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नौकरी-पेशा लोगों को बड़ा झटका, PF पर ब्याज दर हुई कम, इतना होगा नुकसान

jantaserishta.com
12 March 2022 4:02 PM GMT
नौकरी-पेशा लोगों को बड़ा झटका, PF पर ब्याज दर हुई कम, इतना होगा नुकसान
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नई दिल्ली: मोदी सरकार ने होली से एक सप्ताह पहले नौकरी-पेशा लोगों को बड़ा झटका दे दिया है. नौकरी से रिटायर होने के बाद की सोशल सिक्योरिटी यानी पीएफ (PF) पर एक बार फिर से ब्याज दर कम हो चुकी है. इसे 8.5 फीसदी से घटाकर 8.1 फीसदी करने का फैसला लिया गया है. यह चार दशक से भी ज्यादा समय में पीएफ पर ब्याज दर का सबसे निचला स्तर है. इससे पहले पीएफ पर ब्याज की सबसे कम दर 8 फीसदी 1977-78 में थी. आपको यह जानकर हैरानी होगी कि कभी पीएफ पर 12 फीसदी तक ब्याज मिला करता था. आइए जानते हैं कि होली का रंग फीका करने वाले इस फैसले से आपको कितना नुकसान होने वाला है.

नुकसान जानने से पहले हम आपको इस सबसे बड़ी सोशल सिक्योरिटी का संक्षिप्त इतिहास बताने जा रहे हैं. हम आपको ये भी बताएंगे कि पीएफ पर मिलने वाले ब्याज को कैसे कैलकुलेट किया जाता है. ये चीजें जानने के बाद यह समझने में आसानी होगी कि पीएफ पर ब्याज दर को 8.5 फीसदी से घटाकर 8.1 फीसदी किए जाने से आपके फ्यूचर को कितना नुकसान होने वाला है.
नौकरी-पेशा लोगों की सोशल सिक्योरिटी के लिए भारत में 1952 में EPFO का गठन हुआ था. हालांकि तब पीएफ पर मिलने वाला ब्याज बेहद कम था. पीएफ पर ब्याज दर की शुरुआत महज 3 फीसदी के स्तर से हुई और इसके बाद लगातार इसे बढ़ाया गया. सबसे पहले 1955-56 में पीएफ पर ब्याज की दर को बढ़ाकर 3.50 फीसदी किया गया. आठ साल के अंतराल के बाद 1963-64 में इसे फिर से बढ़ाया गया और ब्याज दर 4 फीसदी हो गई. इसके बाद हर साल पीएफ की ब्याज दर को 0.25 फीसदी बढ़ाने की परंपरा बन गई.
इस परंपरा पर ब्रेक लगा 1970-71 में, जब ब्याज दर को महज 0.10 फीसदी बढ़ाया गया. हालांकि इससे पहले ही ब्याज दर बढ़कर 5.50 फीसदी हो चुकी थी. अब तक पीएफ के ब्याज को कम करने की परिपाटी शुरू हुई नहीं थी. 1977-78 में पहली बार ऐसा हुआ कि पीएफ पर मिलने वाला ब्याज 8 फीसदी के पार निकला. साल भर बाद इसे फिर से 0.25 फीसदी बढ़ाया और इसके साथ ही सरकार ने 0.50 फीसदी का बोनस देने का भी फैसला किया.
साल 1985-86 में पहली बार पीएफ पर ब्याज 10 फीसदी के पार गया. उस साल ब्याज को 9.90 फीसदी से बढ़ाकर 10.15 फीसदी कर दिया गया. साल भर बाद यानी 1986-87 में यह ब्याज दर और बढ़कर 11 फीसदी पर पहुंच गई. इसका रिकॉर्ड बना 1989-90 में, जब पीएफ पर ब्याज की दर सर्वकालिक उच्च स्तर 12 फीसदी पर पहुंच गई. इसके बाद लगातार 10 साल तक इसमें कोई बदलाव नहीं हुआ. इस 10 साल के ब्रेक के बाद पीएफ पर ब्याज को कम किए जाने की परिपाटी शुरू हो गई.
पीएफ पर ब्याज में पहली बार कटौती 2001 में हुई और इसे रिकॉर्ड उच्च स्तर से घटाकर 11 फीसदी किया गया. साल 2004-05 में इसमें तब तक की सबसे बड़ी कटौती की गई और इसे एक झटके में 1 फीसदी घटाकर 8.50 फीसदी कर दिया गया. बाद में 2010-11 में इसे फिर से बढ़ाया गया और 9.50 फीसदी किया गया. हालांकि यह लाभ बहुत समय तक लोगों को नहीं मिल पाया और अगले ही साल इसे 1.25 फीसदी घटाकर 8.25 फीसदी पर ला दिया गया. जब मोदी सरकार बनी, तब इस ब्याज की दर 8.75 फीसदी थी. 2015-16 में इसे मामूली बढ़ाकर 8.80 फीसदी किया गया. ताजी कटौती से पहले 2019-20 से ईपीएफ ब्याज दर 8.50 फीसदी बनी हुई थी और अब यह 8.10 फीसदी हो चुकी है.
किसी भी एम्पलॉई की बेसिक सैलरी और डीए का 12 फीसदी हिस्सा पीएफ में जमा होता है. एम्पलॉयर भी अपनी ओर से इतना कंट्रीब्यूट करता है, लेकिन इस 12 फीसदी में 8.33 फीसदी हिस्सा ईपीएस में जमा होता है और बाकी का 3.67 फीसदी पीएफ खाते में जमा होता है. एम्पलॉयर के हिस्से से 0.50 फीसदी हिस्सा ईडीएलआई में जाता है. अब मान लीजिए कि आपकी बेसिक सैलरी और डीए 15 हजार रुपये है, तो ईपीएफ में आपका अपना कंट्रीब्यूशन 12 फीसदी यानी 1,800 रुपये होगा. जबकि एम्पलॉयर की ओर से किया जाने वाला कंट्रीब्यूशन 550 रुपये होगा. इस तरह हर महीने 2,350 रुपये जमा होंगे.
पीएफ पर जो ब्याज मिलता है, वह सालाना होता है. यानी अब अगर ब्याज दर 8.10 फीसदी है तो महीने के हिसाब से औसतन 0.675 फीसदी बैठेगा. नौकरी के पहले महीने के कंट्रीब्यूशन पर ब्याज नहीं मिलता है. मान लीजिए कि आपने अप्रैल में नौकरी शुरू की तो दूसरे महीने यानी मई से आपको ब्याज मिलने लगेगा. इसके लिए देखा जाएगा कि दूसरे महीने के अंत में आपके पीएफ खाते का बैलेंस कितना है. 15,000 रुपये की बेसिक सैलरी+डीए के हिसाब से मई में आपका बैलेंस 4,700 रुपये होगा. पुरानी दर के हिसाब से मई में आपका ब्याज बनता 33.29 रुपये, जो अब 31.72 रुपये हो जाएगा. यह बात जान लेना जरूरी है कि पीएफ पर ब्याज का कैलकुलेशन हर महीने के अंत में मौजूद बैलेंस के हिसाब से तो किया जाता है, लेकिन ब्याज की रकम का क्रेडिट पूरे साल के लिए एक ही बार में किया जाता है.
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