दिल्ली। दिल्ली के कापसहेड़ा इलाके के करीब 10 व्यापारिक प्रतिष्ठानों से 22 नाबालिग बच्चों को बाल मजदूरी से मुक्त करवाया गया है। एसडीएम कापसहेड़ा के नेतृत्व में हुए एक संयुक्त ऑपरेशन में नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी द्वारा स्थापित 'बचपन बचाओ आंदोलन', लेबर डिपार्टमेंट, चाइल्ड लाइन, दिल्ली पुलिस और नागरिक सुरक्षा संगठन ने छापामार कार्रवाई कर बच्चों को छुड़ाया है। ऑपरेशन में 'बचपन बचाओ आंदोलन' की सहयोगी संस्था 'बाल विकास धारा' भी साथ थी।
मुक्त करवाए गए सभी बच्चों की उम्र 10 से 16 साल है और सभी लड़के हैं। ये बच्चे बिहार, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल के हैं। इन मासूम बच्चों से जबरन गारमेंट फैक्ट्री, होटल, ढाबों और मोटर गैराज में काम करवाया जा रहा था। आजाद होने के बाद बच्चों ने कहा, 'उन्हें जबरन 12-12 घंटे काम करने के लिए मजबूर किया जाता था और मेहनताने के नाम पर 35 से 100 रुपए रोजाना मिलते थे।' कुछ बच्चे तो करीब पांच महीने से बाल मजदूरी के इस दलदल में फंसे थे।
एसडीएम कापसहेड़ा के आदेश का पालन करने हुए दिल्ली पुलिस ने बालश्रम करवाने वाले मालिकों को गिरफ़तार कर लिया है और प्रतिष्ठानों को सील कर दिया है। एसडीएम ने जुवेनाइल जस्टिस एक्ट, चाइल्ड लेबर एक्ट और बंधुआ मजूदरी अधिनियम के तहत केस दर्ज करने के आदेश दे दिए हैं। वहीं, सभी बच्चों को चाइल्ड वेलफेयर कमेटी के निर्देश पर पालम स्थित आश्रय गृह बास्को होम में रखा गया है।
गारमेंट फैक्ट्री और अन्य व्यापारिक प्रतिष्ठानों में नाबालिगों से काम करवाने की स्थिति पर गंभीर चिंता जताते हुए बचपन बचाओ आंदोलन के निदेशक मनीश शर्मा ने कहा, 'बच्चों को बालश्रम और बाल शोषण से बचाने के कड़े कानून होने के बाद भी लोग बच्चों को व्यापारिक कार्यों में काम करवा रहे हैं और उनका शोषण कर रहे हैं। चाइल्ड ट्रैफिकर्स दूसरे राज्यों से बच्चों को लाते हैं और फिर उन्हें बाल मजदूरी के दलदल में धकेल देते हैं। यह बच्चों के प्रति बहुत ही गंभीर अपराध है। सरकार को चाहिए कि वह बच्चों को सुरक्षित करे और सुरक्षा एजेंसियों को और भी अधिक सक्रिय करे।' 'बचपन बचाओ आंदोलन' के निदेशक ने कहा कि हमारी सरकार से मांग है कि चाइल्ड ट्रैफिकिंग पर रोक लगाने के लिए वह जल्द से जल्द एंटी ट्रैफिकिंग बिल को संसद में पास करवाए।