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एक भारत रत्न ने बदली पश्चिम यूपी की राजनीति

11 Feb 2024 11:42 PM GMT
एक भारत रत्न ने बदली पश्चिम यूपी की राजनीति
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अशोक मधुप कल तक विपक्ष आई­.एन­.डी.आई.ए. बनाकर एकजुट दिखाते हुए दिल्ली फतह करने की तैयारी में था। अब भाजपा के बिहार के बाद यूपी में किए खेल में विपक्ष के सारे समीकरण बिगड़ गए। भाजपा की इस गुगली में विपक्ष धराशाही हो गया।बिहार का अभी नितीश कुमार का भाजपा से गठबंधन का मामला ठंडा नही …

अशोक मधुप

कल तक विपक्ष आई­.एन­.डी.आई.ए. बनाकर एकजुट दिखाते हुए दिल्ली फतह करने की तैयारी में था। अब भाजपा के बिहार के बाद यूपी में किए खेल में विपक्ष के सारे समीकरण बिगड़ गए। भाजपा की इस गुगली में विपक्ष धराशाही हो गया।बिहार का अभी नितीश कुमार का भाजपा से गठबंधन का मामला ठंडा नही पड़ा था कि भाजपा ने किसान नेता चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न दे दिया।इस एक भारत रत्न से भाजपा पश्चिम उत्तर प्रदेश की राजनीति का नक्शा बदलने में कामयाब हो गई।इस भारत रत्न ने पश्चिम उत्तर प्रदेश में विपक्षी एकता की पूरी तरह से जड़े हीं हिलाकर रख दीं।इस भारत रत्न से जहां भाजपा को सीधे लाभ मिलेगा, वहीं विपक्ष को भारी नुकसान होगा। पश्चिम उत्तर प्रदेश के जाटों की केंद्र में जाट आरक्षण की मांग को नुकसान होगा।

पिछले काफी समय से पश्चिम उत्तर प्रदेश का जाटों का काफी तबका भाजपा से जुड़ गया था। मुजफ्फर नगर के दंगे ने इसे और एकजुट किया। राम मंदिर के नाम पर तो ये ध्रुवीकरण और हुआ।रालोद का परंपरागत वोट ही उसके पास बचा था। इस भारत रत्न के बाद भाजपा−रालोद गठबधंन से यह वोट भाजपा को लाभ

ही पंहुचाएगा ।

अब तक का राजनैतिक दृश्य कह रहा है कि उत्तर प्रदेश में बसपा और सपा का गठबंधन नही होगा। बसपा सुप्रिमो सुश्री मायावती इसकी कई बार घोषणा कर चुकी हैं।सपा पश्चिम में रालोद के साथ मिलकर भाजपा के सम्मुख मैदान में उतरने की तैयारी में थीं।सीट भी तै हो गईं थीं कि कौन किस सीट पर चुनाव लड़ेगा,पर ये राजनीति है। इसमें अगले पल क्या हो जाए , कुछ नही कहा जा सकता। और ये हो गया। किसान नेता चौधरी चरणसिंह को भारत रत्न मिलने के बाद रालोद का भाजपा के साथ जाना सरल हो गया। रालोद के भाजपा के साथ जाने से पश्चिम उत्तर प्रदेश के पूरे ही समीकरण बदल गए। तै हो गया कि पश्चिम का भाजपा – रालोद में बंटा 18 प्रतिशत जाट वोट सीधा अब रालोद −भाजपा गठबंधन को जाएगा। सपा अब यहां कोई करिश्मा नही दिखा पाएगी।

सपा के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कांग्रेस से गठबंधन से पहले इंकार कर दिया है। बाद में रालोद के साथ रहने के दौरान उन्होंने यूपी में कांग्रेस को सिर्फ 11 सीट देने की घोषणा की थी, अब बदले में हालात में रालोद के भाजपा के साथ जाने के बाद वे क्या करेंगे, यह समय ही बताएगा। अब तक कांग्रेस के सामने हेकड़ी दिखा रहे सपा सुप्रिमों अखिलेख का चुनावी समीकरण औरं गठबंधन कांग्रेस से अपनी शर्त पर होगा या कांग्रेस की ,यह अभी नही कहा जाकता, किंतु यह तै है कि अब तक का उसका कांग्रेस के प्रति कठोर रवैया जरूर मुलायम होगा।

पिछले विधान सभा चुनाव में पश्चिम उत्तर प्रदेश ने सपा− रालोद गठबधंन के जाट-मुस्लिम समीकरण के बावजूद बीजेपी ने कुल 136 विधानसभा सीटों में से 94 सीटों पर कब्जा किया था। पश्चिमी यूपी की 22 जाट बहुल सीटों पर बीजेपी ने विजय हासिल की थी। पश्चिम यूपी में करीब 18 प्रतिशत जाट आबादी है, जो सीधे चुनाव पर असर डालती है. यानी जाट समुदाय का एकमुश्त वोट पश्चिमी यूपी में किसी भी दल की हार-जीत तय करता है।2019 के चुनाव में जाटलैंड की सात सीटों पर बीजेपी को हार मिली थी. बीजेपी को मुजफ्फरनगर, मेरठ समेत तीन सीटों पर काफी कम अंतर से जीत मिली थी। आरएलडी के भाजपा नीत गठबधंन एडीए के साथ आने से यहां बीजेपी की जीत की राह आसान हो जाएगी।

2009 के लोकसभा चुनाव में आरएलडी ने भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था। किसान आंदोलन के बाद उपजे किसान आक्रोश को कम करने के लिए भाजपा ने यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में भी रालोद प्रमुख जयंत को साधने की कोशिश की थी, लेकिन वे उन्हें जोड़ने में कामयाब नहीं हो पाई। लोकसभा चुनाव में अपने मिशन को पूरा करने के लिए पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जयंत चौधरी की जरूरत भाजपा को महसूस हो रही थी। चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न दिए जाने के बाद अब यह खेला पूरा हो गया।

यहां लोकसभा की 27 सीटें हैं। 2019 के चुनाव में भाजपा ने 19 सीटों पर जीत दर्ज की। वहीं, सपा- बसपा महागठबंधन को आठ सीटों पर जीत मिली थी। पश्चिमी यूपी की चार सीटों पर सपा और चार पर बसपा उम्मीदवारों को जीत मिली।हालांकि, रालोद को इस चुनाव में कोई सीट नहीं मिल सकी। जाट समाज ने भी रालोद का साथ नहीं दिया। 2014 के बाद 2019 में भी आरएलडी को निराशा ही हाथ आई थी। जाट समाज के दिग्गज नेता अजित सिंह और जयंत चौधरी भी सपा- बसपा गठबंधन के साथ रहने के बाद भी अपनी सीट नहीं बचा पाए थे। एनडीए के साथ आने से आरएलडी की उम्मीदें बढ़ती दिख रही हैं। फायदा भाजपा को भी होना तय माना जा रहा है किंतु ये भी निश्चित है कि इस गठबंधन से शून्य पर पंहुची रालोद को भी संजीवनी मिलेगी।पश्चिमी यूपी की 27 लोकसभा सीटों का गणित भाजपा- आरएलडी गठबंधन के बाद बदलना तय माना जा रहा है। जयंत चौधरी की स्वीकार्यता हिंदू और मुस्लिम दोनों समाज में है। चौधरी चरण सिंह ने किसानों के बीच अपनी राजनीति शुरू की थी। इसमें धर्म कहीं नहीं था। 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों के बाद धार्मिक आधार पर मतों का विभाजन हुआ। इसने पश्चिमी यूपी की राजनीति को बदलकर रख दिया। जाट समाज का एक बडा हिस्सा भाजपा के पाले में आया। हालांकि, 2020 के किसान आंदोलन के बाद एक बार फिर किसान एकजुट होने लगे हैं। यूपी चुनाव 2022 में सपा- आरएलडी गठबंधन का पश्चिमी यूपी में प्रभाव कुछ इसी प्रकार की स्थिति को दिखाता है। ऐसे में भाजपा के साथ आरएलडी के आने के बाद विपक्षी गठबंधन रनर की भूमिका में ही सिमट जाएगा।

एक बात और भाजपा के साथ गठबंधन से रालोद की इज्जत भी बच जाएगी। राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा के बाद हिंदू वोट का भाजपा के पक्ष में बुरी तरह धुर्वीकरण हुआ है। ऐसे में हो सकता था कि सपा− गठबंधन में चुनाव लड़ने से पश्चिम में रालोद का सूपड़ा ही साफ हो जाता। पिछले लोकसभा चुनाव में भी उसे कुछ नही मिला था।इस भारत रत्न से भाजपा राजस्थान के उन जाटों की भी नाराजगी कम करने का काम करेगी, जो काफी समय से वहां आरक्षण की मांग कर रहे हैं।

चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न देने के बाद केंद्र में जाटों के आरक्षण की मांग करने वालों के सुर भी बदले हैं। ये कहते हैं कि चौधरी चरणसिंह को भारत रत्न मिलना बहुत बड़ा कार्य है।जाट आरक्षण और गन्ना मूल्य तो छोटे – मोटे मामले हैं। ये तो चलते ही रहते हैं। चलते रहेंगे। य

पश्चिम के भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत का राजनीति से पहले से ही प्रत्यक्ष रूप से वास्ता नही। वह तो जब तक किसानों की बात कर रहे हैं तब तक पश्चिम उत्तर प्रदेश के जाट उनके साथ हैं, राजनीति में आते ही उनका प्रभाव खत्म हो जाता है। वह और उनके पिता स्वर्गीय महेंद्र सिंह टिकैत राजनीति में उतरकर देख चुके हैं।

पूरब में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के प्रमुख ओम प्रकाश राजभर का अपना प्रभाव है।पिछले चुनाव में सपा में रहकर चुनाव लड़े थे।अब तो वह काफी समय से भाजपा के भजन गाते घूम रहें हैं। इस तरह से अब उत्तर प्रदेश का चुनावी परिदृश्य बिलकुल साफ हो गया है।मुस्लिम यादब समीकरण के बूते सत्ता के रास्ते तक पहुंचती रही सपा का यादव वोट राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम के बाद सपा के पास कितना बचा

रहेगा, ये चुनाव के बाद ही साफ होगा। इतना जरूर कहा जा सकता है, कि अब यादव वोट भी भाजपा की ओर जाने लगा है।

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