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उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव के लिए सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने अपने अभियान का आगाज कर दिया है. बीजेपी को रोकने के लिए विपक्षी दलों में भी मंथन शुरू हो गया है. सियासी दलों में चल रहे रणनीतिक मंथन के बीच प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी (सपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के एक बयान ने नई सियासी चर्चा को जन्म दे दिया है. अखिलेश यादव ने समाचार एजेंसी पीटीआई को दिए इंटरव्यू में कहा था कि आखिर कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) किससे लड़ना और किसे रोकना चाहती हैं, ये तय करें. उन्होंने कहा था कि कांग्रेस और बीएसपी को यह तय करना होगा कि अगले विधानसभा चुनाव में वे बीजेपी के खिलाफ मैदान में उतरेंगे या फिर समाजवादी पार्टी के खिलाफ. अखिलेश के इस बयान के कई मायने निकाले जा रहे हैं. अनुमान लगाया जा रहा है कि क्या विधानसभा चुनाव के पहले एक बार फिर पॉलिटिकल रिएलाइनमेंट शुरू होगा?
समाजवादी पार्टी के नेताओं ने कहना शुरू कर दिया है कि बीजेपी को हराने के लिए सबको साथ आना पड़ेगा. हालांकि, अभी तक अखिलेश यादव खुलकर यह कहते रहे हैं कि वे किसी बड़ी पार्टी के साथ कोई गठबंधन नहीं करेंगे. कांग्रेस और बीएसपी, दोनों से गठबंधन करके देख चुके हैं ऐसे में छोटी पार्टियों और इलाकाई नेताओं से ही उनके गठबंधन होंगे. ऐसी क्या मजबूरी है कि बीजेपी को हराने के लिए एक बार फिर इन दलों के एक होने की सुगबुगाहट तेज हो गई है.
सपा प्रवक्ता अनुराग भदौरिया ने भी कहा है कि सभी पार्टियों को एक होने के बारे में सोचना चाहिए. उन्होंने अपने नेता अखिलेश यादव के बयान का समर्थन किया है और कहा है कि जब से भारतीय जनता पार्टी की सरकार देश मे आई है, तब से देश खराब आर्थिक स्थिति से जूझ रहा है. बेरोजगारी और महंगाई बढ़ी है. नफरत की राजनीति की जा रही है. समाज में डिवाइड एंड रूल हो रहा है ऐसे में अब जिम्मेदारी हर नागरिक की, समाज की, दल की है कि वैचारिक रूप से एक साथ आएं और बीजेपी को सत्ता से हटाकर देश को बचाएं.