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अनुष्का शर्मा और दीपिका पादुकोण जैसी अभिनेत्रियां फ़िल्में बना रही हैं, ये वजह आई सामने

jantaserishta.com
30 Sep 2021 4:25 AM GMT
अनुष्का शर्मा और दीपिका पादुकोण जैसी अभिनेत्रियां फ़िल्में बना रही हैं, ये वजह आई सामने
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मुंबई: हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री पहले की तुलना में काफी बदल चुकी है. जिस तरह दर्शकों की मांग बदल रही है उसी तरह फ़िल्म निर्माण की प्रक्रिया में भी बदलाव हो रहे हैं.

पुरुष प्रधान हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री अब फ़िल्मों में लिंग समानता की ओर झुक रही है. फ़िल्म अभिनेता शाहरुख़ ख़ान, सलमान ख़ान, आमिर ख़ान, अक्षय कुमार, अजय देवगन, रणबीर कपूर जैसे कलाकार फ़िल्म निर्माण का रुख़ कर फ़िल्म निर्माण में आगे आए हैं. लेकिन अब अभिनेत्रियां भी पीछे नहीं हैं.
अपने अभिनय से फ़िल्म इंडस्ट्री में जगह बनाने वाली अनुष्का शर्मा ने भाई कर्नेश शर्मा के साथ मिलकर 'क्लीन स्लेट फ़िल्म्स' नामक प्रोडक्शन हाउस खोला है. इसके तहत उन्होंने NH10, परी, फ़िल्लौरी और बुलबुल जैसी फ़िल्में बनाई हैं.
इंटरनेशनल स्टार बन चुकी प्रियंका चोपड़ा ने 'पर्पल पेबल्स पिक्चर्स' नामक प्रोडक्शन हाउस खोल कई हिंदी और क्षेत्रीय फ़िल्मों का निर्माण किया जिसमें शामिल है मराठी फ़िल्म वेंटीलेटर, नेपाली फ़िल्म पहुना और साल के शुरुआत में OTT पर रिलीज़ हुई फ़िल्म व्हाइट टाइगर.
अपनी अदाकारी का लोहा मनवा चुकी दीपिका पादुकोण ने फ़िल्म निर्माण में "का प्रोडक्शन" से कदम रखा और फ़िल्म छपाक बनाई.
वहीं अभिनेत्री आलिया भट्ट, तापसी पन्नू, कंगना रनौत, करीना कपूर भी अपने निर्माता बनने की घोषणा कर चुकी हैं.
इस ट्रेंड को सकारात्मक नज़रिए से देखने वाले इतिहासकार एस एम एम औसजा का कहना है कि अब अभिनेत्रियां भी अभिनेताओं की बराबरी कर रही हैं. हालांकि फ़िल्म निर्माण में भागेदारी का ट्रेंड अभिनेताओं ने शुरू किया था लेकिन ये बहुत ही सकारात्मक क़दम है.
ट्रेंड की वजह ?
फ़िल्म कारोबार के जानकार अतुल मोहन कहते हैं, ''आज के कलाकारों की पीढ़ी बहुत ही चतुर है. वो निरंतर भविष्य के बारे में सोचती रहती है कि कैसे पैसा बनाया जा सकता है. बतौर कलाकार वो कैसे सुरक्षित रह सकते हैं.''
वह कहते हैं,"पहले फ़िल्में बनती थीं तो सिर्फ़ सिनेमाघरों में रिलीज़ हुआ करती थीं और सिर्फ़ दूरदर्शन हुआ करता था. पर पिछले 10 साल में बहुत परिवर्तन हुआ है. फ़िल्मों की कमाई के आंकड़े बढ़े हैं. 100 करोड़ - 300 करोड़ हो गया है.
सैटेलाइट से पैसा मिल रहा है, डिजिटल से पैसा मिल रहा है, ऑडियो से पैसा मिल रहा है, ओवरसीज फ़िल्म कारोबार से पैसा मिल रहा है. इतने सारे ज़रिये हैं जिससे पैसा कमाया जा सकता है. इसके साथ साथ आईपीआर (इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स). भविष्य में पैसे कमाने का बहुत बड़ा ज़रिया बन रहा है."
अतुल मोहन आगे कहते हैं कि 'जिस तरह से राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन ने बड़े निर्देशक जैसे यश चोपड़ा के साथ मिलकर फ़िल्म बनाई. वही बच्चन साहब जब टॉप पर आये तो उन्होंने डिस्ट्रीब्यूशन लेने शुरू किये जिसमें अमर अकबर एन्थनी, नसीब जैसी फ़िल्में शामिल हैं. वहीं उनकी अगली पीढ़ी शाहरुख़ ख़ान ने फ़िल्म स्टूडियो खोल दिया. अभिनेताओं को देखकर अभिनेत्रियों को भी महसूस हुआ कि फ़िल्म निर्माण में पैसा है. उनकी मांग है तो फिर फ़िल्म निर्माण में भागेदारी की जाए.'
फ़ायदा और स्टूडियो का साथ
आज के दौर की अभिनेत्रियां सिर्फ़ हीरो के इर्द गिर्द की कहानियों का हिस्सा नहीं है बल्कि फ़िल्मों में अहम भूमिकाओं में नज़र आती हैं. वहीं ऐसी कई कहानियों में अभिनेत्रियों ने अपने अभिनय का लोहा मनवाया है. फिर चाहे अनुष्का शर्मा की फ़िल्म NH 10 हो या दीपिका पादुकोण की छपाक.
ट्रेंड नया नहीं है
हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री के शुरुआती दौर में कई ऐसी सशक्त अभिनेत्रियां थीं जिन्होंने फ़िल्म निर्माण की हर कमान संभाली. इतिहासकार अमृत गंगर ने ऐसी सशक्त अभिनेत्रियों पर प्रकाश डाला है.
फ़ातिमा बेग़म ने अपना करियर उर्दू मंच से शुरू किया. उसके बाद आर्देशिर ईरानी की 'वीर अभिमन्यु' फ़िल्म से फ़िल्मों में अभिनय की शुरुआत की. आगे चलकर आर्देशीर ईरानी ने इम्पीरियल फ़िल्म कंपनी बनाई जिसने 1931 में भारत की पहली साउंड फ़िल्म 'आलम आरा' का निर्माण किया.
आलम आरा में फ़ातिमा बेग़म की बेटियां ज़ुबैदा, सुल्ताना और शहज़ादी ने अभिनय किया.
1926 में फ़ातिमा बेगम ने फ़ात्मा फ़िल्म्स नामक अपना प्रोडक्शन हाउस खोला और 1928 में विक्टोरिया - फ़ातिमा फ़िल्म की स्थापना की. फ़ातिमा बेगम बहुमुखी प्रतिभा वाली महिला थीं जिन्होंने बड़े-बड़े स्टूडियो जैसे कोहिनूर और इम्पीरियल स्टूडियो की फ़िल्मों में अभिनय के साथ साथ अपने प्रोडक्शन से फ़िल्म निर्माण भी किया जिसमें वो स्क्रिप्ट राइटिंग और निर्देशन के साथ-साथ अभिनय भी किया करती थीं.
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