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विधानसभा चुनाव: चुनावी जंग में DMK के सामने चार बड़ी चुनौतियां... सरकारी नौकरी का वादा सबसे बड़ी चुनौती

Kunti Dhruw
21 March 2021 6:32 PM GMT
विधानसभा चुनाव: चुनावी जंग में DMK के सामने चार बड़ी चुनौतियां... सरकारी नौकरी का वादा सबसे बड़ी चुनौती
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विधानसभा चुनावों

जनता से रिश्ता वेबडेस्क: तमिलनाडु में होने वाले विधानसभा चुनावों में वैसे तो यह संभावना व्यक्त की जा रही है कि इस बार द्रमुक सत्ता में आ सकती है। अन्नाद्रमुक लगातार दस साल से सत्ता में है, लेकिन करुणानिधि और जयलिता की अनुपस्थिति में हो रहे इस चुनाव के नतीजों को लेकर राजनीतिक विशेषज्ञ भी ठोस दावा करने की स्थिति में नहीं हैं। द्रमुक की स्थिति मजबूत मानी जा रही है, लेकिन उसके समक्ष चार ऐसी चुनौतियां हैं, जो उसके लिए मुश्किल पैदा कर सकती हैं।

सरकारी नौकरी: राजनीतिक जानकारों के अनुसार, सबसे बड़ी चुनौती अन्नाद्रमुक ने यह पैदा कर दी है कि उसके अपने चुनाव घोषणा पत्र में फिर से सत्ता में आने पर हर परिवार से एक व्यक्ति को सरकारी नौकरी देने का ऐलान किया है। तमिलनाडु की राजनीति में टीवी से लेकर वाशिंग मशीन तक के वादे किए जाते हैं, लेकिन सरकारी नौकरी का दांव लोगों में असर कर सकता है, क्योंकि हर व्यक्ति आज सुरक्षित रोजगार को प्राथमिकता देता है। जनता इस पर चर्चा कर रही है। माना जा रहा है कि सत्तारूढ़ दल के इस वादे से द्रमुक की राह कठिन हो सकती है।
वंशवाद: दूसरा, अन्नाद्रमुक की तरफ से वंशवाद के मुद्दे पर द्रमुक की घेराबंदी की गई है। अन्नाद्रमुक इस मामले को चुनाव में खूब तूल दे रहा है। सूत्रों का कहना है कि नई पीढ़ी के मतदाताओं के बीच अन्नादमुक का यह दांव भी काम कर सकता है। अन्नाद्रमुक के साथ भाजपा भी इस मुद्दे पर आक्रामक है।
चुनाव प्रबंधन: तीसरे, अन्नाद्रमुक ने चुनाव का जो सूक्ष्म प्रबंधन इस बार किया है, वह द्रमुक में नहीं दिखाई दे रहा है। खबर है कि अन्नाद्रमुक ने हर 50 मतदाताओं के एक समूह पर अपने एक कार्यकर्ता को तैनात किया है। यह प्रबंधन भी द्रमुक के लिए चुनौती पैदा कर रहा है। देखना यह है कि अन्नाद्रमुक को इससे कितना फायदा पहुंचता है।
कांग्रेस का प्रदर्शन: अन्नाद्रमुक के समक्ष चौथी बड़ी चुनौती अपनी सहयोगी कांग्रेस का प्रदर्शन भी है। हालांकि, उसने कांग्रेस को सिर्फ 25 सीटें दी हैं, लेकिन जिस प्रकार से कांग्रेस ने वहां टिकट बांटे हैं, उससे यह आशंका उसे सताने लगी है कि कहीं ये सारी सीटें बेकार न चली जाएं। डर है कि कांग्रेस की स्थिति वहां बिहार से भी बदतर हो सकती है।


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