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इलाहाबाद हाईकोर्ट हुआ नाराज, जानें वजह

jantaserishta.com
1 Sep 2022 5:18 AM GMT
इलाहाबाद हाईकोर्ट हुआ नाराज, जानें वजह
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न्यूज़ क्रेडिट: हिंदुस्तान

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रदेश में गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के मामले में सरकारी विभागों की उदासीनता पर नाराजगी जताई है। साथ ही कहा कि ऐसा लगता है कि नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा का पूरा प्रोजेक्ट ही आंखों में धूल झोंकने वाला है। यह टिप्पणी मुख्य न्यायमूर्ति राजेश बिंदल, न्यायमूर्ति मनोज कुमार गुप्ता एवं न्यायमूर्ति अजीत कुमार की पूर्ण पीठ ने गंगा प्रदूषण को लेकर दाखिल जनहित याचिका पर बुधवार को सुनवाई करते हुए की। कोर्ट ने गंगा में प्रदूषण स्तर को लेकर कराई गई जांच की रिपोर्ट की लीपापोती पर केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड व राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को आड़े हाथों लिया।
साथ ही आईआईटी कानपुर और बीएचयू की प्रदूषण रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं करने पर केंद्रीय और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की खिंचाई की। कोर्ट ने इससे पहले नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा के निदेशक से पूछा था कि नमामि गंगे योजना के तहत अब तक कुल कितनी रकम खर्च की गई है। बुधवार को सुनवाई के दौरान निदेशक की ओर से कोई जानकारी नहीं दी जा सकी। साथ ही जिन अन्य विभागों से जानकारियां मांगी थीं, उन सभी ने जानकारी मुहैया कराने के लिए समय की मांग की। इस पर कोर्ट ने कहा कि गंगा सफाई को लेकर के कोई भी गंभीर नहीं है। विभागों के पास कोई जानकारी नहीं है। कोर्ट ने जल निगम के पास एनवायरनमेंट विशेषज्ञ नहीं होने पर भी हैरानी जताई।
सुनवाई के दौरान एमिकस क्यूरी अरुण कुमार गुप्ता ने कोर्ट को बताया की गंगा उत्तर प्रदेश के 26 जिलों से होकर बहती है। इन शहरों से निकलने वाले सीवर के पानी को शुद्ध करने के लिए प्रदेश में केवल 35 एसटीपी लगाए गए हैं, जिनमें से तीन काम नहीं कर रहे हैं। 15 शहरों में एसटीपी है ही नहीं। वहां सीवर का पानी सीधे गंगा में गिराया जाता है।
इस पर कोर्ट ने अगली सुनवाई के दिन यह बताने का निर्देश दिया कि प्रदेश में कुल कितने नाले गंगा में गिराए जा रहे हैं। उनमें से कितनों का पानी एसटीपी में शोधित किया जा रहा है और कितने ऐसे नाले हैं जो सीधे गंगा में गिर रहे हैं। कोर्ट ने कानपुर की चमड़ा फैक्ट्रियों को वहां से शिफ्ट किए जाने के मामले में भी जानकारी मांगी है।
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