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असम सरकार ने किया कोरोना की वजह से अनाथ हुए बच्चों को हर माह आर्थिक मदद देने की घोषणा

Deepa Sahu
29 May 2021 6:02 PM GMT
असम सरकार ने किया कोरोना की वजह से अनाथ हुए बच्चों को हर माह आर्थिक मदद देने की घोषणा
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कोरोना काल में कई ऐसे बच्चे हैं, जिन्होंने अपने माता-पिता को खोया है.

कोरोना काल में कई ऐसे बच्चे हैं, जिन्होंने अपने माता-पिता को खोया है. ऐसे में असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने शनिवार को कहा कि उनकी सरकार राज्य में कोविड-19 के कारण अनाथ हुए बच्चों की बेहतर शिक्षा और कौशल विकास के लिए देखभाल करने वाले या अभिभावकों को हर महीने 3,500 रुपये की आर्थिक सहायता उपलब्ध कराएगी.

मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने संवाददाता सम्मेलन के दौरान कहा कि जिन बच्चों के परिवार में देखभाल करने वाला कोई नहीं है, उन्हें आवासीय विद्यालयों या संस्थानों में भेजा जाएगा और इसका खर्च सरकार उठाएगी. उन्होंने कहा कि अनाथ हुए हर बच्चे को राज्य सरकार प्रति महीने 3500 रुपये देगी, जिसमें से 2000 रुपये केंद्र सरकार का योगदान होगा.
'मुख्यमंत्री शिशु सेवा योजना' के तहत होगी पहल
यह पहल 'मुख्यमंत्री शिशु सेवा योजना' के तहत की जाएगी और जिसे रविवार को शुरू किया जाएगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नीत केंद्र की राजग सरकार का रविवार को सात वर्ष पूरे हो रहे हैं. उन्होंने कहा कि महामारी के कारण अपने माता-पिता को खोने वाले ऐसे बच्चों को व्यावसायिक और कौशल आधारित प्रशिक्षण दिया जाएगी ताकि उनकी आजीविका सुनिश्चित हो सके.
10 साल से कम उम्र के बच्चों का ख्याल रखेगी सरकार
मुख्यमंत्री ने कहा कि दस वर्ष से कम उम्र के जिन बच्चों के परिवार में कोई नहीं है उनका ख्याल सरकार रखेगी. उन्हें बाल देखभाल संस्थानों में रखा जाएगा और उनकी देखरेख और शिक्षा के लिए पर्याप्त कोष मुहैया कराया जाएगा. अनाथ बच्चे/बच्चियों को प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थानों में भेजा जाएगा जहां उपयुक्त देखभाल और सुरक्षा सुनिश्चित की जाएगी.
पढ़ाई के लिए इन स्कूलों का नाम शामिल
उन्होंने कहा कि राज्य सरकार इन बच्चों के लिए फिलहाल इस तरह के संस्थानों का पता लगा रही है. इसमें ग्वालपाड़ा सैनिक स्कूल, कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय से लेकर नवोदय स्कूल ओर अन्य निजी संस्थान शामिल हो सकते हैं जिनके पास छात्रावास की सुविधा हो. वहीं, सरमा ने कहा कि शादी की उम्र के योग्य लड़कियों को एकमुश्त वित्तीय पैकेज दिया जाएगा.
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