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लॉकडाउन का बुरा असर, ऑनलाइन काम करने से देश के 23 फीसदी लोगों के देखने की छम्ता हुई कमजोर

Shiddhant Shriwas
17 Jun 2021 5:48 AM GMT
लॉकडाउन का बुरा असर, ऑनलाइन काम करने से देश के 23 फीसदी लोगों के देखने की छम्ता हुई कमजोर
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रिपोर्ट में कहा गया है कि स्क्रीन टाइम में बढ़ोतरी में लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग का प्रमुख योगदान रहा है, क्योंकि लोग लंबे समय तक घर पर बंद रहे.

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। कोरोना महामारी और लॉकडाउन के चलते ऑनलाइन ऑफिस का काम, पढ़ाई और टीवी देखने की वजह से भारतीयों की आंखों की देखने की क्षमता को अधिक नुकसान हुआ है और ये काफी प्रभावित भी हुई हैं. एक स्टडी में कहा गया है कि कम से कम 27.5 करोड़ भारतीयों या लगभग 23 फीसदी आबादी ने ज्यादा स्क्रीन समय के कारण अपनी आंखों की रोशनी को कमजोर देखी है. मोतियाबिंद, ग्लूकोमा और उम्र से संबंधि मैक्यूलर डीजनरेशन जैसे दूसरे फैक्टर्स ने ने भी आंखों की रोशनी को प्रभावित किया है.

2020 में भारत में प्रति उपयोगकर्ता औसत स्क्रीन समय 6 घंटे 36 मिनट का रहा, जो अलग-अलग देशों से काफी कम है, लेकिन फिर भी एक बड़े जनसंख्या आधार को प्रभावित करने के लिए ये काफी है. लगभग 24 से ज्यादा देशों में दैनिक औसत स्क्रीन समय भारत से अधिक है, जिनमें फिलीपींस (10:56 घंटे), ब्राजील (10:08 घंटे), दक्षिण अफ्रीका (10:06 घंटे), अमेरिका (07:11 घंटे) और न्यूजीलैंड (06:39 घंटे) समेत कई देश शामिल हैं.

स्क्रीन टाइम में बढ़ोतरी के लिए लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग मुख्य वजह

रिपोर्ट में कहा गया है कि स्क्रीन टाइम में बढ़ोतरी में लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग का प्रमुख योगदान रहा है, क्योंकि लोग लंबे समय तक अपने घरों पर बंद रहे. ब्रिटेन के फील-गुड कॉन्टैक्ट्स की रिपोर्ट जिसमें लैंसेट ग्लोबल हेल्थ, डब्ल्यूएचओ, और स्क्रीन टाइम ट्रैकर डेटा रिपोर्टल जैसे अलग स्रोतों से डेटा मिला था. जनसंख्या के आकार और घनत्व का इसमें बड़ा प्रभाव पड़ा है.

साथ ही रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन लिस्ट में एक बाहरी का प्रतिनिधित्व करता है, क्योंकि यहां ऑनलाइन खर्च किए गए घंटे कम हैं लेकिन आंखों की रोशनी के नुकसान की दर अधिक है. चीन में उपयोगकर्ताओं द्वारा स्क्रीन के साथ बिताए गए औसतन 5 घंटे और 22 मिनट की ओर इशारा करते हुए कहा कि इससे 27.4 करोड़ लोग या 14.1 फीसदी आबादी को प्रभावित किया है.



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