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बड़ा संकट: भारत के 8 में 5 पड़ोसी देशों में उथल-पुथल, 'विदेशी ताकतों' के इशारों पर नाच रहे?
jantaserishta.com
6 April 2022 7:14 AM GMT
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नई दिल्ली: भारत के पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में सियासी संकट के बादल छाए हुए हैं. विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव को खारिज करने का डिप्टी स्पीकर का फैसला सही है या गलत, इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट में पिछले दो दिन से सुनवाई जारी है. 5 जजों की बेंच बुधवार को फिर मामले में सुनवाई कर रही है. उधर, भारत की समुद्री सीमा से जुड़े एक और पड़ोसी देश श्रीलंका में आर्थिक संकट जारी है. इस संकट से जूझ रही जनता सड़कों पर विरोध प्रदर्शन कर रही है और राष्ट्रपति गोटाभाया राजपक्षे के इस्तीफे की मांग कर रही है. इससे पहले प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे की पूरी कैबिनेट भी इस्तीफा सौंप चुकी है. इतना ही नहीं एक साल में भारत के तीन अन्य पड़ोसी देशों नेपाल, अफगानिस्तान और म्यांमार में भी सत्ता परिवर्तन हुआ है.
1- पाकिस्तान: इमरान कार्यकाल पूरा न करने वाले 22वें पीएम बने
14 अगस्त 1947 को पाकिस्तान भारत से अलग होकर नया देश बना था. ऐसे में पड़ोसी मुल्क होने के नाते, पाकिस्तान में होने वाली किसी भी आर्थिक और राजनीतिक गतिविधि का असर सबसे पहले भारत पर पड़ता है. पाकिस्तान इन दिनों राजनीतिक संकट का सामना कर रहा है. दरअसल, यहां विपक्ष के चाल में फंसकर प्रधानमंत्री इमरान खान को इस्तीफा देना पड़ा. हालांकि, कुछ जानकार इसे इमरान का मास्टर स्टोक भी कह रहे हैं. भले ही इमरान का ये मास्टर स्टोक हो, लेकिन उन्हें सत्ता गंवानी पड़ी. इसी के साथ इमरान खान पाकिस्तान के इतिहास में 22 वें ऐसे पीएम बन गए हैं, जो अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके.
इमरान को क्यों छोड़नी पड़ी कुर्सी?
इमरान खान ने 2018 में पाकिस्तान की बागडोर संभाली थी. उन्होंने नया पाकिस्तान बनाने का नारा भी दिया था. पाकिस्तान की जनता ने आम चुनाव में इमरान की पार्टी पीटीआई को भरपूर समर्थन भी दिया. हालांकि, उनकी पार्टी को बहुमत नहीं मिला. इसके बाद उन्होंने MQMP, PMLQ और जम्हूरी वतन समेत कुछ अन्य छोटी पार्टियों के साथ सरकार बनाई थी. पाकिस्तान में इमरान खान सरकार में महंगाई हमेशा मुद्दा बना रहा. यहां तक कि कभी रोटी के लाले पड़े तो कभी चीनी के भाव आसमान पर पहुंचे. इसे लेकर विपक्ष लगातार उनपर निशाना साधता रहा. लेकिन सितंबर 2020 में पाकिस्तान की सभी बड़ी विपक्षी पार्टियों ने मिलकर एक गठबंधन बनाया और इमरान को सत्ता से हटाने के लिए रणनीति बनाना शुरू कर दिया.
2022 आते आते विपक्ष अपने मंसूबों में कामयाब होता दिखने लगा. विपक्ष ने इमरान सरकार में सहयोगी पार्टियों को अपने पक्ष में ले लिया. इसके अलावा इमरान खान की पार्टी के दो दर्जन सांसद भी बागी हो गए. इमरान का आरोप है कि विपक्ष ने सांसदों को रकम देकर खरीदा है. मार्च के आखिर में विपक्षी पार्टियों ने इमरान खान के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने का फैसला किया. हालांकि, 3 अप्रैल को वोटिंग से पहले डिप्टी स्पीकर ने राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देते हुए आर्टिकल 5 के तहत इसे खारिज कर दिया. इसके थोड़ी देर बार पाकिस्तान के राष्ट्रपति ने इमरान खान की सिफारिश पर संसद भंग कर दी. डिप्टी स्पीकर के इस फैसले के खिलाफ विपक्ष सुप्रीम कोर्ट पहुंचा है. सुप्रीम कोर्ट डिप्टी स्पीकर के फैसले की संवैधानिकता के मामले पर सुनवाई कर रही है.
2- आर्थिक संकट से श्रीलंका सरकार पर मंडरा रहे खतरे के बादल
भारत की समुद्री सीमा श्रीलंका से मिलती है. भारत का श्रीलंका से पुराना नाता रहा है. यहां तक की इसी लंका को रामायण में रावण की लंका बताया जाता है. कभी सोने की रही लंका आज दाने दाने को मोहताज है. लोग खाने पीने के सामानों के लिए सड़कों पर हैं. बताया जाता है कि अंतरराष्ट्रीय पर्यटकों, निर्यात धीमा होने और आयात बढ़ने से श्रीलंका में ये हालात पैदा हुए. श्रीलंका में धीरे धीरे विदेशी मुद्रा भंडार खाली होने लगी. 2019 में चुनाव से पहले श्रीलंका की सत्ताधारी पार्टी एसएलपीपी ने दो बड़े वादे किए थे. पहला टैक्स में कटौती करेगी, और दूसरा किसानों को राहत देने का फैसला. सरकार बनने के बाद इन वादों को पूरा करने के लिए कदम उठाए गए. इसके चलते सरकार का खजाना और खाली हो गया.
अभी क्या स्थिति है?
श्रीलंका में खाने पीने के सामान, गैस, दूध, चावल और दवाओं के दाम आसमान छू रहे हैं. पेट्रोल और डीजल को लेकर मारामारी मची हुई है. पेट्रोल पंपों पर सेना को तैनात करना पड़ा है. इसके अलावा श्रीलंका में बिजली संकट का भी सामना करना पड़ा है. आर्थिक संकट का सामना कर रही जनता सड़कों पर आ गई है. राष्ट्रपति गोटाभाया राजपक्षे और पीएम महिंदा राजपक्षे के खिलाफ देशभर में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. उनके इस्तीफे की मांग हो रही है. उधर, राजपक्षे की पूरी कैबिनेट से भी इस्तीफा दे दिया. इसके अलावा सेंट्रल बैंक के गवर्नर अजित काबराल भी अपने पद से इस्तीफा दे चुके हैं.
उधर, सत्ता बचाने में जुटे राष्ट्रपति गोटाभाया राजपक्षे ने विपक्ष के सामने संयुक्त सरकार की बात कही थी. उन्होंने विपक्षी पार्टियों से सरकार में शामिल होकर आर्थिक संकट से निपटने के प्रयास करने की अपील की थी. लेकिन विपक्ष ने इसे ठुकरा दिया. श्रीलंका में लोग 'गो गोटाबाया गो' नारे लगाकर सरकार का विरोध कर रहे हैं.
3- नेपाल: केपी ओली को गंवानी पड़ी सत्ता
नेपाल में पिछले साल मई में बड़ी राजनीतिक उठापटक हुई थी. केपी ओली को पीएम पद से इस्तीफा देना पड़ा था. दरअसल, पुष्पकमल दहल 'प्रचंड' नीत नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी केंद्र) और नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी यूएमएल में फूट के चलते केपी ओली बहुमत साबित नहीं कर पाए थे. हालांकि, उन्होंने इसके बाद संसद भंग कर दी थी. ओली के इस फैसले के खिलाफ विपक्ष ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था. सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को बदल दिया था. ऐसे में ओली को पीएम पद से इस्तीफा देना पड़ा था.
अब क्या है स्थिति?
केपी ओली ने इन सबके पीछे भारत का हाथ बताया था. वे इससे पहले लगातार भारत के खिलाफ बयानबाजी भी करते आ रहे थे. केपी ओली के बाद शेर बहादुर देउबा ने पीएम का पद संभाला. वे 5वीं बार नेपाल के पीएम बने हैं. उन्होंने सत्ता संभालने के एक महीने के भीतर संसद में विश्वास मत हासिल कर लिया था. उनके समर्थन में 165 सांसदों ने वोट किया. नेपाल के पीएम शेर बहादुर हाल ही में तीन दिन के भारत दौरे पर आए थे. इस दौरान उन्होंने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की और कई समझौतों पर हस्ताक्षर किए.
4- म्यांमार- सेना ने किया तख्तापलट
भारत के अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, मणिपुर और नगालैंड में करीब 1600 किमी लंबी सीमा म्यांमार से लगी है. ऐसे में म्यांमार भारत का एक प्रमुख पड़ोसी देश है. म्यांमार 1948 में ब्रिटेन से आजाद हुआ था. म्यांमार में 2011 में लोकतांत्रिक सुधार हुए थे. इससे पहले तक यहां सैन्य सरकार थी. 2015 में हुए चुनाव में देश के लोकतंत्र के लिए लंबी लड़ाई लड़ने वाली आंग सान सू ची की पार्टी नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी पार्टी ने एकतरफा चुनाव जीता. हालांकि, वे म्यांमार के संविधान के चलते राष्ट्रपति नहीं बन सकीं. ऐसे में वे म्यांमार की स्टेट काउंसलर बन कर रहीं. नवंबर 2020 में राज्य में फिर चुनाव हुए तो उनकी पार्टी एक बार फिर चुनाव जीतने में सफल रही. उनकी पार्टी 83% सीटें जीतने में सफल रही. लेकिन म्यांमार की सेना ने चुनावी नतीजों पर सवाल खड़े कर दिए. फरवरी 2021 में म्यांमार की सेना ने बड़ा कदम उठाते हुए देश की सर्वोच्च नेता आंग सान सू ची समेत कई नेताओं को गिरफ्तार कर लिया और सत्ता अपने हाथ में ले ली. अभी सत्ता सत्ता सेना प्रमुख मिन आंग लाइंग के हाथों में है. हालांकि, सैन्य तख्तापलट के खिलाफ पूरे म्यांमार में विरोध प्रदर्शन हुए. इन्हें रोकने के लिए सेना ने कड़ाई भी की. इसमें कई लोगों की जान चली गई.
5- अफगानिस्तान में अब तालिबान राज
11 सितंबर 2001 को दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका में बड़ा आतंकी हमला हुआ था. इस हमले की गूंज पूरी दुनिया में सुनाई दी थी. वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए हमले में 2997 लोगों की जान गई थी. इस हमले की जिम्मदारी अल कायदा ने ली थी. इसके बाद अमेरिका ने तालिबान को जड़ से खत्म करने के लिए साल 2001 में अफगानिस्तान में सेना भेजने का फैसला किया. साल 2011 तक अफगानिस्तान में करीब 1,10,000 सैनिक तैनात थे. अमेरिकी सेना की तैनाती के करीब 20 साल बाद अमेरिका के एक फैसले ने अफगानिस्तान की तकदीर और तस्वीर दोनों बदल दी.
दरअसल, अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अफगानिस्तान से सेना बुलाने का फैसला किया. इस फैसले का असर ये हुआ कि तालिबान को एक बार फिर पैर पसारने का मौका मिल गया. नतीजा ये हुआ कि जब भारत 75वां स्वाधीनता दिवस मना रहा था, उस वक्त अफगानिस्तान में तालिबान ने काबुल पर कब्जे का ऐलान कर दिया था. अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी ने देश छोड़ दिया. इसी के साथ अफगानिस्तान की सेना ने हार मान ली. अब अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार है. हालांकि, अभी भारत समेत कई देशों ने इसे मान्यता नहीं दी है.
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