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सारणी के जलाशय के खरपतवार को खत्म कर बचाई करोड़ों की राशि

jantaserishta.com
5 March 2023 7:39 AM GMT
सारणी के जलाशय के खरपतवार को खत्म कर बचाई करोड़ों की राशि
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बैतूल (आईएएनएस)| जलाशयों के लिए खरपतवार घातक है और जब इनका विस्तार हो जाता है तो उसे नष्ट करने में धन लगता है। मगर मध्य प्रदेश के बैतूल जिले के पावर जनरेटिंग कंपनी लिमिटेड के सतपुड़ा ताप विद्युत गृह सारनी के जलाशय में तैरती जलीय खरपतवार सिल्वेनिया मोलेस्टा या जलकुंभी के नियंत्रण में जैविक विधि से आश्चर्यजनक सफलता मिली है। जैविक विधि से इस कार्य को करने से लगभग 15 करोड़ रूपए और चार से पांच वर्ष की बचत हुई है। मध्यप्रदेश पावर जनरेटिंग कंपनी के बैतूल जिले में स्थित सतपुड़ा ताप विद्युत गृह सारनी के संचालन में आवश्यक जल आपूर्ति के लिए वर्ष 1967 में तवा नदी पर 110 एमसीएम क्षमता का लगभग 2900 एकड़ जलग्रहण क्षेत्र वाला एक वृहद् सतपुड़ा जलाशय एवं बांध का निर्माण किया गया था। वहीं अब इस जलाशय से नगर पालिका परिषद सारनी के सभी 36 वाडरें में पेयजल की आपूर्ति भी की जाती है।
वर्ष 2018 से मूलत: ब्राजील में पाई जाने वाली एवं दक्षिण भारत से आई जलीय खरपतवार सिल्वेनिया मोलेस्टा (स्थानीय नाम चाईनीज झालर या जलकुम्भी) ने सतपुड़ा जलाशय के लगभग 60 प्रतिशत जल क्षेत्र की सतह को अपने आगोश में ले लिया। इस जलकुंभी को मशीनों और मजदूरों से हटाने के लिए लगभग चार से पांच वर्ष का समय तथा 15 करोड़ रुपए का खर्च होता था।
मध्य प्रदेश पावर जनरेटिंग कंपनी ने सम्पूर्ण देश में खरपतवार नियंत्रण पर कार्य करने वाले भारतीय खरपतवार अनुसंधान निदेशालय (आईसीएआर) जबलपुर से संपर्क कर सतपुड़ा जलाशय सारनी की इस जलीय खरपतवार सिल्वेनिया मोलेस्टा के निर्मूलन के लिए परामर्श प्राप्त किया। आईसीएआर के वैज्ञानिकों ने स्थल निरीक्षण कर सतपुड़ा जलाशय सारनी के जलीय खरपतवार सिल्वेनिया मोलेस्टा से पौधों के सेम्पल जबलपुर लाकर उसे नष्ट करने के ²ष्टिगत उस पर विभिन्न प्रयोग और अनुसन्धान प्रारम्भ किए।
उन्होंने खरपतवार के जैविक (बायोलॉजिकल) नियंत्रण के लिए इसे नष्ट करने वाले एक कीट (सिरटोबैगस साल्विनी बायोएजेन्ट) को दक्षिण भारत से लाकर मध्यप्रदेश की जलवायु में उसके जीवित रहने, प्रजनन द्वारा उसकी संख्या में वृद्धि होने एवं खरपतवार को खाकर नष्ट करने की क्षमता पर विभिन्न प्रयोग कर अनुसंधान किया।
तीन माह आयु वाले दो मिलीमीटर आकार के इस कीट की विशेषता है कि यह केवल सिल्वेनया मोलेस्टा के पौधे के ऊपर के कोमल भाग को खाकर पौधे की वृद्धि रोक कर उसे नष्ट कर देता है। कीट अन्य किसी जलीय खरपतवार या पौधे को नहीं खाता। कीट, सिल्वेनिया मोलेस्टा के कोमल भाग को खाकर नष्ट करने के बाद भूख से स्वयं भी अपना जीवन खो देता है। इस खरपतवार के नियंत्रण की यह जैविक विधि होने से पर्यावरण भी दूषित नहीं होता।
भारतीय खरपतवार संस्थान द्वारा कटनी के 20 हेक्टेयर में एक तालाब में जैविक अनुसंधान कर सम्पूर्ण सिल्वेनिया मोलेस्टा को नष्ट करने में सफलता अर्जित की। इसके बाद भारतीय खरपतवार अनुसंधान निदेशालय जबलपुर ने सतपुड़ा ताप विद्युत गृह सारनी के वृहद सतपुड़ा जलाशय के साठ प्रतिशत जल क्षेत्र पर तैरती जलीय खरपतवार सिल्वेनिया मोलेस्टा के निर्मूलन के लिए भी कार्य किया। सिल्वेनिया मोलेस्टा के पौधों पर ही विकसित किए गए लगभग छह लाख कीट अभी तक सतपुड़ा जलाशय में छोड़े गए हैं, जिनकी संख्या प्रजनन द्वारा अब अरबों में पहुंच चुकी है।
सतपुड़ा जलाशय के प्रभावित क्षेत्र के लगभग 70 प्रतिशत भाग की जलीय खरपतवार नष्ट हो गई है और जल शीघ्रता से साफ हो गया है। आगामी 6 माह में जलीय खरपतवार से प्रभावित सतपुड़ा जलाशय का सम्पूर्ण क्षेत्र साफ हो जाएगा।
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