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श्रीलंका के 7 राजनीतिक दलों ने लिखा पत्र, भारत के पीएम नरेंद्र मोदी से मांगी मदद

jantaserishta.com
10 Jan 2022 9:58 AM GMT
श्रीलंका के 7 राजनीतिक दलों ने लिखा पत्र, भारत के पीएम नरेंद्र मोदी से मांगी मदद
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ये है वजह.

नई दिल्ली: श्रीलंका की सात राजनीतिक पार्टियों ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मदद की गुहार लगाई है.

देश के उत्तरी और पूर्वी राज्यों में श्रीलंकाई तमिलों का प्रतिनिधित्व करने वाले दलों ने नरेंद्र मोदी को एक साझा पत्र लिखा है. पत्र में श्रीलंका के संविधान के 13वें संशोधन के प्रावधानों को पूरी तरह से लागू करने के लिए नरेंद्र मोदी की मदद मांगी गई है.
श्रीलंका के संविधान का 13A यानी 13वां संशोधन जुलाई 1987 के भारत-श्रीलंका समझौते के कारण अस्तित्व में आया था. इसी संशोधन के तहत प्रांतीय परिषदों की स्थापना की गई थी. लेकिन अभी तक इस संशोधन को लागू नहीं किया गया है जिससे श्रीलंका के तमिलों को सत्ता में उचित जगह नहीं मिल पाई है.
पत्र के मसौदे को 29 दिसंबर 2021 को अंतिम रूप दिया गया था. सभी पक्षों ने 6 जनवरी 2022 को इसे अनुमोदित किया था. प्रधानमंत्री को पत्र लिखने वाली राजनीतिक पार्टियों में शामिल हैं- TNA, ITAK, TELo, PLOTE, EPRLF, TMP और TNP.
पत्र में श्रीलंका के तमिल भाषी लोगों की प्रमुख समस्याओं का जिक्र है. पत्र को कोलंबो में भारतीय उच्चायोग के कार्यालयों के माध्यम से प्रधानमंत्री मोदी को भेजा जाएगा.
क्या लिखा है पत्र में?
नरेंद्र मोदी को लिखे लंबे पत्र में राजनीतिक दलों की तरफ से लिखा गया है कि 1948 में ब्रिटेन से आजाद होने के बाद श्रीलंका के तमिल भाषी लोगों ने सभी सरकारों से उचित तरीके से सत्ता बंटवारे की मांग की है. इसके लिए कई प्रयास किए गए लेकिन अभी भी इस मसले को सुलझाया नहीं जा सका है.
पत्र में भारत का आभार जताते हुए आगे लिखा गया, 'भारत सरकार पिछले 40 वर्षों से इस प्रयास में सक्रिय रूप से लगी हुई है. उचित और स्थायी समाधान खोजने के लिए हम भारत की दृढ़ प्रतिबद्धता के लिए आभारी हैं. ये प्रतिबद्धता तमिल भाषी लोगों की गरिमा, शांति सुरक्षा और आत्म-सम्मान के साथ जीने की वैध आकांक्षाओं को बल देगी. हम एक संघीय ढांचे पर आधारित राजनीतिक समाधान के लिए प्रतिबद्ध हैं जो हमारी मांगों को मान्यता देता है. तमिल भाषी लोग हमेशा से श्रीलंका के उत्तर और पूर्व में बहुसंख्यक रहे हैं.'
'भारत सरकार ने 1983 में इस मसले पर बातचीत की पेशकश की, जिसे श्रीलंका सरकार ने स्वीकार कर लिया और परिणामस्वरूप 29 जुलाई 1987 को भारत-श्रीलंका समझौते पर हस्ताक्षर किए गए. इसके बाद श्रीलंका के संविधान में 13वां संशोधन किया गया जिसके तहत एक प्रांतीय परिषद की स्थापना की गई, एक ऐसी प्रणाली जिसमें प्रांतों को शक्तियों के बंटवारे की बात कही गई थी. लेकिन संशोधन को केंद्रीय संविधान में पेश किया गया, जिससे इस संशोधन को सत्ता हस्तांतरण के बजाय सत्ता विकेंद्रीकरण का रूप दे दिया गया.'
पत्र में तमिलों को सत्ता बंटवारे के प्रयासों को लेकर विस्तृत ब्यौरा दिया गया है और लिखा गया है, 'हम मानते हैं कि सरकार को तमिलों और मुसलमानों को भविष्य के श्रीलंका के लिए एक सकारात्मक दृष्टिकोण प्रदान करना चाहिए. एक ऐसा श्रीलंका, जहां उनकी शिकायतों का समाधान किया जाता हो और उनकी सुरक्षा का आश्वासन दिया जाता हो.'
'राष्ट्रपति राजपक्षे ने 'अधिकतम हस्तांतरण' की बात कही है. पिछली वार्ता में संघीय ढांचे के भीतर 'आंतरिक आत्मनिर्णय' पर सहमति बनी है. ये श्रीलंका के उत्तर और पूर्व में लोगों को आशा प्रदान कर सकता है कि देश के भीतर अपने जीवन और अपनी नियति पर उनका नियंत्रण होगा.'
सरकारी वादों का भी पत्र में है जिक्र
राजनीतिक दलों ने पीएम मोदी को संबोधित अपने पत्र में श्रीलंका के सरकारों के वादों का भी जिक्र किया है. पत्र में लिखा है कि 2009 में LTTE से लड़ाई के बाद तत्कालीन राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे ने तत्कालीन संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून के साथ मिलकर एक संयुक्त विज्ञप्ति जारी की थी जिसमें कहा गया कि राष्ट्रपति 13वें संविधान संशोधन को लागू करवाने की दिशा में काम कर रहे हैं. श्रीलंका के विकास और शांति के लिए तमिल पार्टियों समेत सभी पार्टियों से बातचीत भी शुरू की जाएगी.
जुन 2010 में भी भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने श्रीलंका को लेकर एक बयान दिया था जिसमें उन्होंने 13वें संशोधन को लागू करने पर जोर दिया था.
'जब नरेंद्र मोदी श्रीलंका आए'
पत्र में लिखा गया कि जब 13 मार्च 2015 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी श्रीलंका आए तब उन्होंने कहा था कि हम भारत के राज्यों को अधिक से अधिक मजबूत बनाने की दिशा में काम कर रहे हैं. हम संघीय ढांचे में विश्वास रखते हैं, इसलिए राज्यों को अधिक से अधिक सत्ता का बंटवारा किया जा रहा है.
29 नवंबर को भी जब राष्ट्रपति गोटोभाया राजपक्षे भारत गए थे तब मोदी ने कहा था, 'मुझे विश्वास है कि श्रीलंका की सरकार समानता, न्याय, शांति और सम्मान के लिए तमिलों की मांगों को पूरा करने के लिए सुलह की प्रक्रिया को आगे बढ़ाएगी. इसमें 13वें संशोधन को लागू करना भी शामिल है. भारत उत्तर और पूर्वी राज्यों सहित पूरे श्रीलंका में विकास के लिए एक विश्वसनीय भागीदार बनेगा.'
पत्र में लिखा गया है कि इन सब से पता चलता है कि भारत सरकार 13वें संविधान संशोधन को लागू कराने के लिए प्रतिबद्ध है. कई प्रयास हुए हैं लेकिन कोई परिणाम नहीं निकला है. 'ऐसी स्थिति में हम माननीय (पीएम मोदी) से अपील करते हैं कि वो श्रीलंका सरकार को उसका वादा निभाने और 13वें संशोधन को लागू कराने का आग्रह करे.'
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