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चूरू. इसे कुदरत का कहर कहें या फिर प्रशासन की बेरुखी कि राजस्थान (Rajasthan News) के चूरू (Churu News) जिला मुख्यालय के चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग से चंद कदमों की दूरी पर ही एक बेटी 25 साल से जंजीरों में जकड़ी हुई है. मजबूर परिजन उसे बकरियों के साथ टीनशैड के नीचे बांधकर रखते हैं. गर्मी हो, सर्दी हो या फिर बारिश का मौसम उसके लिए टूटी हुई चारपाई ही बिछौना है और आसमान ही ओढ़ना. 28 साल की लक्ष्मी नारकीय जीवन जीने को मजबूर है.
चुरू के नयाबास की रहने वाली लक्ष्मी को 3 साल में मानसिक रोग हो गया था. जैसे-जैसे बीमारी बढ़ती गई, वैसे-वैसे उस पर और पाबंदियां लगाई गईं और फिर स्थिति गंभीर होने पर उसे बेड़ियों में जकड़ दिया गया. वह कई सालों से इसी तरह रह रही है. 2 तालों के साथ जंजीरों में कैद लक्ष्मी को खुशियों की उस चाबी का इंतजार है जो उसे इन बेड़ियों से छुटकारा दिला सके. राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम जैसी योजनाओं के बाद भी प्रशासन का ध्यान अब तक इसके उपचार की तरफ नहीं गया.
ऐसा भी नहीं है कि उसके परिजनों ने उसका इलाज नहीं करवाया हो, लेकिन उसके इलाज के पीछे लाखों रुपये खर्च कर चुके इस परिवार की आर्थिक हालत अब कमजोर हो चुकी है. हताश और निराश हो चुके परिजन सरकार से आस लगाए उस दिन का इंतजार कर रहे हैं जब उनकी बेटी पूरी तरह से स्वस्थ्य होकर अपने भाईयों की कलाई पर राखी बांधेगी. रक्षाबंधन पर लक्ष्मी ने जंजीरों में जकड़े अपने हाथों में मेहंदी भी लगाई है और वह अपने पैरों के लिए पाजेब की भी मांग कर रही है. लेकिन पैरो में पाजेब की जगह भी अभी उसके नसीब में बेड़ियां ही हैं.
न्यूज़ 18 की रिपोर्ट के मुताबिक बूढ़े हो चुके लक्ष्मी के पिता शंकरलाल ने बताया कि लक्ष्मी जब छोटी थी, तब तक पूरी तरह स्वस्थ थी. वो हंसती-बोलती खेलती थी, लेकिन बीमार होने के बाद उसका बोलना-चलना सब बंद हो गया. उसके इलाज पर अब तक करीब 5 लाख रुपए खर्च किए जा चुके हैं. इलाज के लिए परिवार पशु तक बेच चुका हूं, लेकिन लक्ष्मी का स्वास्थ्य ठीक नहीं हो सका. थक हार के उसे जंजीरों से बांधकर रखने के अलावा कोई उपाय नहीं बचा है. बूढ़े पिता के पास अब इलाज के लिए रुपए नहीं हैं. उन्होंने बताया कि छह भाई-बहनों में लक्ष्मी 5 वें नम्बर पर है. जानवरों की तरह जंजीरों में कैद लक्ष्मी को दूर से देखकर कोई यह नहीं कह सकता कि वह पागल है.
पिता शंकरलाल ने बताया कि बेटी की देखरेख के चलते पति-पत्नी उसे अकेला छोड़कर किसी रिश्तेदार या परिजन के कार्यक्रम में शरीक नहीं हो सकते. लक्ष्मी को रह-रहकर दौरे पड़ते हैं तो पूरी तरह से आपा खो देती है. ऐसे में संभाल पाना मुश्किल हो जाता है. कई बार जंजीर खुलने पर वह बिना बताए घर से निकल चुकी है. उसे ढूंढकर लाने में परेशानी होती है. पिता ने बताया कि वे दिहाड़ी करके पेट पालते हैं. शुरू में जयपुर के कई बड़े अस्पतालों में परामर्श लिया, लेकिन बेटी के स्वास्थ्य में सुधार नहीं हो सका. उन्होंने बताया सहायता के नाम पर बेटी के नाम कुछ पेंशन शुरू हुई है. लक्ष्मी के पिता का कहना है कि सरकारी सहायता मिले तो बेटी के स्वास्थ्य में सुधार हो सकता है.
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