आर.के. सिन्हा
कहते हैं कि इंसान को बहुत सोच-समझकर ही कुछ बोलना चाहिए। यानी उसे इस तरह की बातें करने से बचना चाहिए जिससे उसे आगे चलकर कष्ट हो। आमिर खान के साथ आज के दिन यही हो रहा है। आमिर खान ने 2015 में बड़ी बुलंदी से कहा था कि "वे देश के मौजूदा वातावरण में खुद को असुरक्षित महसूस करते हैं और वे अपने बच्चों को लेकर चिंतित हैं और देश छोड़कर जाना चाहते हैं।" उस समय यह बात उन्होंने मोदी सरकार के शासन काल के शुरू होने पर अपनी टिप्पणी के रूप में मोदी विरोधियों की वाहवाही लूटने के लिये कही थीं I उन्हें क्या पता था कि मोदी सरकार लम्बे समय तक भारत पर शासन करने वाला है I आमिर खान अब अपनी पिक्चर लाल सिंह चड्ढा को प्रमोट करते हुये लगभग गिड़गिड़ाने वाले भाव से भारत भर के सिने प्रेमियों से गुजारिश कर रहे हैं कि वे उनकी फिल्म को जरूर देखें। उनकी चिंता सबको समझ आती है। उनकी फिल्म की सफलता से उनके भविष्य का बहुत कुछ जुड़ा हुआ है। उन्हें पता है कि उनकी फिल्म न चली तो वे भले ही धूल में ना मिलें, पर उनके करियर को जोर का झटका तो अवश्य ही लगेगा।
यह समझना जरूरी है कि आमिर खान जैसी हस्तियों को देश ने सब कुछ दिया है I पर ये फिर भी यहां अपने को असुरक्षित क्यों महसूस करती हैं? उन्हें भारत के करोड़ों सिने प्रेमियों ने भरपूर प्यार दिया। उन्होंने अरबों रुपया कमाया। वे साउथ मुंबई के पॉश इलाकों में महंगी संपत्तियों के स्वामी हैं। उनका अपना लंबा-चौड़ा स्टाफ है। गाड़ियाँ, बंगले, शानो शौकत सबकुछ है I एक फोन पर सबकुछ उपलब्ध है I इसके बावजूद उन्हें भारत में डर लगता है। वे बतायें तो सही कि वे क्यों डर के साये में जी रहे हैं। आमिर खान भारत में कथित बढ़ती असहिष्णुता के कारण देश छोड़ना चाहते हैं तो छोड़ दें देश को। चले जायें पाकिस्तान या सीरियाI किसने उन्हें रोका है। वे हमारे सिस्टम की कमियों-खामियों को दूर करने की कोशिशें क्यूँ नहीं करते। उन्हें सिस्टम को सुधारना चाहिये न कि उससे भागने चाहिये। वे जब पद्म पुरस्कार का जुगाड़ कर सकते हैं तो अपनी सुरक्षा की पर्याप्त व्यवस्था तो कर ही सकते हैं ? पर वे तो भागने की बातें करते हैं और ऐसा करके आम नागरिक के मन में असुरक्षा पैदा करते हैं कि अरे बाप रे ! जब आमिर खान ऐसा सोचते हैं तो हम किस खेत की मूली हैं ? वे याद रख लें कि अगर वे देश से गये तो उन्हें मुंबई के छत्रपति अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट पर उन्हें कोई बाहर जाने से रोकेगा नहीं।
आमिर खान से ज्यादा भारत में उनके बॉलीवुड के साथी अभिनेता नसीरुद्दीन शाह भी असुरक्षित रहते हैं। उन्हें भी आज के दिन भारत में डर लगता है। उन्होंने कुछ साल पहले कहा था, "मुझे डर लगता है कि किसी दिन गुस्साई भीड़ मेरे बच्चों को घेर सकती है और पूछ सकती है, 'तुम हिंदू हो या मुसलमान? इस पर मेरे बच्चों के पास कोई जवाब नहीं होगा।" शाह ने यह भी कहा था कि आज के भारत में एक गाय की जान पुलिस वाले से ज़्यादा कीमती है। पर आमिर खान या शाह जैसी गैर-जिम्मेदराना टिप्पणियां कभी विप्रो के चेयरमेन अजीम प्रेमजी, टेनिस की सुपर स्टार सानिया मिर्जा या बॉलीवुड के किंग शाहरुख खान ने तो नहीं की। वे तो नहीं कहते कि उन्हें या उनके परिवार को भारत में खतरा है। आमिर खान को कभी अपनी गिरेबान में झांकना चाहिये, यह पता लगाने के लिये कि उनका भारत में डर संबंधी बयान वस्तुतः सच से कितना दूर था। उन्हें देश से क्षमा मांगनी चाहिये और यह भी जरूर बताना चाहिये कि किसके कहने पर उन्होंने करोड़ों लोगों को चिंता में डालने वाला ऐसा बयान दिया I
आमिर खान से कतई उन्नीस कलाकार नहीं थे इरफान खान। वे बेहद सशक्त एक्टर थे। उन्हें भारत ने भरपूर प्यार दिया। उन्हें देश का प्यार इसलिये मिला क्योंकि वे खबरों में रहने के लिए अनाप-शनाप बयानबाजी नहीं करते थे। देश यह
भी देखता है कि आप देश के निर्माण में किस तरह से योगदान दे रहे हैं। आमिर खान या नसीरुद्दीन शाह बता दें सही, कि उन्होंने मुंबई में हुए हमलों में शहीद हुए पुलिस वालों के परिजनों के लिए अपनी मोटी कमाई के लिये क्या किया? वे बता दें कि उन्होंने मुंबई में मौत का खेल खेलने वाले अजमल कसाब को पकड़ने वाले बहादुर पुलिसकर्मी तुकाराम ओंबले के परिवार से मिलने की कितनी बार कोशिश की। तुकाराम ओंबले पर सारा देश गर्व करता है। क्या शाह या आमिर खान कभी उनकी प्रतिमा पर फूल चढ़ाने तक का वक्त भी निकाल पाये?
अब आमिर खान यह भी बता दें कि उनकी ट्रिपल तलाक पर क्या राय रही है? आखिर पता तो चले कि वे कितने महिला विरोधी या महिलाओं के हक में सोचते हैं। सच यह है कि इतने अहम मसले पर, जो मुसलमान औरतों की जिंदगी से जुड़ा है, उस पर आमिर खान हमेशा चुप क्यों रहे। हालांकि, कहना होगा कि मुसलमानों का शिक्षित मध्यवर्ग भी ट्रिपल तलाक पर कुछ नहीं बोला था। कई चोटी की मुस्लिम समाज से जुड़ी विख्यात महिलाएं नेपथ्य में चली गईं थीं। इसके दो ही मलतब समझ में आते हैं। पहला कि, ये सब मुस्लिम कठमुल्लाओं से भयभीत हैं। दूसरा कि, यह कि वे सब बेपरवाह रहीं, मुस्लिम औरतों के ट्रिपल तलाक से जुड़े मसले पर।
बेहतर यह होता कि आमिर खान अपनी ताजा फिल्म के प्रदर्शन से पहले सारे देश को पहले अपने उस बयान के संबंध में स्पष्टीकरण देते या देश से हाथ जोड़कर माफी मांग लेते जिसको लेकर अब महाभारत मची हुई है। माफी मांगने से कोई छोटा नहीं हो होता। हिन्दुस्तानियों का बहुत बड़ा दिल है। वे उन्हें उदारतापूर्वक माफ भी कर देते। पर उन्होंने इस तरह का कोई कदम तक नहीं उठाया जिससे लगता कि उन्हें अपनी भूल का अहसास हो गया है।
अब यह फिल्म प्रेमियों को तय करना है कि वे लाल सिंह चड्ढा को देखेंगे या नहीं। सोशल मीडिया पर इस फिल्म का बायकॉट हो रहा है। आमिर खान दरअसल अपने को बहुत बड़ा ज्ञानी समझते हैं। उन्हें लगता है कि वे ज्ञान के सागर है। पर वे छदम और ढोंगी बुद्धजीवी से अधिक कुछ नहीं हैं। वे पत्रकारों के चुभने वाले सवालों के जवाब नहीं दे पाते। उनके पास आशुतोष राणा वाली भाषा भी नहीं है। वे हाजिर जवाब भी नहीं है। हां, उन्होंने कुछ श्रेष्ठ फिल्में जरूर बनाईं हैं। यह सच है। उनका वैवाहिक जीवन भी कतई आदर्श नहीं माना जा सकता है। वे दो शादियां करने के बाद अपनी दोनों पत्नियों से मन भर जाने के बाद उनसे तलाक ले चुके हैं। आमिर खान को समझना होगा कि भारतीय समाज उनसे एक बेहतर पति और पिता की भी अपेक्षा करता है। वे इस मोर्चे पर अपनी जिंदगी में असफल साबित हुये हैं। उन्हें अपनी छवि में सुधार करते हुये देश निर्माण के कामों में भी नजर आना होगा और बेहतर फिल्में तो बनानी ही होंगी।
(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तभकार और पूर्व सांसद हैं)