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भारतीय निवेश को बचाने की बड़ी चुनौती, भारत की कूटनीति की तालिबानी शासन में होगी परीक्षा

Deepa Sahu
16 Aug 2021 5:46 PM GMT
भारतीय निवेश को बचाने की बड़ी चुनौती, भारत की कूटनीति की  तालिबानी शासन में होगी परीक्षा
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अफगानिस्तान में तालिबान की सत्‍ता ने पूरी दुनिया को चिंता में डाल दिया है।

काबूल, अफगानिस्तान में तालिबान की सत्‍ता ने पूरी दुनिया को चिंता में डाल दिया है। अफगानिस्‍तान की सत्ता पर तालिबान का नियंत्रण भारत के लिए भी चिंता का सबब है। दो दशकों में भारत ने अफगानिस्तान में करीब 22 हजार करोड़ रुपए का निवेश किया है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि तालिबान के कब्जे के बाद क्या यह निवेश पूरी तरह फंस जाएगा। आखिर भारत की कौन सी बड़ी परियोजना संकट में है। अफगानिस्‍तान में भारतीय विदेश नीति की असल परीक्षा होगी। भारत के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती यह होगी कि अफगानिस्‍तान में अपने निवेश को कैसे सु‍रक्षित रखे। इसके अलावा चाबहार पोर्ट से मध्य एशिया को जोड़ने की योजना पर भी विराम लग सकता है।

अफगानिस्‍तान में संकट में भारत के बड़े प्रोजेक्‍ट
प्रो. हर्ष पंत का कहना है कि अफगानिस्तान में अमेरिकी सैनिकों के प्रवेश के बाद बीते दो दशक में भारत ने भारी निवेश किया है। भारत के विदेश मंत्रालय के मुताबिक, अफगानिस्तान में भारत के 400 से अधिक छोटे-बड़े प्रोजेक्ट हैं। अफगानिस्तान में चल रहे भारत के कुछ बड़े प्रोजेक्ट्स पर नजर डालते हैं और ये भी देखते हैं कि फिलहाल मौजूदा समय में चल रही लड़ाई का इन पर क्या असर पड़ने वाला है।
उन्‍होंने कहा कि अफगानिस्तान में भारत के सबसे प्रमुख प्रोजेक्ट में काबुल में अफगानिस्तान की संसद है। इसके निर्माण में भारत ने लगभग 675 करोड़ रुपए खर्च किए हैं। इसका उद्घाटन भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साल 2015 में किया था। भारत-अफगान मैत्री को ऐतिहासिक बताया था। इस संसद में एक ब्लॉक पूर्व भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर भी है।
अफगानिस्‍तान में सलमा डैम हेरात प्रांत में 42 मेगावॉट का हाइड्रोपॉवर प्रोजेक्ट है। 2016 में इसका उद्घाटन हुआ था और इसे भारत-अफगान मैत्री प्रोजेक्ट के नाम से जाना जाता है। हेरात प्रांत अब तालिबान के कब्‍जे में है। इसके पूर्व तालिबान यह दावा कर चुका था कि डैम के आसपास के इलाकों पर अब उसका कब्जा है।
भारत बॉर्डर रोड्स ऑर्गेनाइजेशन ने अफगानिस्तान में 218 किलोमीटर लंबा हाईवे भी बनाया है। ईरान के सीमा के पास जारांज से लेकर डेलारम तक जाने वाले इस हाईवे पर 15 करोड़ डॉलर खर्च हुए हैं। यह हाईवे इसलिए भी अहम है क्योंकि ये अफगानिस्तान में भारत को ईरान के रास्ते एक वैकल्पिक मार्ग देता है।
इस हाईवे के निर्माण में भारत के 11 लोगों को अपनी जान भी गंवानी पड़ी थी। जारांज-डेलारम के अलावा भी कई सड़क निर्माण परियोजाओं में भारत ने निवेश कर रखा है। जारांज-डेलाराम प्रोजेक्ट भारत के सबसे महत्वपूर्ण निवेश में से एक है। पाकिस्तान अगर जमीन के रास्ते भारत को व्यापार से रोकता है तो उस स्थिति में यह सड़क बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है। तालिबानी नियंत्रण के बाद भारत के लिए एक बड़ा झटका होगा।
चाबहार पोर्ट से मध्य एशिया को जोड़ने की योजना पर लग सकता है विराम
भारत की चाबहार परियोजना को लेकर भी काफी दिक्कत पैदा होने की संभावना है। भारत ईरान के इस पोर्ट के जरिये अफगानिस्तान को जोड़ने पर काम कर रहा था ताकि अफगानिस्तान को कारोबार के लिए पाकिस्तान पर निर्भर न होना पड़े। भारत की योजना इस पोर्ट के जरिए दूसरे मध्य एशियाई देशों को भी जोड़ने की रही है। अब पाकिस्तान और चीन के समर्थन से इन देशों को अफगानिस्तान के रास्ते पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट की सुविधा मिल सकती है। चीन पहले ही कह चुका है कि वह अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण में भारी निवेश करने का इच्छुक है। माना जा रहा है कि हाल में चीन के विदेश मंत्री और तालिबान नेताओं के बीच वार्ता में चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर पर बात हुई है।
जम्मू-कश्मीर को लेकर रणनीतिकार ज्यादा चिंतित

तालिबान के सत्ता में आने से भारतीय रणनीतिकार सबसे ज्यादा इसके केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर पर पड़ने वाले असर को लेकर चिंतित हैं। पूर्व में भी पाकिस्तान ने तालिबान के जरिये इस राज्य में अशांति फैलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। कश्मीर में आतंकी वारदातों को अंजाम देने के लिए गठित संगठन जैश-ए-मुहम्मद को तैयार करने में तालिबान ने मदद की थी। इसके सरगना मसूद अजहर ने लगातार तालिबान के साथ काम किया है। यही नहीं, भारत के खिलाफ काम करने वाले कई आतंकी संगठन अभी भी तालिबान के साथ मिलकर अफगानिस्तान में लड़ाई लड़ रहे हैं। इनमें लश्कर, इस्लामिक स्टेट (जम्मू-कश्मीर) और अलकायदा शामिल हैं। पूर्व में भारतीय सुरक्षा एजेंसियों ने देश के कई हिस्सों से इनके लोगों को गिरफ्तार किया है।
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