पश्चिम। कोरोना महामारी के उपरांत दो साल बाद पूरा शहर पुरानी रंगत में लौटने लगा है। एक ओर इस वर्ष कोरोना का डर नहीं दूसरी ओर यूनेस्को द्वारा पश्चिम बंगाल के सवसे अधिक लोकप्रिय दुर्गा पूजा को विश्व विरासत में शामिल किये जाने से इस बार दुर्गा पूजा की ख़ुशी दोगुनी हो गयी है। देवी दुर्गा की मूर्ति बनाने वाले कलाकार भी काफी खुश हैं. वे ख़ुशी मन से माँ दुर्गा की मूर्ति बना रहे हैं पर उन्हें अंदर ही अंदर एक डर सता रहा है। कलाकारों के चेहरे पर वह मुस्कान नहीं है। वर्तमान समय में बढ़ती महंगाई ने पूरा समीकरण बदल कर रख दिया है।
हालांकि वे मूर्ति बनाने व इन्हे सजाने में किसी तरह की कोई कोताही नहीं बरत रहे हैं। सिलीगुड़ी शहर से सटे डाबग्राम - दो ग्राम पंचायत अंतर्गत पूर्व चयनपाड़ा निवासी बच्चाू मालाकार थर्मोकोल के सहारे मूर्ति के आभूषण बना रहे हैं . पिता जतिन मालाकार उनके प्रेरणास्रोत हैं. चौंसठ वर्षीय बच्चू मालाकार आज भी इस कारोबार को संभाले हुए हैं। हालांकि उनकी आवाज में थोड़ी चिंता जरूर झलक रही है। उन्होंने कहा बाजार में विभिन्न सामानों की कीमत लगातार बढ़ रही है। इससे आय का आंकड़ा नीचे गिर रहा है। दूसरी ओर कारीगरों की संख्या भी बहुत कम है। इससे भी कारोबार प्रभावित हो रहा है। गौरतलब है बच्चू मालाकार कभी डाक विभाग में कार्यरत थे। अब वे सेवानिवृत्त हो गए हैं ।वे अपने काम के समय में इस कला के लिए समय नहीं निकाल पाते थे । अब वे अपना खाली समय बिताने के लिए दिन-रात अपने काम में लगे रहते हैं । बाकी पूजा के लिए परिवार के साथ बेटा, पत्नी और सभी सदस्य मूर्ति के गहनों पर काम करने में लगे रहते हैं. साथ ही उनके अधीन कुछ कारीगर भी काम करते हैं. बच्चू मालाकार के हाथ से तैयार की गई मूर्तियाँ सिलीगुड़ी के साथ साथ पूरे उत्तर बंगाल के बड़े बजट की पूजाओं को सुशोभित करती हैं। वहीँ उन्होंने बताया थर्मोकपल की कीमत में 10 रुपये की वृद्धि हुई है, गोंद की कीमत भी लगभग 50 रुपये तक बढ़ गई है। इसके अलावा, चुमकी के प्रत्येक पैकेट की कीमत में भी वृद्धि हुई है पर गहनों की कीमत में वृद्धि नहीं हुई है। नतीजतन, आय का आंकड़ा सबसे नीचले स्तर पर पहुंच गया है। हमारा मुनाफा बहुत कम है। कारीगरों को ढूंढना बहुत मुश्किल हो गया है।
रिपोर्ट - newsasia