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अनिल देशमुख और नवाब मलिक पर है मनी लॉन्ड्रिंग का आरोप, राज्यसभा चुनाव में वोट देने की मिलेगी इजाजत?
jantaserishta.com
2 Jun 2022 9:26 AM GMT
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मुंबई: राज्यसभा चुनाव के लिए 10 जून को मतदान होगा. महाराष्ट्र की छह राज्यसभा सीटों पर मतदान होना है. नियम यह है कि राज्यसभा चुनाव में केवल राज्य विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य ही मतदान कर सकते हैं. ऐसे में कई लोगों के मन में सवाल है कि क्या राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) के दो सदस्य महाराष्ट्र के पूर्व गृह मंत्री अनिल देशमुख और कैबिनेट मंत्री नवाब मलिक राज्यसभा में वोट डाल पाएंगे या नहीं, इस पर सस्पेंस बना हुआ है. इन दोनों नेताओं पर मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप में प्रवर्तन निदेशालय (ED) की ओर से मुकदमा चलाया जा रहा है.
अनिल देशमुख के स्वास्थ्य में गड़बड़ी के कारण कुछ दिनों तक उनका इलाज केईएम अस्पताल में चला था, लेकिन 31 मई को छुट्टी मिलने के बाद उन्हें आर्थर रोड जेल वापस लाया गया है. देशमुख के वकील इंद्रपाल सिंह ने कहा कि वे उनके लिए एक आवेदन दाखिल करेंगे और मतदान की मांग करेंगे.
महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम अजीत पवार ने गुरुवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि राकांपा अनिल देशमुख और नवाब मलिक को राज्यसभा चुनाव में मतदान की अनुमति देने के लिए अदालत का रुख करेगी.
दूसरी ओर, नवाब मलिक की कानूनी टीम के पास अभी तक उनके मुवक्किल की ओर से आवेदन दाखिल करने का कोई निर्देश नहीं है. मलिक के स्वास्थ्य में गड़बड़ी के कारण उनका इलाज एक निजी अस्पताल में चल रहा है. अभी तक उन्हें अस्पताल से छुट्टी नहीं मिली है. संभावना है कि मलिक भी राज्यसभा के लिए मतदान के लिए अदालत से अनुमति लेने के लिए आवेदन कर सकते हैं लेकिन अभी यह तय नहीं है कि वे आवेदन कब करेंगे.
राज्यसभा चुनाव में केवल राज्य विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य ही मतदान कर सकते हैं. क्या कोई जनप्रतिनिधि जो जेल में हो या फिर विचाराधीन हो या फिर पुलिस की हिरासत में हो, राज्यसभा में मतदान कर सकता है? इस सवाल के जवाब में चुनाव आयोग के मुताबिक, लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 62(5) के तहत यह प्रावधान है कि अगर कोई जनप्रतिनिधि अगर जेल में बंद है, विचाराधीन है या फिर पुलिस हिरासत में है तो वह वोटिंग में हिस्सा नहीं ले पाएगा.
हालांकि, इस नियम के खिलाफ 2017 में राकांपा नेता छगन भुजबल के साथ-साथ रमेश कदम ने मतदान की अनुमति के लिए मुंबई की अदालत का दरवाजा खटखटाया था. उसवक्त भुजबल मनी लॉन्ड्रिंग मामले में प्रॉसिक्यूशन का सामना कर रहे थे, जबकि कदम पर राज्य सरकार द्वारा संचालित अन्नाभाऊ साठे विकास निगम से सरकारी धन की हेराफेरी करने का भी आरोप था.
भुजबल को निचली अदालत ने अनुमति दी थी जबकि कदम को वोट डालने के लिए बॉम्बे हाईकोर्ट से अनुमति लेनी पड़ी थी. दोनों को संबंधित जेलों से बाहर निकाला गया और विधानसभा ले जाया गया था जहां उन्होंने मतदान किया था. मतदान के बाद दोनों आरोपियों को वापस जेल ले जाया गया.
भुजबल के मामले में ईडी ने राकांपा नेता की ओर से दायर आवेदन का विरोध किया था. इसके बाद भुजबल के वकील शलभ सक्सेना ने सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न फैसलों का हवाला दिया था. इसके बाद कोर्ट ने सक्सेना के तर्क को स्वीकार कर लिया और ईडी के तर्क को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 62 (5) के तहत कैद किए गए व्यक्तियों को मताधिकार के अपने अधिकार का प्रयोग करने पर रोक लगाना प्रथम दृष्टया चुनावी सदस्यों पर लागू नहीं होगा.
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