
अगले 25 साल के अमृत काल में कृषि का स्वरूप पूरी तरह से बदल सकता है। नीति आयोग की तैयारी के मुताबिक, अमृत काल में कृषि अब की तुलना में लोगों की सेहत और जलवायु दोनों का अधिक ख्याल रखेगी। आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक, इस काम के लिए हमें खेती के परंपरागत तरीके को बदलना होगा और बाजार की मांग के हिसाब से उत्पादन करना होगा।
भारत को विकसित बनाने में कृषि की भूमिका होगी महत्वपूर्ण
सरकार को भी कृषि क्षेत्र को अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए प्रोत्साहित करना होगा ताकि सब्सिडी का भार कम हो सके। वित्त वर्ष 2020-21 में देश की 46.5 प्रतिशत आबादी कृषि के काम में लगी थी, जबकि देश के सकल घरेलू उत्पाद में इनका योगदान सिर्फ 16.3 प्रतिशत था। रिपोर्ट के मुताबिक अमृत काल में भारत को विकसित बनाने में कृषि की भूमिका महत्वपूर्ण होगी और यह तभी संभव है जब विज्ञान व तकनीक, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद से कृषि व्यापार को बदला जाए।
मुफ्त बिजली से हुआ पानी का जमकर दोहन
उपभोक्ताओं की मांग के मुताबिक, स्वास्थ्यवर्धक गुणवत्ता वाले खाद्य पदार्थों के उत्पादन पर फोकस करना होगा। इस बदलाव के लिए माहौल तैयार करना होगा और सरकार को नियामक स्तर पर इस काम में मदद करनी पड़ेगी। रिपोर्ट में बताया गया है कि किसानों को पूरी तरह मुफ्त बिजली देने से पानी का जमकर दोहन हुआ है और अब हालत यह है कि कई जगह पानी खत्म होने की कगार पर है।
किसानों ने नहीं छोड़ा परंपरागत खेती
मुफ्त में पानी की उपलब्धता से किसानों ने परंपरागत खेती को नहीं छोड़ा और आज भारत चावल व चीनी जैसे उन उत्पादों का निर्यातक है, जिसके उत्पादन में पानी अधिक लगता है तो दूसरी तरफ दाल व खाद्य तेल का बड़ा आयातक है जिसके उत्पादन में पानी का कम इस्तेमाल होता है।
22 करोड़ से अधिक लोग कुपोषण के शिकार
नीति आयोग के मुताबिक हरित क्रांति से हम अनाज के उत्पादन में पूरी तरह से आत्मनिर्भर हो गए और वर्तमान में हमारा सालाना खाद्य उत्पादन प्रति व्यक्ति के हिसाब से 683 किलोग्राम है। जबकि 1970 में यह उत्पादन 365 किलोग्राम था। इसके बावजूद अब भी 22 करोड़ से अधिक लोग कुपोषण के शिकार हैं।
सार्वजनिक निवेश के भरोसे कृषि का विकास
पिछले पचास सालों में यह भी देखने में आया है कि जिन खाद्य पदार्थों के उत्पादन के लिए सरकार सबसे अधिक सब्सिडी देती है और हर साल उनके न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में बढ़ोतरी करती है, उनके उत्पादन की बढ़ोतरी दर उन खाद्य पदार्थों से कम है जिन्हें सरकार की तरफ से सब्सिडी नहीं या काफी कम मिलती है। पूरी तरह से सब्सिडी आधारित कृषि व्यवस्था होने से निजी सेक्टर ने कृषि में निवेश नहीं किया और अब भी कृषि का विकास सार्वजनिक निवेश पर निर्भर है।
केमिकल के इस्तेमाल में 1100 प्रतिशत की बढ़ोतरी
सब्जी, फल, दूध-दुग्ध उत्पाद, मछली व अन्य जैविक पदार्थों के उत्पादन में अधिक बढ़ोतरी हो रही है क्योंकि इनका उत्पादन अब बाजार की मांग के मुताबिक होने लगा है। नीति आयोग के मुताबिक पिछले पचास सालों में कृषि उत्पादन में विभिन्न प्रकार के केमिकल के इस्तेमाल में 1100 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है, लेकिन इस अवधि में जैविक खाद का इस्तेमाल सिर्फ 75 प्रतिशत बढ़ा है। इस रुख को भी बदलने की जरूरत है।
