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रक्षाबंधन से पहले भाई और बहनों की एक अनोखी मिसाल, 2 बहनों ने भाई को आधा-आधा लिवर दान देकर बचाई जान

Admin4
21 Aug 2021 3:20 PM GMT
रक्षाबंधन से पहले भाई और बहनों की एक अनोखी मिसाल, 2 बहनों ने  भाई को आधा-आधा लिवर दान देकर बचाई जान
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रक्षाबंधन से एक दिन पहले भाई और बहनों के अटूट स्नेह की एक अनोखी मिसाल सामने आई है. बहनों ने अपने भाई को अनोखा गिफ्ट दिया. ये गिफ्ट भाई की ज़िन्दगी के लिए बेहद उपयोगी साबित हुआ.

जनता से रिश्ता वेबडेस्क :- Unique Rakshabandhan Gift: रक्षाबंधन से एक दिन पहले भाई और बहनों के अटूट स्नेह की एक अनोखी मिसाल सामने आई है. बहनों ने अपने भाई को अनोखा गिफ्ट दिया. ये गिफ्ट भाई की ज़िन्दगी के लिए बेहद उपयोगी साबित हुआ. भाई का लिवर खराब था. दोनों बहनों ने अपना आधा-आधा लिवर दान (Liver Donation) करने का फैसला किया और दान कर भी दिया. तीनों एक साथ ऑपरेशन थिएटर में गए. और लिवर प्रत्यारोपित (Liver Transplant) हुआ. देश में अपनी तरह का ये पहला मौका था जब किसी बच्चे को दो लोगों ने लिवर दान किया है. दोनों बहनों ने अपना आधा-आधा लिवर दान किया.

बताया जा रहा है की उत्तर प्रदेश के बदायूं के रहने वाले अक्षत की गुड़गांव के एक निजी अस्पताल में पिछले दिनों सर्जरी हुई थी. और अस्पताल के अधिकारियों ने दावा किया कि यह ''किसी बच्चे में देश का पहला ऐसा यकृत प्रतिरोपण है, जिसमें दो लोगों ने अंगदान किया है''. राखी के त्योहार से एक दिन पहले अक्षत और उसकी बहनों नेहा (29) तथा प्रेरणा (22) ने मीडिया से बातचीत में अपनी भावनाएं साझा कीं. इस दौरान मेदांता अस्पताल के कुछ डॉक्टर भी थे, जहां जुलाई महीने में यह सर्जरी हुई थी.
अस्पताल ने एक बयान में कहा, ''रोगी करीब एक महीने पहले ही जीवन के लिए संघर्ष कर रहा था. वह यकृत (Liver) के काम नहीं करने की वजह से गंभीर रूप से बीमार था और उसे गंभीर पीलिया हो गया था. वह कौमा से पूर्व की स्थिति में था. रोगी का वजन 92 किलोग्राम होने के कारण यह मामला और जटिल हो गया
अक्षत की दोनों बहनों का वजन अपेक्षाकृत कम है. इसलिए उसे दोनों बहनों के आधे-आधे लीवर की जरूरत थी. अब अक्षत का वजन 65 किलोग्राम है. डॉक्टरों का दावा है कि वह और उसकी बहनें सर्जरी के बाद तेजी से स्वास्थ्यलाभ प्राप्त कर रहे हैं और करीब एक महीने बाद अब सामान्य जीवन जी रहे हैं.मेदांता यकृत प्रतिरोपण संस्थान के चेयरमैन और इस मामले में प्रमुख सर्जन डॉ अरविंदर सोइन ने कहा, ''गंभीर बीमार बच्चे की इस तरह की पहली सर्जरी के लिए तीनों भाई-बहनों को एक साथ ऑपरेशन टेबल पर ले जाना न केवल टीम के लिए बल्कि माता-पिता के लिए भी बहुत कठिन था.


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