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रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के दौरे से चीन को बड़ा संदेश, जानें बड़ी बातें
jantaserishta.com
7 Dec 2021 2:37 AM GMT
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नई दिल्ली: रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन सोमवार को भारत आए. उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की. पुतिन 21वें भारत-रूस वार्षिक सम्मेलन में शामिल होने आए थे. लेकिन यहां एक सवाल ये उठता है कि जो व्लादिमीर पुतिन कभी पाकिस्तान नहीं गए, जो पुतिन पिछले 2 सालों में सिर्फ दूसरी बार अपने देश से बाहर निकले, वो पुतिन करीब 5 घंटे के लिए भारत क्यों आए?
ऐसा इसलिए है क्योंकि जानकार इस मुलाकात को भारत और रूस के रिश्तों के भविष्य की नींव बता रहे हैं. क्योंकि अगर ये रिश्ता, भारत का ये दौरा अहम नहीं होता तो राष्ट्रपति पुतिन दिल्ली नहीं आते. ये वही पुतिन हैं जो रोम में आयोजित हुए जी-20 के शिखर सम्मेलन नहीं गए. ग्लासगो में हुए पर्यावरण सम्मेलन COP26 में भी पुतिन नहीं पहुंचे. यहां तक कि उन्होंने चीन का अपना हाई प्रोफाइल दौरा भी टाल दिया.
राष्ट्रपति पुतिन मार्च 2020 के बाद दूसरी बार अपने देश से बाहर निकले हैं. इससे पहले वो सिर्फ इसी साल जिनेवा में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन से मिले थे. इसके बाद ये दूसरा मौका है जब वो किसी विदेशी नेता से रूस के बाहर मिले हों. प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी बात की शुरुआत में ही इसका जिक्र करते हुए कहा, 'मैं जानता हूं पिछले 2 वर्ष में ये आपकी दूसरी विदेश यात्रा है और आपका भारत के प्रति जिस तरह से लगाव है उसका ये एक प्रकार से प्रतीक है. भारत-रूस के संबंधों का कितना महत्व है. ये इससे साबित होता है.'
कोरोना काल में पुतिन-मोदी ने 6 बार फोन पर बात की
मोदी और पुतिन की आखिरी मुलाकात 2 साल पहले ब्रासीलिया में ब्रिक्स समिट के दौरान हुई थी. इसके बाद कोरोना आ गया, लेकिन दोनों नेताओं का संपर्क बना रहा. इस दौरान दोनों नेताओं के बीच 6 बार टेलीफोन पर बातचीत हुई. तीन मौकों पर वर्चुअल मीटिंग्स भी हुईं. भरोसे के इसी मॉडल को प्रधानमंत्री ने दोस्ती का सबसे विश्वसनीय मॉडल नाम दिया.
दोनों देशों के बीच दोस्ती की इसी अहमियत को देखते हुए भारत ने S-400 सौदे पर अमेरिकी ऐतराज को जिस तरह दरकिनार किया. पुतिन ने भी 21वें भारत-रूस वार्षिक सम्मेलन में आकर इस दोस्ती को मजबूत करने की कोशिश की और भारत को सबसे भरोसेमंद दोस्त बताया. पुतिन ने कहा, 'हम भारत को एक महान शक्ति और ऐसा दोस्त मानते हैं जो वक्त की कसौटी पर खरा उतरा.'
दौरा अहम था तो 5 घंटे के लिए ही क्यों आए पुतिन?
पुतिन भले ही चंद घंटों के लिए दिल्ली आए हों. लेकिन उनके आने का वक्त बहुत अहम है. एक तरफ यूक्रेन को लेकर रूस का अमेरिका से झगड़ा बढ़ने की आशंका है. वहीं उनका देश कोरोना से जूझ रहा है. इस सबके बावजूद उनका भारत आना अहम है. वो भी तब जब भारत अमेरिका के साथ लगातार अपने रिश्ते मजबूत कर रहा है. फिर भी अमेरिका के धुर विरोधी का दिल्ली आना ये बताता है कि पुतिन के लिए दिल्ली का साथ अहम है. लेकिन सवाल है क्यों?
इस सवाल का जवाब है दुनिया में भारत की बढ़ती अहमियत. रूस हो या फिर अमेरिका. भारत को हर कोई साथ लेना चाहता है. व्हाइट हाउस में ट्रंप रहें या बाइडेन. भारत से दोस्ती सबके लिए जरूरी है. पुतिन जानते हैं कि भारत सिर्फ विश्व की एक उभरती बड़ी आर्थिक शक्ति नहीं है, बल्कि भारत उन मुट्ठीभर देशों में से एक है जिनकी विदेश नीति स्वतंत्र है. जो अमेरिका जैसी महाशक्ति के दबाव में भी नहीं झुकता.
अपने हितों से समझौता नहीं करनी की इसी नीति का नतीजा है कि भारत उस क्वॉड का हिस्सा बन चुका है, जिसे लेकर रूस को आपत्ति है. रूस क्वाड को हिंद प्रशांत क्षेत्र में अमेरिकी दादागीरी की तरह देखता है. साफ सी बात है कि भारत की इसमें मौजूदगी से रूस खुश नहीं होगा. लेकिन भारत पहले ही रूस को बता चुका है कि क्वॉड के 4 देशों के बीच मुद्दों पर आधारित सहयोग है.
भारत ने रूस को 2+2 बातचीत वाले देशों की लिस्ट में शामिल कर लिया है. जाहिर है इस सूची में रूस के जुड़ने से अमेरिका को खुशी तो नहीं हुई होगी लेकिन वो भारत की सुरक्षा संबंधी प्राथमिकताएं जानता है. इसका सबसे बड़ा उदाहरण भारत और रूस के बीच S-400 का समझौता है. अमेरिका इससे नाराज भी हुआ. उसने अपने स्पेशल एक्ट के जरिए भारत पर प्रतिबंधों की धमकी भी दी. तुर्की पर बैन लगा भी दिया, लेकिन भारत नहीं झुका. जानकारों का मानना है कि पुतिन भविष्य की चुनौतियों को देखते हुए भारत को अपने साथ रखना चाहते हैं जो तमाम दबावों के आगे झुकने में यकीन नहीं रखता.
चीन को भी बड़ा संदेश दे गए पुतिन?
जानकार पुतिन के भारत दौरे को चीन के लिए एक बड़ा और साफ संदेश मान रहे हैं. पुतिन ऐसे वक्त में दिल्ली आए हैं जब भारत और चीन के बीच जबरदस्त तनाव है. LAC पर दोनों देशों की सेनाएं आमने-सामने खड़ी हैं. पुतिन चीन की महत्वकांक्षा को जानते हैं. उन्हें पता है कि अमेरिका को हटाकर सबसे बड़ी महाशक्ति का मंसूबा पालने वाला चीन भले ही अभी उनसे दोस्ती निभा रहा हो, लेकिन एक बार उसके शक्तिशाली होने पर रूस की अहमियत जूनियर पार्टनर की हो जाएगी. पुतिन चीन के साथ बराबरी की दोस्ती चाहते हैं.
दरअसल रूस और चीन के रिश्ते बहुत जटिल हैं. चीन पर रूस की निर्भरता बढ़ती जा रही है. ऐसे में रूस को डर है कि शक्तिशाली होने पर चीन उसके पूर्वोत्तर इलाके पर अपना दावा न कर दे. व्लादिवोस्तोक पर चीन दावा करता ही रहा है. इसीलिए पुतिन संतुलन बनाने की कोशिश कर रहे हैं. पुतिन जानते हैं कि चीन सिर्फ शक्ति की भाषा समझता है. इसलिए भारत को साथ में रख पुतिन चीन के खिलाफ शक्ति के संतुलन को साधने का काम कर रहे हैं ताकि चीन को ये गलतफहमी न हो जाए कि रूस के पास उसके कद का कोई सहयोगी नहीं है.
पुतिन की तरह भारत के हित भी रूस के साथ गहरे रिश्तों में छिपे हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि भारत चीन पर दबाव के लिए रूस के प्रभाव का इस्तेमाल कर सकता है. चीन का खतरा बढ़ने के बाद रूस ने जिस तरह से भारत की हथियारों की जरूरत को पूरा करने में सहयोग किया उससे काफी कुछ पता चलता है. इसीलिए भारत के लिए भी रूस का साथ बहुत जरूरी हो जाता है.
जानकारों का मानना है कि जिस तरह से अमेरिका ने क्वाड के रहते ऑकस नाम का संगठन बनाया. भारत और अपने सहयोगियों के हितों की अनदेखी करते हुए अफगानिस्तान से अपनी सेना वापस बुलाई. उससे सबक मिलता है कि अकेले अमेरिका पर भरोसा नहीं किया जा सकता है, बल्कि अमेरिका के साथ रहते हुए रूस का हाथ पकड़े रहना इस समस्या का पुख्ता जवाब है.
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