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भारत-इजरायल दोस्ती के 30 साल, पेगासस खुलासे के बाद अब कैसे रहेंगे रक्षा संबंध?

jantaserishta.com
29 Jan 2022 10:22 AM GMT
भारत-इजरायल दोस्ती के 30 साल, पेगासस खुलासे के बाद अब कैसे रहेंगे रक्षा संबंध?
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India-Israel Defence Relation: पेगासस जासूसी मामले के बाद से एक बार फिर भारत और इजरायल के रक्षा संबंध चर्चा में हैं. क्योंकि कारगिल युद्ध से लेकर बालाकोट एयर-स्ट्राइक तक इजरायल ने हर मुश्किल घड़ी में भारत का साथ दिया है. यहां तक की साल 2017 में इजरायल ने पिछले पचास दशक का सबसे बड़ा रक्षा सौदा (कुल कीमत करीब 17 हजार करोड़) भारत के साथ ही किया था. ये वही साल था जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इजरायल की ऐतिहासिक यात्रा की थी.

न्यूयॉर्क टाइम्स ने भारत और इजरायल के 2017 के जिस रक्षा सौदे का जिक्र किया है उसके बारे में खणद इजरायल की आईएआई यानी 'इजरायल एयरोस्पएस कंपनी' ने बयान जारी कर जानकारी दी थी. खुद एबीपी न्यूज ने इस सौदे के बारे में उस वक्त जानकारी दी थी. अप्रैल 2017 में इजरायल की एसरोस्पेस कंपनी, आईएआई ने इस बारे में वक्तव्य जारी कर इस डील की घोषणा की थी. इजरायल ने इसे अपने पिछले पांच दशक के इतिहास का सबसे बड़ा रक्षा सौदा बताया था. 2 बिलियन डॉलर यानी करीब करीब 16 हजार करोड़ रुपये का ये करार इजरायल ने भारत के लिए मध्यम दूरी की सतह से आकाश में मार करने वाली बराक मिसाइल (एमआरसैम) देने के लिए किया गया था.
आईएआई ये एमआरसैम मिसाइल भारत की थल सेना और वायुसेना को देने के लिए किया था. इसके साथ साथ ही भारतीय नौसेना के स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियर, आईएनएस विक्रांत के लिए लंबी दूरी की बराक-8 मिसाइल (एलआरसैम) और रक्षा प्रणाली भी इजरायल दे रहा था. बराक-8 मिसाइल, आईएआई, भारत के रक्षा उपक्रम, डीआरडीओ के साथ मिलकर तैयार कर रहा है. माना जा रहा है कि इस सौदे के लिए जरूरी मिसाइल, रडार और दूसरे सैन्य उपकरण मेक इन इंडिया के तहत भारत में ही तैयार किए जाएंगे.
इस सौदे से माना जा रहा है कि भारतीय वायुसेना को करीब 450 बराक मिसाइल हासिल होंगी. इन मिसाइल की रेंज करीब 50-60 किलोमीटर है. ये मिसाइल प्रणाली आसमान में दुश्मन के एयरक्राफ्ट, मिसाइल, यूएवी इत्यादि से बचाव करती है. वहीं नौसेना के लिए बन रही बराक-8 मिसाइल की रेंज करीब 90 किलोमीटर है. नौसेना के स्वदेशी विमान वाहक युद्धपोत विक्रांत फिलहाल कोच्चि डॉकयार्ड में तैयार हो रहा है.
भारत और इजरायल के बीच रक्षा संबंधों की शुरुआत कारगिल युद्ध से हुई थी, जब इजरायल ने भारत को बेहद जरूरी गोला-बारूद मुहैया कराया था. उस वक्त भारत पर वैश्विक प्रतिबंध लगा था और ऐसे समय में इजरायल भारत की मदद के लिए आगे आया था. यही वजह है कि भारत इजरायल को अपना रणनीतिक साझेदार मानता है.
कारगिल युद्ध के बाद साल 2005 में इजरायल ने भारत को 50 हेरोन ड्रोन भी दिए थे. इसके अलावा 03 एवैक्स टोही विमान भी भारतीय वायुसेना को दिए थे. यहां तक की वर्ष 2019 में वायुसेना के जिन मिराज 2000 फाइटर जेट्स ने पाकिस्तान के बालाकोट में एयर स्ट्राइक की थी, वो इजरायल को स्पाइस 2000 बमों से ही की थी. पिछले साल यानी नवंबर 2021 में भारत और इजरायल ने साझा ड्रोन, रोबोट, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और क्वांटम टेक्नोलॉजी डेवलप करने के लिए भी एक अहम करार किया था.
बता दें कि भले ही न्यूयॉर्क टाइम्स इस बात का दावा कर रहा है कि साल 2017 में हुए 17 हजार करोड़ के रक्षा सौदे में पेगासस सॉफ्टवेयर की खरीद भी शामिल हो लेकिन पिछले साल रक्षा मंत्रालय ने संसद में ऐसी किसे भी सौदे से इनकार कर दिया था.
पिछले साल यानी सितंबर 2051 में पेगासस जासूसी कांड में पहली बार सरकार ने आधिकारिक तौर से संसद में बयान देकर साफ किया था कि इस ऐप को बनाने वाली कंपनी एनएसओ से कोई लेनदेन नहीं किया गया है. हालांकि, ये बयान सिर्फ रक्षा मंत्रालय की तरफ से दिया गया था, जबकि देश की बड़ी खुफिया एजेंसियां गृह मंत्रालय और पीएमओ के अंतर्गत भी आती हैं.
राज्य सभा में एक लिखित सवाल के जवाब में रक्षा राज्य मंत्री, अजय भट्ट ने कहा था कि रक्षा मंत्रालय ने एनएसओ टेक्नोलॉजी से कोई लेनदेन नहीं किया है. राज्यसभा सांसद डॉक्टर वी. सिवादासन ने दरअसल, रक्षा बजट को लेकर सवाल पूछा था. इसके साथ ही उन्होंने रक्षा मंत्रालय से ये भी सवाल पूछा कि क्या सरकार ने एनएसओ के साथ भी कोई ट्रांजेक्शन किया है.
ये शायद पहली बार ऐसा हुआ था कि सरकार की तरफ से आधिकारिक तौर से संसद में पेगासस जासूसी कांड पर कोई बयान दिया गया था. जब से देश के राजनेताओं, विपक्षी नेता, पत्रकार और एनजीओ के फोन टैपिंग का मामला सामने आया है तब से ही विपक्ष ने संसद को चलने नहीं दिया है. दरअसल, एनएसओ इजरायल की एक जानी-मानी कंपनी है जो पेगासस नाम का एक ऐप बनाती है. इस ऐप का इस्तेमाल मोबाइल फोन में सेंध लगाकर जासूसी करने के लिए किया जाता है. कंपनी का दावा है कि इस ऐप को वो दुनियाभर की सरकारों को ही बेचती है.
बता दें कि भले ही रक्षा राज्य मंत्री ने एनएसओ से किसी भी तरह के लेनदेन से साफ इनकार किया है, लेकिन देश की ऐसी कई बड़ी खुफिया एजेंसियां हैं जो रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत नहीं आती हैं. रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत मिलिट्री-इंटेलीजेंस (एमआई) और डिफेंस इंटेलीजेंस एजेंसी (डीआईए) आती हैं. जबकि इंटेलीजेंस ब्यूरो (आईबी) गृह मंत्रालय और रिसर्च एंड एनेलेसिस (रॉ) सीधे प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) के अंतर्गत आती है. इसके अलावा एनटीआरओ भी पीएमओ के अधीन है. जबकि नेशनल सिक्योरिटी कॉउंसिल सेक्रेटेरिएट (एनएससीसी) सीधे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) के अधीन है. हालांकि, एनएससीसी के बारे‌ ज्यादा जानकारी सार्वजनिक तौर से सामने नहीं आई है.
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