानिको ने दिया ये सुझाव

Admin2
18 Jan 2021 9:16 AM GMT
सर्वे में बड़ा दावा: स्मोकिंग करने वाले लोगों में कोरोना संक्रमण का खतरा कम..O, B और AB ब्लडग्रुप वालों को वैज्ञानिको ने दिया ये सुझाव
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देश में हुए एक सर्वे के मुताबिक स्मोकिंग करने वाले और शाकाहारी लोगों में कोरोना के संक्रमण का खतरा कम रहता है. ये सर्व किया है देश की सर्वोच्च रिसर्च संस्था काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (CSIR) ने. CSIR ने यह सर्वे पूरे देश में करने के बाद यह नतीजा निकाला है. सर्वे में इस बात का खुलासा भी हुआ है कि O ब्लडग्रुप वालों को कोरोना का खतरा कम है, जबकि B और AB ब्लडग्रुप वालों को कोरोना संक्रमण का खतरा बहुत ज्यादा है.

CSIR ने देश भर में हुए इस सर्वे के लिए 10,427 लोगों का सैंपल लिया है. ये लोग CSIR देश के विभिन्न हिस्सों में मौजूद 40 प्रयोगशालाओं में काम करते हैं. या उनके परिवार वाले हैं. इस सर्वे में लोगों को यह आजादी थी कि वो इसमें भाग लेना चाहते हैं या नहीं. सर्वे का मकसद कोरोना के खिलाफ एंटीबॉडीज की मौजूदगी का पता करना था. सर्वे की शुरूआत CSIR के एक संस्थान इंस्टीट्यूट ऑफ जीनोमिक्स एंड इंटीग्रेटिव बायोलॉजी (IGIB) दिल्ली ने की थी. 10,427 लोगों में 1058 यानी करीब 10.14 फीसदी लोगों में कोरोना के खिलाफ एंटीबॉडीज मिलीं.

IGIB के सीनियर साइंटिस्ट शांतनु सेनगुप्ता ने बताया कि तीन महीने बाद जब फॉलोअप लिया गया तो पता चला कि 346 लोगों में कोरोना के खिलाफ एंटीबॉडीज स्थिर हैं, लेकिन कोरोना को खत्म करने वाली प्लाज्मा गतिविधि कम होती जा रही है. छह महीने बाद जब फिर से सैंपलिंग की गई तो पता चला कि 35 लोगों में एंटीबॉडी का स्तर कम हो रहा है. लेकिन प्लाज्मा गतिविधि की सक्रियता उच्च स्तर पर है.

शांतनु ने कहा कि हमारी स्टडी में ये बात सामने आई है कि स्मोकिंग करने वालों कोरोना संक्रमण का खतरा कम रहता है. जबकि ये बेहद हैरानी वाली बात है क्योंकि कोरोना फेफड़ों को सबसे पहले नुकसान पहुंचाता है. यहां पर स्मोकिंग फेफड़ों को कोरोना से बचा रहा है, ये बेहद गहन अध्ययन का विषय है. यह सिर्फ भारत में नहीं है. इससे पहले न्यूयॉर्क, इटली, फ्रांस औऱ चीन में हुए अध्ययनों में ये बात सामने आई है कि स्मोकिंग करने वाले लोगों को कोरोना संक्रमण का खतरा कम रहा है.

CSIR के सर्वे से पता चला है कि जो लोग सार्वजनिक वाहनों का उपयोग कर रहे हैं उन्हें कोरोना संक्रमण का खतरा ज्यादा है. साथ ही वो लोग जो सिक्योरिटी का काम करते हैं, घर में काम करने वाली मेड, स्मोकिंग न करने वाले और नॉन-वेजिटेरियंस को कोरोना संक्रमण का खतरा ज्यादा है. शांतनु ने बताया कि पिछली साल जुलाई में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा था कि स्मोकिंग करने वाले कोरोना के संक्रमण का जल्दी शिकार हो सकते हैं. तंबाकू उत्पादों को लेकर सतर्क रहने को कहा गया था.

मंत्रालय की ओर से जारी दस्तावेज 'कोविड-19 महामारी और भारत में तंबाकू का उपयोग' में कहा गया था कि एक्सपर्ट भी ये बात मानते हैं कि स्मोकिंग करने वालों को कोरोना का खतरा ज्यादा रहता है. उनमें गंभीर संक्रमण हो सकता है. या फिर वो कोरोना की वजह से मारे जा सकते हैं. इससे लोगों में संक्रमण फैलने का भी खतरा था, क्योंकि सिगरेट पीने वालों का हाथ उनके होठों से कई बार छूता है या करीब जाता है. ऐसे में वायरस उनके हाथ से सिगरेट के बड तक और उसके बाद हवा में फैलने का खतरा था.

IGIB के निदेशक और इस सर्वे में शामिल अनुराग अग्रवाल ने कहा कि शरीर में ऐसी एंटीबॉडीज का मौजूद रहना संक्रमण और रिकवरी दोनों का अंतर बताने में मदद करता है. हालांकि कुछ संक्रमित लोगों के शरीर में हो सकता है कि एंटीबॉडीज न बने. अनुराग ने कहा कि वो लोग कोरोना से बचे रह सकते हैं जो निजी गाड़ियों का उपयोग करते हैं. स्मोकिंग करते हैं. शाकाहारी है. जिनका ब्लडग्रुप 'A' या 'O' है. इनके अंदर कोरोना की सीरोपॉजिटिविटी (Seropositivity) कम है यानी संक्रमण का खतरा कम है.

शांतनु सेनगुप्ता बताते हैं कि हमने दो प्रकार के एंटीबॉडी टेस्ट किए. पहला सामान्य एंटीबॉ़डी टेस्ट और दूसरा न्यूट्रीलाइजिंग एंटीबॉ़डी टेस्ट ताकि ये समझ में आ सके कि हमारे शरीर में एंटीबॉडीज कितने दिन तक असरदार अवस्था में रह रही हैं. ये कितने दिनों तक कोरोना से लड़ाई कर पा रही हैं. हमें इसके लिए तीन महीने 35 लोगों का अध्ययन किया. फिर छह महीने 346 लोगों का अध्ययन किया. इसमें दोनों प्रकार के एंटीबॉडी टेस्ट शामिल थे.

आपको बता दें कि CSIR के 40 संस्थान पूरे देश में फैले हैं. ये संस्थान विज्ञान की अलग-अलग विधाओं से संबंधित प्रयोगशालाएं और रिसर्च सेंटर्स हैं. IGIB कोशिकाओं और मॉलीक्यूलर बायोलॉजी के अध्ययन की अग्रणी संस्थान हैं. इस सेंटर में कोरोना वायरस की जीनोम सिक्वेंसिंग भी की गई है. CSIR के इस सर्वे से देश और विदेशों के साइंटिस्ट हैरान है. पहले भी ऐसे सर्वे और स्टडीज हुए हैं. अब हैरानी की बात ये है कि जिस स्मोकिंग से फेफडो़ं का कैंसर होता है वही स्मोकिंग कैसे कोरोना वायरस के संक्रमण से बचा रहा है. साइंटिस्ट इस बात का अध्ययन करने में लगे हुए हैं.


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