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फाइल फोटो
हाई कोर्ट का बड़ा फैसला
बॉम्बे हाई कोर्ट की जस्टिस पुष्पा गनेड़ीवाला अपने फैसलों के लिए जानी जाती हैं. जस्टिस गनेड़ीवाला ने एक नाबालिग लड़की से छेड़छाड़ के मामले में फैसला दिया था कि अगर स्किन टू स्किन टच नहीं हुआ तो ऐसे में यौन उत्पीड़न नहीं माना जा सकता. उनके इस फैसले ने कई लोगों की भौंहें चढ़ा दी हैं. उनके 'स्किन टू स्किन' वाले फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को रोक लगा दी.
न्यायमूर्ति पुष्पा गनेड़ीवाला ने उस फैसला में कहा कि नाबालिग का हाथ पकड़ना या उस वक्त अभियुक्त की पैंट की ज़िप खुला होना, पॉक्सो अधिनियम (POCSO) में यौन उत्पीड़न से बच्चों की सुरक्षा की धारा 7 के तहत परिभाषित यौन उत्पीड़न की श्रेणी में नहीं है.
यह फैसला जस्टिस गनेड़ीवाला ने 15 जनवरी को अपने स्किन-टू-स्किन वाले विवादास्पद फैसले से चार दिन पहले पॉक्सो अधिनियम के एक मामले की सुनवाई के दौरान दिया था. दरअसल, एक नाबालिग पीड़िता की मां ने अपनी बेटी का हाथ पकड़ने और उसे कमरे में ले जाते समय आरोपी की पतलून की ज़िप खुली होने की शिकायत दर्ज कराई थी. इसी मामले पर 15 जनवरी को जस्टिस गनेड़ीवाला सुनवाई कर रही थीं.
यह मामला रजिस्टर्ड था और इस मामले में निचली अदालत ने आरोपी को आईपीसी की धारा आईपीसी की धारा 354A (यौन उत्पीड़न), धारा 448 (जबरन घर में घुसने के लिए सजा) और पॉक्सो एक्ट की धारा 8 (यौन हमले के लिए सजा), धारा 10 (उत्तेजक यौन हमले के लिए सजा) और धारा 12 (यौन उत्पीड़न के लिए सजा) के तहत दोषी करार दिया था.
हाई कोर्ट में न्यायमूर्ति गनेड़ीवाला ने इस मामले पर अपने फैसले में कहा कि अभियुक्तों के खिलाफ लगाए गए आरोप, उन पर 'यौन उत्पीड़न' के कथित अपराध के लिए आपराधिक दायित्व तय करने के लिए पर्याप्त नहीं है. पॉक्सो एक्ट की धारा 12 के तहत साबित होने वाला यौन उत्पीड़न का छोटा सा मामला भी आईपीसी की धारा 354ए (यौन उत्पीड़न) के तहत दंडनीय अपराध है.
इस केस के सिलसिले में निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले कोर्ट ने यौन हमले की परिभाषा का उल्लेख किया. पॉक्सो अधिनियम (POCSO Act) की धारा 7 का हवाला देते हुए कहा गया "जो कोई भी सेक्सुअल इनटेंट के साथ बच्चे की योनि, लिंग, गुदा या ब्रेस्ट को छूता है या बच्चे से किसी के योनि, लिंग, गुदा या ब्रेस्ट को स्पर्श कराता है या अन्य व्यक्ति के साथ यौन इरादे से बिना शारीरिक संपर्क भी यौन हमला कहा जाता है."
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