भारत रत्न लालकृष्ण आडवाणी का जन्मदिन आज, मोदी-शाह और साय ने दी बधाई
रायपुर/दिल्ली। भारत रत्न लालकृष्ण आडवाणी का आज जन्मदिन है. इस मौके पर पीएम मोदी-शाह और छग के सीएम साय ने बधाई दी है. अमित शाह ने अपने ट्वीट में लिखा, भारत रत्न आदरणीय श्री लालकृष्ण आडवाणी जी को जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ। आडवाणी जी ने जनसेवा और संगठन कौशल का अनुपम परिचय देते हुए भाजपा को लोककल्याण का प्रतीक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उनके नेतृत्व में भाजपा का संगठन सुदृढ़ और व्यापक हुआ। देश के पूर्व उप-प्रधानमंत्री और गृह मंत्री के रूप में उनके कार्य अत्यंत प्रेरणादायक हैं। ईश्वर से उनके उत्तम स्वास्थ्य और दीर्घायु की प्रार्थना करता हूँ.
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योध्या में राम मंदिर के निर्माण और आंदोलन में भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी की भूमिका को प्रमुख माना जाता है. 1980 और 90 के दशक में जब अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद तेज़ हुआ, तब आडवाणी इस आंदोलन का सबसे मुखर चेहरा बने. उन्होंने न केवल मंदिर के लिए जनजागरण अभियान चलाया, बल्कि बीजेपी के एजेंडे में भी राम मंदिर को एक प्रमुख मुद्दा बना दिया, जिसने पार्टी को राष्ट्रीय स्तर पर नई पहचान दिलाई.
1990 में आडवाणी ने सोमनाथ से अयोध्या तक की 'राम रथ यात्रा' निकाली, जो उनके राजनीतिक करियर और भाजपा के इतिहास में एक टर्निंग प्वाइंट थी. यह यात्रा उस समय भारत में राम मंदिर आंदोलन का सबसे बड़ा प्रतीक बन गई थी और आडवाणी को मंदिर समर्थकों के बीच एक लोकप्रिय नेता के रूप में स्थापित किया. इस यात्रा के दौरान देशभर में राम मंदिर का मुद्दा तेजी से उभरकर सामने आया और अयोध्या में विवादित स्थल पर राम मंदिर के निर्माण की मांग ज़ोर पकड़ने लगी.
राम रथ यात्रा के दौरान आडवाणी जगह-जगह रुककर भाषण दिया करते थे, आरोप है कि उनके भाषण राम मंदिर के लिए भक्तों के हृदय में धधक रही ज्वाला में घी का काम करते थे. हिंदू उग्र हो जाते थे और परिणामस्वरूप में कई जगह हिंसा भड़क उठती थी. खैर इस सबसे अलग तय कार्यक्रम के अनुसार आडवाणी की रथ यात्रा को 30 अक्टूबर 1992 को अयोध्या पहुंचना था लेकिन 22 अक्टूबर को जब आडवाणी अपने दल के साथ बिहार के समस्तीपुर में थे तो उन्हें रात में गिरफ्तार कर लिया गया. बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने उन्हें दुमका के एक गेस्ट हाउस में नजरबंद कर दिया. मगर तब तक आडवाणी राम मंदिर के लिए हिंदुओं के दिलों में जो अलख जगा चुके थे उसका कोई मुकाबला नहीं था. आडवाणी की रथ यात्रा ने पूरे देश के हिंदुओं को जगा दिया था और हर किसी की जुबां पर राम मंदिर और भाजपा का ही नाम था. और आखिरकार कार सेवक 30 अक्टूबर को अयोध्या की सीमा में एंट्री कर गए.
6 दिसंबर 1992 को जब विवादित ढांचा गिराया गया, तब आडवाणी को इस आंदोलन का प्रमुख नेता माना गया. हालांकि, उन्होंने कई बार इस बात पर जोर दिया कि उनकी मंशा केवल मंदिर के निर्माण के लिए जन समर्थन जुटाने की थी, न कि किसी भी तरह की हिंसा को बढ़ावा देने की, इसके बावजूद, आडवाणी पर आरोप लगा कि उनके नेतृत्व ने हिंदुत्ववादी भावनाओं को भड़काया, जिसने 1992 की घटनाओं में एक भूमिका निभाई. आडवाणी के नेतृत्व में राम मंदिर का मुद्दा राष्ट्रीय राजनीति का केंद्र बन गया, जिसके परिणामस्वरूप भारतीय जनता पार्टी की लोकप्रियता तेजी से बढ़ी
राम जन्मभूमि आंदोलन से भाजपा को जो सफलता मिली उसका श्रेय हर कोई लाल कृष्ण आडवाणी को दे रहा था. पहली बार त्रिशंकु जनादेश के बावजूद देश में पहली बार भाजपा और उसके घटक दलों की सरकार बनी और पीएम बने अटल बिहारी बाजपेयी. भाजपा के पीएम कैंडिडेट के तौर पर अटल का नाम किसी भाजपा नेता नहीं बल्कि एक कांग्रेसी और गांधी परिवार के करीबी कहे जाने वाले नेता ने बीजेपी के सांसद को सुझाया था, और तर्क ये दिया गया था कि अटल सौम्य हैं जबकि आडवाणी आक्रामक हैं. ऐसे में अगर आडवाणी को पीएम कैंडिडेट बनाया गया तो त्रिशंकु जनाधार और घटक दलों को साथ लेकर सत्ता का स्वाद चखना मुश्किल हो जाएगा. इस बात को आडवाणी ने भी समझा और पीएम उम्मीदवारी के लिए खुद ही अटल का नाम आगे कर दिया.