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4 पूर्व अधिकारियों को विजिलेंस टीम ने किया गिरफ्तार, 7 साल पहले दर्ज हुई थी FIR, जाने- क्या है मामला

jantaserishta.com
10 April 2021 6:00 AM GMT
4 पूर्व अधिकारियों को विजिलेंस टीम ने किया गिरफ्तार, 7 साल पहले दर्ज हुई थी FIR, जाने- क्या है मामला
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1400 करोड़ रुपये के घोटाले के आरोप लगे थे.

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ और नोएडा में मायावती की सरकार रहते स्मारक बनवाए गए थे. साल 2007 से 2012 के बीच रही मायावती की सरकार के दौरान हुए इन स्मारकों के निर्माण में 1400 करोड़ रुपये के घोटाले के आरोप लगे थे. इस मामले में 7 साल पहले एफआईआर हुई थी. अब यूपी पुलिस की विजिलेंस ने इस मामले में आरोपी चार पूर्व अधिकारियों को गिरफ्तार कर लिया.

यूपी पुलिस की विजिलेंस टीम ने जिन चार अधिकारियों को गिरफ्तार किया है, वे सभी राजकीय निर्माण निगम से रिटायर हैं. राजकीय निर्माण निगम के तत्कालीन सलाहकार विमल कांत मुद्गल, जीएम तकनीकी एसके त्यागी, जीएम सोडिक कृष्ण कुमार और यूनिट इंचार्ज रामेश्वर शर्मा को विजिलेंस ने रिटायर होने के बाद गिरफ्तार किया है. इससे पहले विजिलेंस टीम ने फरवरी महीने में छह आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल किया था जिसमें तत्कालीन ज्वाइंट डायरेक्टर सुहेल अहमद फारुकी के साथ ही छह अधिकारी शामिल थे.
कोर्ट में दाखिल की गई चार्जशीट में विजिलेंस ने एलडीए के तत्कालीन वीसी हरभजन सिंह के साथ ही 43 अधिकारियों के खिलाफ जांच में सुबूत मिलने की बात की थी. वहीं बसपा सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे नसीमुद्दीन के खिलाफ विवेचना लंबित होने की बात कही गई थी. गौरतलब है कि यूपी में 2012 के चुनाव में सत्ता परिवर्तन हुआ और समाजवादी पार्टी की सरकार बनी, अखिलेश यादव सीएम बने.
अखिलेश यादव के नेतृत्व में सरकार बनने के बाद 1 जनवरी 2014 को गोमती नगर थाने में विजिलेंस ने एफआईआर दर्ज कराई थी. इसमें बसपा सरकार में मंत्री रहे नसीमुद्दीन सिद्दीकी, बाबू सिंह कुशवाहा के साथ राजकीय निर्माण निगम के 17 इंजीनियर नामजद किए गए थे. लोकायुक्त एनके मेहरोत्रा ने अपनी 12 सौ पन्ने की जांच रिपोर्ट में 199 लोगों को आरोपी बनाते हुए 14 अरब 10 करोड़ 83 लाख 43 हजार रुपये का घोटाला बताया था.
गौरतलब है कि मायावती की सरकार में लखनऊ और नोएडा में बनाए गए तमाम स्मारकों में लगे पत्थरों को लेकर बड़ी धांधली उजागर हुई थी. कागजों में राजस्थान से पत्थर स्कूटर और ऑटो के नंबर वाली गाड़ियों पर ही मंगवा लिए गए. स्मारक में लगने वाले पत्थरों को कागज में राजस्थान भेजा गया था. हालांकि वास्तव में ये पत्थर तराशने का काम मिर्जापुर में ही कराया गया था.
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