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नईदिल्ली | सांसदों-विधायकों के खिलाफ आपराधिक केस से जुड़े मामलों में सुप्रीम कोर्ट द्वारा एमिकस क्यूरी बनाए गए वरिष्ठ वकील विजय हंसारिया ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि दोषी ठहराए गए जनप्रतिनिधियों को सिर्फ छह साल के लिए नहीं बल्कि आजीवन चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य घोषित कर दिया जाना चाहिए। शीर्ष अदालत द्वारा एमिकस क्यूरी नियुक्ति के बाद से यह उनकी 19वीं रिपोर्ट है।
भारत के मुख्य न्यायाधीश CJI डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष पेश होने वाली अपनी रिपोर्ट में हंसारिया ने कहा, "सांसद और विधायक आमजन की संप्रभु इच्छा का प्रतिनिधित्व करते हैं और एक बार नैतिक अधमता से जुड़ा अपराध करते हुए पाए जाने पर, उन्हें उस पद को संभालने से स्थायी रूप से अयोग्य ठहराया जाना चाहिए।"
हंसारिया ने अपनी रिपोर्ट में सिविल सेवकों से संबंधित नियमों की ओर इशारा किया है, जो अनैतिक कार्यों से जुड़े किसी भी अपराध के लिए दोषी ठहराए गए कर्मचारियों को बर्खास्त करने का प्रावधान करते हैं और केंद्रीय सतर्कता आयोग और मानवाधिकार आयोग जैसे वैधानिक निकायों से संबंधित कानून का भी जिक्र किया है, जो ऐसे अपराधों के लिए दोषी ठहराए गए किसी भी व्यक्ति को शीर्ष पदों पर नियुक्ति के लिए स्पष्ट रूप से अयोग्य घोषित करते हैं।
हंसारिया की रिपोर्ट में तर्क दिया गया है, “अगर वैधानिक पद पर किसी भी दोषी अधिकारी या प्राधिकारी की नियुक्ति नहीं हो सकती है, तब तो यह स्पष्ट रूप से मनमाना है कि इसी तरह का दोषी व्यक्ति सजा की एक निश्चित अवधि की समाप्ति के बाद फिर से देश या राज्यों के सर्वोच्च विधायी निकाय संसद या विधानसभा/विधानपरिषद में आकर बैठ सकता है। कानून निर्माताओं को ऐसे कानून के तहत पद संभालने वाले व्यक्तियों की तुलना में ज्यादा पवित्र और अनुल्लंघनीय होना चाहिए।"
वकील स्नेहा कलिता के माध्यम से दायर रिपोर्ट में कहा गया है, "ऐसा कोई नेक्सस नहीं है कि कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति को कोई वैधानिक पद धारण करने से अयोग्य ठहराने के लिए कोई कानून बना सकता है, लेकिन कानून बनाने वाला व्यक्ति (सांसद-विधायक)अपने लिए केवल एक सीमित अवधि के लिए अयोग्यता का कानून बना सकता है।"
बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय द्वारा 2016 में दायर याचिका से संबंधित मामले में सुप्रीम कोर्ट ने वरिष्ठ वकील विजय हंसारिया को एमिकस क्यूरी नियुक्त किया था। अश्विनी उपाध्याय ने अपनी याचिका में जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी थी, जो एक दोषी सांसद या विधायक को सिर्फ छह साल के लिए चुनाव लड़ने से अयोग्य ठहराती है।
हंसारिया की रिपोर्ट में कहा गया है कि दोषी सांसदों को छह साल के बाद फिर से चुनाव लड़ने की अनुमति देना "स्पष्ट रूप से मनमाना और संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है, जबकि संविधान का अनुच्छेद 14 समानता और कानूनों की समान सुरक्षा की गारंटी देता है।
रिपोर्ट में विधायकों/सांसदों के खिलाफ लंबित मुकदमों के शीघ्र निपटान की आवश्यकता को भी रेखांकित किया गया है और कहा गया है कि देश की विभिन्न निचली अदालतों में 5,175 मामले लंबित हैं। इनमें से 2,116 मामले पांच साल से अधिक समय से लंबित हैं, जिनमें सबसे ज्यादा मामले उत्तर प्रदेश (1,377) में हैं। इसके बाद बिहार (546) और महाराष्ट्र (482) का नंबर है।
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