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AIIMS के शोध में एक और खुलासा...कोरोना नेगेटिव होने के 39 दिन बाद भी इस जगह जिंदा रहता है वायरस...पढ़े पूरी खबर

Admin2
8 July 2021 5:49 PM GMT
AIIMS के शोध में एक और खुलासा...कोरोना नेगेटिव होने के 39 दिन बाद भी इस जगह जिंदा रहता है वायरस...पढ़े पूरी खबर
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भोपाल: अभी तक यह माना जा रहा था कि कोरोना की जांच रिपोर्ट निगेटिव आने के बाद बीमारी ठीक हो जाती है, लेकिन एक शोध में सामने आया है कि कुछ मरीजों में कोरोना की रिपोर्ट निगेटिव होने के बाद भी टिश्यू (ऊतक) में वायरस मौजूद रहता है। यह तथ्य अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) भोपाल में हुए शोध में सामने आया है। एम्स में कोरोना के 21 मरीजों के शव का पोस्टमार्टम किया है। जिस शव के टिश्यू में वायरस मिला है, वह संक्रमित होने के बाद 39 दिन तक एम्स में भर्ती था। यानी यह कहा जा सकता है कि संक्रमित होने के 39 दिन बाद भी टिश्यू में वायरस मौजूद रह सकता है।

यह बात एम्स के निदेशक प्रो. डा. सरमन सिंह ने गुरुवार को पत्रकारों से बातचीत में कही। इस दौरान एम्स की फोरेंसिक मेडिसिन विभागाध्यक्ष डा. अरनीत अरोरा भी मौजूद थीं। देश में पहली बार एम्स भोपाल में कोरोना मरीजों के शव का पोस्टमार्टम शोध के मकसद से किया गया था। शोध में यह भी पता चला है कि कोरोना वायरस फेफड़े के अलावा मस्तिष्क, किडनी, लिवर, पैंक्रियाज में भी पहुंचता है। मालूम हो कि एक जैसी कोशिकाओं के समूह को ऊतक (टिश्यू) कहते हैं।
मुख्य शोधकर्ता फोरेंसिक मेडिसिन विभाग की अतिरिक्त प्राध्यापक डा. जयंती यादव ने बताया कि जिस मरीज के टिश्यू में कोरोना वायरस मिला, इलाज के दौरान उसकी कोरोना की जांच रिपोर्ट निगेटिव आ गई थी। संक्रमित होने के 39 दिन बाद मरीज की मौत हो गई। शोध के मकसद से मरीज के फेफड़े और अन्य अंगों से टिश्यू लेकर आरटीपीसीआर जांच कराई गई। इसमें फेफड़े समेत कुछ अंगों में वायरस मिला है। इस शोध में माइक्रोबायोलाजी विभाग के अतिरिक्त प्राध्यापक डा. शशांक पोरवार, एनेस्थीसिया के अतिरिक्त प्राध्यापक डा. सौरभ सहगल और पैथोलाजी विभाग के फैकल्टी डा. अश्वनी टंडन और डॉ. गरिमा गोयल शामिल थीं।
सबसे ज्यादा फेफड़े और सबसे
कम लिवर को हुआ नुकसान
डा. अरनीत अरोरा ने बताया कि 12 शव की जांच में नौ में यानी 75 फीसद के पैंक्रियाज में कोरोना वायरस मिला है। इनमें पैंक्रियाइटिस (पैंक्रियाज में सूजन) भी देखने को मिली है। बता दें कि पैंक्रियाज में मौजूद बीटा सेल्स इंसुलिन बनाते हैं, जिससे शुगर नियंत्रित रहती है। उन्होंने बताया कि 57 फीसद शवों में लिवर में वायरस मिला है, लेकिन लिवर में ज्यादा नुकसान नहीं मिला है। सबसे ज्यादा 90 फीसद फेफड़े में वायरस मिला है। सबसे ज्यादा नुकसान भी फेफड़े को हुआ है। मस्तिष्क में 47 फीसद में वायरस मिला है। इसके चलते करीब 24 फीसद के मस्तिष्क में छोटे हेमरेज मिले हैं। इससे खून का रिसाव भी हुआ था। हालांकि, बड़े हेमरेज नहीं मिले हैं, जिससे मरीज की मौत हो सके। खून का थक्का जमा होने के प्रमाण भी हिस्टोपैथोलॉजी जांच में मिले हैं, लेकिन इसके चलते किसी को हार्ट अटैक नहीं हुआ। सभी मरीजों की किडनी खराब हो गई थी, लेकिन इसकी वजह लंबी बीमारी भी हो सकती है।
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